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कैंसर उपचार में मददगार हो सकते हैं समुद्री शैवाल आधारित नैनो कंपोजिट

 

 

 संश्लेषण की प्रक्रिया और कैंसर-रोधी प्रतिक्रिया का चूहों पर परीक्षण

 

Seaweed-derived bioactive compounds are regularly employed to treat human diseases. Sulfated polysaccharides are potent chemotherapeutic or chemopreventive medications since it has been discovered. They have exhibited anti-cancer properties by enhancing immunity and driving apoptosis. Through dynamic modulation of critical intracellular signalling pathways, such as control of ROS generation and preservation of essential cell survival and death processes, sulfated polysaccharides’ antioxidant and immunomodulatory potentials contribute to their disease-preventive effectiveness. Sulfated polysaccharides provide low cytotoxicity and good efficacy therapeutic outcomes via dynamic modulation of apoptosis in cancer. Understanding how sulfated polysaccharides affect human cancer cells and their molecular involvement in cell death pathways will showcase a new way of chemoprevention.

 

By – उमाशंकर मिश्र

केंद्रीय नमक और समुद्री रसायन अनुसंधान संस्थान (सीएसएमसीआरआई), भावनगर के शोधकर्ताओं ने समुद्री शैवाल से प्राप्त पॉलीसेकेराइड यौगिक से अगर-एल्डिहाइड के संश्लेषण और फिर उस पर आधारित ठोस सिल्वर नैनो कंपोजिट तैयार करने की पद्धति विकसित की है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस पद्धति से किफायती सिल्वर नैनो कंपोजिट प्राप्त किया जा सकता है, जो बैक्टीरिया-रोधी परत चढ़ाने, प्रतिक्रियाशील पदार्थों के निर्माण और कैंसर-रोधी उपचार विकसित करने में सहायक हो सकता है।

इस अध्ययन में समुद्री शैवाल से अगर नामक पॉलिमर प्राप्त किया गया है और फिर उसे एक विशिष्ट तकनीक से अगर-एल्डिहाइड में परिवर्तित किया गया है। कार्बन के रासायनिक यौगिकों को एल्डिहाइड कहते हैं। शोधकर्ताओं ने बताया कि अगर-एल्डिहाइड में सिल्वर क्लोराइड मिलाकर उसे सिल्वर नैनो कणों में परिवर्तित किया जा सकता है। अगर-एल्डिहाइड और सिल्वर नैनो कण दोनों को मिलाकर इस सिल्वर नैनो कंपोजिट को बनाया गया है।

    अध्ययन टीम के अन्य सद्स्यों के साथ डॉ रामअवतार मीणा

 

कैंसर-रोधी एजेंट के रूप में सिल्वर नैनो कण के उपयोग के बारे में पहले से जानकारी मौजूद है। हालांकि, इस तरह के ज्यादातर नैनो कंपोजिट कोलाइडीय तरल अवस्था में होते हैं, जिसका प्रबंधन कठिन होता है, क्योंकि उनमें सिल्वर नैनो कणों का जमाव एक चुनौती है। इस अध्ययन में सिल्वर नैनो कणों को कोलाइडीय विलयन से अलग करने की बेहतर तकनीक विकसित की गई है। अंततः इसको उपचारित करके ठोस रूप में परिवर्तित किया गया है। शोधकर्ताओं ने बताया कि अध्ययन के दौरान अलग किए गए ठोस एल्डिहाइड-सिल्वर नैनो कण छह महीने के बाद भी स्थिर एवं जैविक रूप से सक्रिय पाए गए हैं, जो दर्शाता है कि इसे संग्रहीत करके भी रखा जा सकता है।

सीएसएमसीआरआई, एकेडमी ऑफ साइंटिफिक ऐंड इनोवेटिव रिसर्च; गाजियाबाद, एडवांस्ड सेंटर फॉर ट्रीटमेंट, रिसर्च ऐंड एजुकेशन इन कैंसर; टाटा मेमोरियल सेंटर, मुंबई और होमी भाभा नेशनल इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं के इस संयुक्त अध्ययन में एल्डिहाइड सिल्वर कंपोजिट की कैंसर-रोधी प्रतिक्रिया का आकलन करने के लिए जैविक एवं अजैविक परीक्षण किए गए हैं। इन परीक्षणों में तीन कैंसर सेल लाइनों के खिलाफ सिल्वर नैनो कणों को प्रभावी पाया गया है। चूहों पर किए गए जैविक परीक्षण में इन सिल्वर नैनो कणों को ट्यूमर को नियंत्रित करने में प्रभावी पाया गया है। शोधकर्ताओं ने बताया कि नैनो कणों में सिल्वर की मात्रा करीब दो प्रतिशत है, जो मानव के लिए सुरक्षित है।

इस अध्ययन में समुद्री शैवाल से प्राप्त पॉलीसेकेराइड यौगिक का उपयोग ठोस सिल्वर नैनों कणों के संश्लेषण के लिए किया गया है। संश्लेषण के लिए विलायक अवक्षेपण की पद्धति का उपयोग किया गया है। रसायन शास्त्र में आग या बिजली की सहायता अथवा रासायनिक प्रक्रिया से किसी घोल में मिले हुए तत्वों को जमा करके या नीचे बैठाकर अलग करना अवक्षेपण कहलाता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि समुद्री शैवाल बहुतायत में उपलब्ध हैं, इसलिए इसके उपयोग से सिल्वर नैनो कणों के संश्लेषण की लागत को कम किया जा सकता है।

वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की घटक प्रयोगशाला;सीएसएमसीआरआई के प्रमुख शोधकर्ता डॉ रामअवतार मीणा ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “हमने अगर-एल्डिहाइड एवं सिल्वर नैनो कणों के उपयोग से नैनो कंपोजिट का संश्लेषण किया है, जो रक्त कैंसर, आंतों के कैंसर और स्तन कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को बाधित कर सकते हैं। टाटा मेमोरियल सेंटर में किए गए परीक्षण से पाया गया कि ये नैनो कंपोजिट कैंसर कोशिकाओं को मार सकता है। इसी से माना जा रहा है कि कैंसर उपचार के लिए नैनो-थेरैपी विकसित करने में इसकी उपयोगिता प्रभावी हो सकती है।”

वैज्ञानिकों ने बताया इस नैनो कंपोजिट को जैविक रूप से अनुकूल पाया गया है, जो सामान्य मेसेनकाइमल स्टेम कोशिकाओं के विकास को प्रभावित नहीं करता है। यह गुण महत्वपूर्ण है, क्योंकि कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने के बाद संबंधित अंग में एक तरह की रिक्तता उत्पन्न हो जाती है, जिससे आसपास की मेसेनकाइमल स्टेम कोशिकाएं जख्मी क्षेत्र की आकर्षित होती हैं और ऊत्तकों को तेजी से स्वस्थ होने में मदद करती हैं।

शोधकर्ताओं में डॉ मीणा के अलावा फैसल खोलिया, श्रुति चटर्जी, गोपाल भोजानी, सुब्रता सेन, मदन बारकुमे, निर्मल कुमार काशीनाथन और ज्योति कोडे शामिल हैं। यह अध्ययन शोध पत्रिका कार्बोहाइड्रेट पॉलिमर्स में प्रकाशित किया गया है।

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