प्रथम मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी : चुनावी हार ने उनके कद को छोटा नहीं किया
–शीशपाल गुसाईं
उत्तराखंड के पहले पूर्व मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी—राजनीति में एक ऐसा नाम, जिसकी पहचान सत्ता के शोर से नहीं, सादगी, ईमानदारी और आत्मसंयम से बनी। उनका जीवन इस बात की मिसाल है कि पद बड़ा हो तो भी मन छोटा नहीं होना चाहिए।
सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी चंद्र सिंह बताते हैं कि नित्यानंद स्वामी के भीतर लोभ का नामोनिशान तक नहीं था। यही कारण था कि उन्होंने कभी सरकारी क्वार्टर नहीं लिया—न मुख्यमंत्री रहते हुए, न पूर्व मुख्यमंत्री रहते हुए। चाहें तो अधिकारों का लाभ उठा सकते थे, पर उन्होंने सरकारी वैभव से दूरी बनाए रखी। उनके लिए सत्ता सुविधा नहीं, सेवा का संकल्प थी।
वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत के अनुसार, जब नित्यानंद स्वामी उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सभापति थे, तब भी वे अलग उत्तराखंड राज्य के विचार को लेकर अग्रणी भूमिका में थे। उन्होंने उत्तर प्रदेश की राजनीति के भीतर रहते हुए उत्तराखंड के लिए वैचारिक भूमि तैयार की—माहौल बनाया, चेतना जगाई, और आवाज़ को दिशा दी।
जब वे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने, तब पर्वतीय क्षेत्रों में विरोध की स्वरें भी उठीं। सवाल किए गए—“हरियाणा की पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति को मुख्यमंत्री क्यों?” “क्या भाजपा को कोई पर्वतीय चेहरा नहीं मिला?” भाजपा विधायक श्री लाखी राम जोशी ने भी खुलकर असहमति जताई। विरोध के प्रतीक स्वरूप भगत सिंह कोश्यारी और रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने शपथ ग्रहण में विलंब किया—और जब दिल्ली से स्पष्ट डंडा स्वरूप संदेश आया, तब जाकर शपथ ली गई।
लेकिन इन राजनीतिक उतार-चढ़ावों से परे, नित्यानंद स्वामी देहरादून के थे—और उनकी आत्मा भी यहीं बसती थी। देहरादून के लिए उन्होंने अनेक कार्य किए। राज्य बनने के बाद वे लक्ष्मण चौक विधानसभा सीट से चुनाव लड़े, किंतु एक युवा अधिवक्ता दिनेश अग्रवाल से पराजित हो गए। चुनावी हार ने उनके कद को छोटा नहीं किया; चरित्र और ईमानदारी हमेशा विजयी रहे।
आज, जब हम वर्तमान सत्ता का स्वर, राजनीति की भाषा और माहौल देखते हैं, तो अनायास ही नित्यानंद स्वामी का शासनकाल स्मृतियों में उजास भर देता है—
जहाँ ईमानदारी चुपचाप काम करती थी,
जहाँ मुख्यमंत्री साधारण जीवन जीता था,
और जहाँ सत्ता का अर्थ सेवा और मर्यादा हुआ करता था।
आज उनके जन्मदिवस पर हम उन्हें आदरपूर्वक स्मरण करते हैं—
नमन उस राजनीति को, जो कम बोलती थी पर बहुत कुछ कह जाती थी। नमन नित्यानंद स्वामी जी को।
