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सर्वदलीय दल में थरूर का चयन मोदी का राजनीतिक दांव

जयसिंह रावत-

मोदी सरकार द्वारा ऑपरेशन सिंदूर के प्रचार के लिए सर्वदलीय सांसद दल में कांग्रेस सांसद शशि थरूर को शामिल करने का निर्णय हाल के दिनों में चर्चा का विषय बना है। यह कदम, विशेष रूप से केरल में आगामी चुनावों के संदर्भ में, कई राजनीतिक विश्लेषकों और टिप्पणीकारों द्वारा एक रणनीतिक दांव के रूप में देखा जा रहा है ।

कांग्रेस और मोदी की पसंद -नापसंद

ऑपरेशन सिंदूर, जिसे भारत सरकार ने आतंकवाद के खिलाफ एक निर्णायक कार्रवाई के रूप में प्रस्तुत किया है, को वैश्विक मंच पर भारत का पक्ष रखने के लिए एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल गठित किया गया है। इस प्रतिनिधिमंडल में सात सांसदों को शामिल किया गया, जिनमें कांग्रेस के शशि थरूर का नाम प्रमुख है। हालाँकि, कांग्रेस ने दावा किया है कि उसने थरूर का नाम प्रस्तावित नहीं किया था, बल्कि चार अन्य सांसदों—आनंद शर्मा, गौरव गोगोई, डॉ. सैयद नसीर हुसैन, और सुप्रिया सुले—की सूची सरकार को दी थी।

थरूर, जो तिरुवनंतपुरम से लोकसभा सांसद और पूर्व कूटनीतिज्ञ हैं, ने ऑपरेशन सिंदूर का समर्थन करते हुए इसे राष्ट्रीय हित में एक उचित कदम बताया। उनके इस रुख ने कांग्रेस के कुछ नेताओं में असहजता पैदा की है, क्योंकि पार्टी ने थरूर के बयानों से दूरी बनाई है। इसके साथ ही, थरूर का हाल के महीनों में कांग्रेस नेतृत्व के साथ तनावपूर्ण संबंध भी चर्चा में रहा है, विशेष रूप से उनके द्वारा प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा और कुछ कार्यक्रमों में उनकी उपस्थिति को लेकर।

कांग्रेस के खिलाफ रणनीति

मोदी सरकार का थरूर को प्रतिनिधिमंडल में शामिल करना एक सोची-समझी रणनीति के तौर पर देखा जा सकता है। कांग्रेस द्वारा थरूर का नाम प्रस्तावित न करने के बावजूद उनका चयन न केवल पार्टी की आंतरिक असहमति को उजागर करता है, बल्कि थरूर को एक राष्ट्रीय मंच प्रदान करता है, जिससे उनकी छवि एक स्वतंत्र और राष्ट्रवादी नेता के रूप में और मजबूत होती है। यह कदम कांग्रेस के भीतर पहले से मौजूद तनाव को बढ़ाने का काम कर सकता है, खासकर तब जब थरूर पहले ही पार्टी के कुछ नेताओं के निशाने पर हैं।

केरल में, जहाँ कांग्रेस और उसका गठबंधन यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (UDF) एक प्रमुख राजनीतिक ताकत है, थरूर का पार्टी से अलगाव या असंतोष भाजपा के लिए फायदेमंद हो सकता है। केरल में भाजपा की सीमित उपस्थिति को देखते हुए, थरूर जैसे लोकप्रिय और बौद्धिक नेता का समर्थन या पार्टी में शामिल होना एक बड़ी उपलब्धि होगी।

रूर की कूटनीतिक विशेषज्ञता

थरूर को शामिल करने का निर्णय उनकी कूटनीतिक पृष्ठभूमि और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का पक्ष प्रभावी ढंग से रखने की क्षमता के आधार पर भी उचित ठहराया जा सकता है। संयुक्त राष्ट्र में उनके अनुभव और वैश्विक मंचों पर उनकी स्वीकार्यता को देखते हुए, सरकार ने उन्हें एक उपयुक्त उम्मीदवार माना होगा। थरूर ने भी इस जिम्मेदारी को स्वीकार करते हुए इसे राष्ट्रीय हित में एक सम्मानजनक अवसर बताया।

इस दृष्टिकोण से, सरकार का यह कदम केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि रणनीतिक और व्यावहारिक भी हो सकता है। फिर भी, कांग्रेस की सूची को दरकिनार करने का निर्णय और थरूर को प्राथमिकता देना एक सुनियोजित कदम के रूप में देखा जा रहा है, जो कांग्रेस के भीतर असंतोष को बढ़ाने का इरादा रखता हो।

कांग्रेस के भीतर तनाव

कांग्रेस के लिए थरूर का चयन और उनकी टिप्पणियाँ एक असहज स्थिति पैदा कर रही हैं। पार्टी ने स्पष्ट किया है कि थरूर का नाम उनकी ओर से प्रस्तावित नहीं था, और वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने इस मामले में असहमति जताई है। इसके अलावा, थरूर के हाल के बयानों और प्रधानमंत्री मोदी के साथ उनकी सार्वजनिक निकटता ने पार्टी के कुछ नेताओं में नाराजगी पैदा की है।

थरूर की छवि एक स्वतंत्र बुद्धिजीवी की रही है, जो कांग्रेस की मुख्यधारा की राजनीति में पूरी तरह फिट नहीं बैठते। यह स्थिति पार्टी के लिए एक चुनौती है, क्योंकि थरूर केरल में एक लोकप्रिय नेता हैं, और उनका संभावित अलगाव या पार्टी छोड़ना कांग्रेस के लिए नुकसानदायक हो सकता है।

केरल चुनाव पर प्रभाव

केरल में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, और राजनीतिक दलों के बीच प्रतिस्पर्धा तीव्र है। थरूर, जो तिरुवनंतपुरम से चार बार के सांसद हैं, कांग्रेस के लिए एक महत्वपूर्ण चेहरा हैं। उनकी लोकप्रियता और बौद्धिक छवि उन्हें मतदाताओं, विशेष रूप से शहरी और शिक्षित वर्ग, के बीच आकर्षक बनाती है। यदि थरूर और कांग्रेस के बीच तनाव बढ़ता है या वह पार्टी छोड़ते हैं, तो इसका असर निम्नलिखित हो सकता है:

  1. कांग्रेस की स्थिति पर प्रभाव: थरूर का अलगाव या पार्टी छोड़ना कांग्रेस के लिए एक झटका होगा, खासकर तिरुवनंतपुरम जैसे क्षेत्रों में, जहाँ उनकी व्यक्तिगत लोकप्रियता पार्टी की जीत में महत्वपूर्ण रही है। यह स्थिति UDF के मतदाताओं में भ्रम या असंतोष पैदा कर सकती है।

  2. भाजपा की संभावनाएँ: केरल में भाजपा का आधार सीमित है, लेकिन हाल के वर्षों में पार्टी ने राज्य में अपनी उपस्थिति बढ़ाने की कोशिश की है। थरूर जैसे नेता का भाजपा में शामिल होना न केवल पार्टी की छवि को मजबूत करेगा, बल्कि शहरी और प्रबुद्ध मतदाताओं को आकर्षित करने में भी मदद करेगा। यह भाजपा के लिए एक प्रतीकात्मक और रणनीतिक जीत होगी।

  3. एलडीएफ का लाभ: यदि कांग्रेस कमजोर होती है, तो इसका सबसे अधिक लाभ वामपंथी लोकतांत्रिक मोर्चा (LDF) को हो सकता है, जो केरल में सत्तारूढ़ है। LDF पहले से ही राज्य में एक मजबूत संगठनात्मक आधार रखता है, और कांग्रेस की आंतरिक कलह उनके लिए एक अवसर हो सकता है।

क्या थरूर भाजपा में शामिल होंगे?

थरूर के भाजपा में शामिल होने की अटकलें हाल के घटनाक्रमों के कारण तेज हुई हैं। हालांकि, इसकी संभावना को निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर आँका जा सकता है:

  • थरूर की विचारधारा: थरूर ने हमेशा उदारवादी और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का समर्थन किया है, जो भाजपा की हिंदुत्व-केंद्रित विचारधारा से मेल नहीं खाते। उनकी सार्वजनिक छवि और लेखन भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि वह कांग्रेस की विचारधारा के करीब हैं। प्रधानमंत्री मोदी का 50 करोड़ की गर्लफ्रेंड का बयान और सुनंदा की मौत को लेकर थरूर को फंसाने, की यादें धुंधली जरूर हुयीं मगर पूरी तरह मिटी नहीं।

  • कांग्रेस में स्थिति: थरूर की लोकप्रियता और कूटनीतिक विशेषज्ञता उन्हें कांग्रेस में एक महत्वपूर्ण नेता बनाती है। पार्टी नेतृत्व उनके अलगाव को रोकने की कोशिश कर सकता है, क्योंकि उनका जाना पार्टी के लिए नुकसानदायक होगा।

  • भाजपा की रणनीति: भाजपा के लिए थरूर का समर्थन या शामिल होना केरल में एक बड़ा दांव हो सकता है, लेकिन उनकी स्वतंत्र छवि और विचारधारा को पार्टी के ढांचे में समायोजित करना चुनौतीपूर्ण होगा।

इसलिए, थरूर के भाजपा में शामिल होने की संभावना अभी सट्टेबाजी से अधिक नहीं है, लेकिन यह पूरी तरह असंभव भी नहीं है, विशेष रूप से यदि कांग्रेस के साथ उनका तनाव और बढ़ता है।

थरूर का चयन बहुआयामी चाल

मोदी सरकार का शशि थरूर को ऑपरेशन सिंदूर के लिए सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में शामिल करने का निर्णय एक बहुआयामी कदम है। यह न केवल थरूर की कूटनीतिक विशेषज्ञता का उपयोग करता है, बल्कि कांग्रेस के भीतर मौजूदा तनाव को उजागर करने और संभावित रूप से बढ़ाने का भी प्रयास करता है। केरल के चुनावी संदर्भ में, यह कदम भाजपा के लिए एक रणनीतिक अवसर हो सकता है, विशेष रूप से यदि थरूर और कांग्रेस के बीच तनाव बढ़ता है।

हालांकि, थरूर का भाजपा में शामिल होना अभी एक सट्टा है, और उनकी विचारधारा और कांग्रेस में स्थिति को देखते हुए यह एक जटिल निर्णय होगा। दूसरी ओर, कांग्रेस के लिए यह एक चेतावनी है कि उसे अपनी आंतरिक एकता को मजबूत करने और थरूर जैसे लोकप्रिय नेताओं को साथ रखने की जरूरत है। अंततः, इस कदम का प्रभाव केरल की राजनीति पर तभी स्पष्ट होगा जब चुनाव नजदीक आएँगे और थरूर की स्थिति स्पष्ट होगी।

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