वैज्ञानिकों ने व्याख्या कर चमोली की ऋषि और धौली गंगा आपदा के पीछे की वजह बताई
It is noteworthy that on February 7, 2021, a sudden flash flood in the Rishi and Dhauli Ganga rivers in the Uttarakhand Himalaya claimed the lives of more than 200 people. Two hydropower projects were completely destroyed. This sudden flood was caused by an avalanche and debris flow. A group of nine scientists analyzed satellite images of the avalanche site and found that, for the past five years, the area showed a gradual increase in cracks and joints near the summit of a weak wedge that controlled the steep slope of the region. These cracks began to open further, and the failure of the wedge led to the gradual upward progression of a weak zone near the summit. A significant number of ice-rock avalanche precursors were recorded as seismic signals, which remained continuously active up to 2.5 hours before the main detachment event. To assess the velocity of the dynamic flow and related impacts, the scientists analyzed and validated the seismic signals along with field evidence from the region. Such high-quality seismic data enabled the researchers to reconstruct the full chronological sequence of events and evaluate the progression of the debris flow from the initial point of detachment. This study has been published in the journal Scientific Reports.
-By- Usha Rawat
उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में ऋषि और धौली गंगा नदियों में अचानक आई बाढ़ ने200 से अधिक लोगों की जान ले ली थी । और बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ था। कुछ समय बाद अब वैज्ञानिक आपदा के कारणों का पता लगाने में सफल रहे हैं। वैज्ञानिकों ने अध्ययन में पाया कि आपदा आने से पहले यह क्षेत्र भूकंपीय रूप से सक्रिय था। उन्हें रॉक-आइस-पृथकता या अलगाव के पूर्ववर्ती संकेतों का उल्लेखनीय अनुक्रम भी मिला, जो कि स्व-संयोजन या स्व-संगठन के माध्यम से एक नई संरचना के गठन से पहले गतिशील न्यूक्लिएशन चरण कहलाता है।
गौरतलब है कि 7 फरवरी 2021 को, उत्तराखंड हिमालय में ऋषि और धौली गंगा नदियों में अचानक आई बाढ़ ने200 लोगों की जान ले ली । दो जलविद्युत परियोजनाएं पूरी तरह से नष्ट हो गईं। यह अचानक बाढ़ एक हिमस्खलन और मलबा बहाव के कारण आई थी। इस अध्ययन में, ग्लेशियरों की गति और वर्षा, भूमि सतह का तापमान आदि सहित मौसम संबंधी मापदंडों में स्थानिक और कालिक बदलावों की जांच की गई। अध्ययन से यह भी संकेत मिलता है कि इस क्षेत्र में उच्च वेग के साथ टेक्टोनिक (भूकंपीय) गतिविधियों का संबंध है। बाढ़ की घटना से ठीक पहले जलवायु परिस्थितियों में महत्वपूर्ण परिवर्तन देखा गया। हिम आवरण की प्रवृत्ति भारी हिमपात को दर्शाती है, जिसके बाद तापमान के दैनिक उतार-चढ़ाव में अचानक बढ़ोतरी हुई, विशेष रूप से तपोवन घाटी में।
अध्ययन के निष्कर्ष बताते हैं कि घटना से कुछ दिन पहले तापमान में अचानक आए बदलाव के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघला। यह पिघला हुआ पानी पहले से मौजूद दरारों/संयुक्त सतहों के साथ नीचे की ओर बहा, जिससे चट्टान का एक हिस्सा ढह गया और अचानक बाढ़ आई। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि हाल ही में मौसम की परिस्थितियों में आए बदलाव ही इस घटना का प्रमुख कारण हैं। ढलानदार और संकीर्ण नदी घाटी के कारण नदी की गतिज ऊर्जा बढ़ जाती है, जिससे निचले इलाकों में और भी अधिक तबाही होती है। जलवायु परिवर्तन के कारण पिछले एक शताब्दी में हिमालयी ग्लेशियर तेजी से पिघले हैं, जिससे ग्लेशियर झीलों का आकार बढ़ा है और डी-ग्लेशिएटेड क्षेत्रों में भारी मात्रा में तलछट जमा हुई है। हाल की फ्लैश फ्लड घटना और पूर्व की केदारनाथ त्रासदी को देखते हुए, भविष्य में ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण आपदाओं से बचने के लिए इन संभावित ग्लेशियर क्षेत्रों की निगरानी करना अत्यंत आवश्यक है।
हिमालय के ग्लेशियरों (हिमनद) के पीछे हटने और अस्थिर ढलानों के साथ संबंधित का पिघलना क्षेत्र में मॉनसून के दौरान बारिश या भूकंप के कारण भूस्खलन हो सकता है। इसके अलावा हिम, बर्फ और चट्टान के हिमस्खलन से दुनिया भर के पहाड़ी इलाकों में लोगों और बुनियादी ढांचे को खतरा हो सकता है। यही कारण है कि क्षेत्र में भूकंप के साथ-साथ ग्लेशियर की स्थिति की निरंतर निगरानी की आवश्यकता है।
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (डब्ल्यूआईएचजी) अपनी स्थापना के बाद से इस तरह की आपदा के पीछे जिम्मेदार प्रक्रिया को समझने में सक्रिय रूप से लगा है और हिमालय के ग्लेशियरों के आसपास भूकंपीय स्टेशनों के घने नेटवर्क के साथ महत्वपूर्ण और अनपेक्षित गतिविधियों का पता लगाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। इस प्रक्रिया के तहत उन्होंने 7 फरवरी 2021 को हुई आपदा के पीछे के कारणों का पता लगाने की भी कोशिश की है।
9 वैज्ञानिकों के समूह ने हिमस्खलन क्षेत्र की उपग्रह छवियों का विश्लेषण किया और पाया कि यह पिछले 5 वर्षों से खड़ी ढाल के निशान को नियंत्रित करने वाले कमजोर कील (पच्चड़) के शिखर के पास दरारें और जोड़ की क्रमिक वृद्धि को दिखाता है। ये दरारें आगे खुलने लगीं और पच्चड़ की विफलता से शिखर के पास एक कमजोर क्षेत्र की क्रमिक उन्नति हुई। बड़ी संख्या में आइस-रॉक हिमस्खलन की शुरुआत को भूकंपीय पूर्ववर्ती के रूप में दर्ज किया गया, जो मुख्य पृथकता के होने से 2.30 घंटे पहले तक लगातार सक्रिय थे। गतिशील प्रवाह और संबंधित प्रभावों के वेग का मूल्यांकन करने के लिए वैज्ञानिकों ने क्षेत्र में साक्ष्य के साथ भूकंपीय संकेतों का विश्लेषण और सत्यापन किया। इस तरह के उच्च-गुणवत्ता वाले भूकंपीय डेटा ने पूर्ण कालक्रम संबंधी नतीजे को फिर से संगठित करने और मलबे के प्रवाह की प्रगति के लिए शुरुआत के बाद से प्रभावों का मूल्यांकन करने को स्वीकार किया। यह अध्ययन साइंटिफिक रिपोर्ट्स जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

आकस्मिक बाढ़ का प्रभाव मानव हानि के अलावा आधुनिक संरचनाओं यानी दो जल विद्युत परियोजनाओं, पुलों और सड़कों को बनाए रखने के लिए बहुत अधिक था। बाढ़ की उच्च प्रवाह तीव्रता ने रैनी गांव की स्थायित्व को बिगाड़ दिया। खासकर मॉनसून के समय में यह क्षेत्र भूस्खलन से ग्रस्त है।
भूकंपीय निगरानी प्रणाली मलबे के प्रवाह, भूस्खलन, हिमस्खलन आदि जैसे बड़े पैमाने पर गतिविधियों का पता लगाने के लिए उपयुक्त हैं। बड़ी विफलता से पहले भूकंपीय नेटवर्क द्वारा ऐसी गतिविधियों को देखने की क्षमता क्षेत्र के लिए एक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली विकसित करने की गुंजाइश प्रदान कर सकती है। एक एकीकृत पूर्व चेतावनी प्रणाली लोगों को ऐसी किसी भी आने वाली आपदा से बचाव के प्रति सचेत कर सकती है। ईडब्ल्यूएस को सीस्मोमीटर (भूकंप सूचक यंत्र का आंतरिक भाग) से भूकंपीय डेटा, स्वचालित जल स्तर रिकॉर्डर से हाइड्रोलॉजिकल डेटा और हिमालय के ग्लेशियर बेसिन के आसपास नेटवर्क के रूप में स्थापित स्वचालित मौसम स्टेशनों से मौसम संबंधी डेटा पर आधारित होना चाहिए।
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