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नेपाल में हालात बेकाबू: मंत्रियों पर हमला, कर्फ्यू बेअसर

 

काठमांडू, 9 सितंबर। नेपाल में सोशल मीडिया प्रतिबंध के खिलाफ भड़के विरोध ने हिंसक रूप ले लिया है। हालात इतने बेकाबू हो गए हैं कि मंत्रियों और सांसदों पर हमले हो रहे हैं, सरकारी भवनों में आगजनी हो रही है और कर्फ्यू भी बेअसर साबित हो रहा है।

8 और 9 सितंबर को हुई झड़पों में 20 से ज्यादा लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए। संसद भवन और सिंहदरबार परिसर पर प्रदर्शनकारियों ने हमला किया। कई मंत्रियों और सांसदों को सुरक्षा घेरे में भागकर जान बचानी पड़ी। गृह मंत्री रमेश लेखक ने इस्तीफा दे दिया है और कई अन्य मंत्री भी दबाव में हैं।

सरकार ने हिंसा और दबाव के बाद 8 सितंबर की देर रात सोशल मीडिया पर लगा प्रतिबंध हटा लिया। लेकिन हालात थमने के बजाय और बिगड़ते दिख रहे हैं। सेना की तैनाती और कर्फ्यू के बावजूद युवा प्रदर्शनकारियों ने राजधानी काठमांडू से लेकर प्रमुख शहरों तक सड़कों पर कब्जा कर लिया है।

राजनीतिक अनिश्चित्ता और हिंसा का असली कारण

सोशल मीडिया प्रतिबंध सिर्फ चिंगारी थी। असली असंतोष भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, महंगाई और नेताओं व उनके परिवारों की ऐशोआराम भरी जीवनशैली के खिलाफ है। लंबे समय से चल रहे ‘नेपो बेबी’ अभियान ने युवाओं को और भड़का दिया।

पिछले पांच वर्षों में नेपाल में तीन बार सरकार बदल चुकी है। लगातार राजनीतिक अस्थिरता और नेताओं के खिलाफ बढ़ते गुस्से ने लोकतंत्र पर सवाल खड़े कर दिए हैं। अब कुछ प्रदर्शनकारी खुलकर राजशाही की वापसी की मांग करने लगे हैं।

विश्लेषकों का मानना है कि नेपाल में मौजूदा संकट सिर्फ सोशल मीडिया प्रतिबंध का परिणाम नहीं, बल्कि वर्षों से पनपते राजनीतिक भ्रष्टाचार, असमानता और अविश्वसनीय शासन की देन है। यह असंतोष अब हिंसा में बदलकर पूरे राजनीतिक तंत्र को हिला रहा है

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