चिपको की स्वर्ण जयंती के अवसर पर सचिदानंद भारती सम्मानित

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  • चिपको आंदोलन के शेष बचे आंदोलनकारी हुए एकत्र
  • चिपको के प्रणेता ने आंदोलन के स्मरण सुनाये
  • मौसमीय बदलाव पर हुआ गहन चिंतन
  • चिपको आंदोलन के नायक केदार सिंह रावत के नाम  से किये लोग सम्मानित
  • वनवासियों के वनाधिकारों के लिए भी एक आंदोलन की उठी मांग

–उत्तराखंड हिमालय ब्यूरो —

रामपुर, 26 दिसंबर । चिपको स्वर्ण जयंती के सुअवसर पर पाणी राखो आंदोलन के प्रणेता सचिदानंद भारती को प्रतिषत केदार सिंह रावत पर्यावरण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सी पी भट्ट पर्यावरण एवं विकास केंद्र द्वारा प्रतिवर्ष केदार घाटी में चिपको के नायक रहे केदार सिंह की स्मृति मे पर्यावरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले व्यक्तियों एवं संस्थाओं को यह सम्मान प्रदान किया जाता है। जिसमें 21हजार रुपए नगद तथा अंगवस्त्र एवं सम्मान पत्र प्रदान किया जाता है।


सी पी भट्ट पर्यावरण एवं विकास केंद्र के न्यासी ओम प्रकाश भट्ट ने जानकारी देते हुए बताया चिपको आंदोलन की मातृ संस्था तथा न्यास एवं ग्राम सभा न्यालसु द्वारा चिपको की पचासवीं वर्षगांठ के अवसर पर यहां दो दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। जिसमें पहले दिन ग्राम प्रधान न्यालसु प्रमोद सिंह की अध्यक्षता में “मौसमीय बदलाव के संदर्भ मे चिपको की भूमिका” विषय पर आयोजित चिंतन गोष्ठी में देश भर से आये वैज्ञानिकों, शोधार्थियों, तथा पर्यावरणविदो के साथ ही स्थानीय लोगो ने भी मौसमीय बदलाव पर गहन चिंतन एवं चर्चा परिचर्चा के माध्यम से अपने विचार रखे।


रविवार को सम्पन्न मुख्य कार्यक्रम में चिपको आंदोलन से जुड़े कार्यकर्ताओं ने अपने अनुभव साझा किए। चिपको प्रणेता और 1982 चिपको आंदोलन को नेतृत्व प्रदान करने के लिए  मैग्सेसे अवार्ड से सम्मानित चंडी प्रसाद भट्ट ने चिपको के अपने संस्मरणों को साझा करते हुए कहा की आज से ठीक पचास वर्ष पूर्व किस प्रकार इस पूरी केदारघाटी के लोगों ने मिलकर जंगलो को बचाया था।

चिपको के अतीत की यादों से नयी पीढी को रूबरू कराते हुए प्रख्यात पर्यावरणविद भट्ट ने उस दौर में तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार और पेड़ काटने आयी साइमंड कंपनी से पेड़ों को कटने से बचाने के लिए आंदोलनकारियों के बीच आँखमिचोली चलती रही। उन्होंने उस दौर में आंदोलन में सरीखे लोगों को याद करते हुए बताया कि जब तत्कालीन सरकार द्वारा इलाहाबाद (प्रयागराज) स्थित खेल उपकरण बनाने वाली कंपनी साईमंड के लिए गोपेश्वर के समीप मंडल के जंगलो से अंगु के पेड़ नीलाम किए,जिसकी जानकारी मिलते ही स्थानीय लोगों ने चिपको आंदोलन के जरिए वहां अप्रैल 1973  को भारी जन प्रतिरोध को देखते हुए कंपनी को वापस लौटना पडा था। मंडल में मुँह की खाने के बाद सरकार ने साइमंड कंपनी को केदार घाटी के बडासू और न्यालसू गांव के उपर स्थित सीधा के जंगल में मौजूद अंगु के पेड़ एलाट कर दिए थे। जिसकी जानकारी हमारे साथी रहे केदार सिंह रावत से हमें मिली। फिर भी 1973 से लेकर दिसंबर 1973 तक इन पेड़ों को कटने के लिए केदारघाटी में जबरदस्त जन आंदोलन चला और पेड़ों को बचाने में सफल रहे।


उन्होंने बताया कि यहां सर्वोदयी केदार सिंह रावत की अगुवाई में स्थानीय जनता संगठित हुईं। विशाल जन प्रदर्शन, धरना तथा रैलियों के माध्यम से सरकार के इस निर्णय का विरोध  किया गया। 25 दिसंबर 1973 सीधा के जंगल में पेड़ बचाने के लिए सैकड़ों लोग पहुंचे थे। कहानियों के हाथों पेड़ कटने से बचाया और उन्हें जंगल से वापस लौटने के लिए मजबुर किया। जनता के इस प्रखर विरोध को देखते हुए कंपनी को मंडल के बाद यहां से भी खाली हाथ लौटना पड़ा। उन्होंने बताया कि इस दौरान उनके द्वारा चिपको आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले त्रिजुगीनारायण के तत्कालीन प्रधान प्रयाग दत द भट्ट, गजाधर्, प्रताप सिंह पुष्पवाण, तरसाली गांव के दयानंद सेमवाल, और दिसंबर 1973 में तत्कालीन गोपेश्वर गांव की महिला मंडल दल की अध्यक्षा श्रीमती श्यामा देवी के नेतृत्व में जनजागरण के लिए रामपुर पहुंची श्रीमती इन्दिरा देवी, पार्वती देवी,जठुली देवी जयंती देवी को भी याद किया जो अनुसुइया प्रसाद भट्ट के साथ की दिनों तक चिपको के लिए बहिनों को संगठित करने के लिए इस क्षेत्र में रही थी।उन्होंने कहा कि उस दौर के अधिकतर साथी अब हमारे बीच नहीं हैं उन्हें याद करने के साथ ही श्रद्धाजलि भी अर्पित की।

वरिष्ठ पत्रकार रमेश पहाड़ी ने भी अपने संस्मरणों को साझा किया। उन्होंने कहा चिपको आंदोलन के कारण जो चेतना विकसित हुई उससे पूरे देश में वनों का संरक्षण हुआ।जंगल सुरक्षित हुए हैं। चिपको की उपलब्धि है। उन्होंने कहा कि जंगलों के संरक्षण के साथ इसका लाभ जंगलों के आसपास के लोगों को मिले, जिससे वन संरक्षण का कार्य और बेहतर हो यह भी चिपको की मांग थी। जंगल की सूखी गिरी पड़ी लकड़ी का उपयोग स्थानीय स्तर पर आजीविका बढ़ाने के लिए होना चाहिए था। इसके लिए स्थानीय स्तर पर कुटीर उद्योगों की स्थापना की मांग थी, जिस पर आज तक पहल नहीं हुई है। उन्होंने लोगों को इसके लिए संगठित पहल करने की जरूरत बताई और आह्वान किया कि चिपको की इस मांग को लेकर फिर से आंदोलन किया जाना चाहिए।

इसअवसर पर न स्थानीय विद्यालयों मे आयोजित निबंध प्रतियोगिता मे उत्कृष्ट स्थान प्रदान करने वाले छात्रों, तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों मे प्रतिभाग करने वाले समूहों को भी सम्मानित किया गया।
दो दिन के इस कार्यक्रम में आसपास के महिला संगठनों और स्कूलों के बच्चों ने पर्यावरण संरक्षण को लेकर स्वरचित नाटक और गीत नृत्य की मनमोहक प्रस्तुतियां दी।

इस अवसर पर गांधीवादी रमेश भाई शर्मा, सुरेश राणा, बद्रीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के सदस्य जी,गो. ब. प. वि. संस्थान से डॉ नौटियाल, जड़ी बूटी शोध संस्थान से डॉ सी पी कुनियाल, संस्कृति कर्मी नंद किशोर हटवाल, मोहन डिमरी, पूर्व अधिशासी अधिकारी शांति प्रसाद भट्ट, माणा गांव के प्रधान पिताम्बर सिंह मोल्फा, भारत सरकार के पूर्व सलाहकार भुवनेश भट्ट, बार संघ चमोली के अध्यक्ष भरत सिंह रावत। चमोली के डीजीसी मनोज भट्ट, रुद्रप्रयाग के डीजीसी उमाकांत वशिष्ठ, वैज्ञानिक भारत रावत,संदीप भट्ट, पूर्व छात्र नेता जय नारायण नौटियाल,डा ललिता प्रसाद, शांति रावत, कुलदीप रावत, विक्रम सिंह रावत,शैलेन्द्र गजवाण, मंजीत गजवाण, दिनेश रावत, प्रमोद गजवाण, दिनेश राणा, रोबिन सिंह समेत आसपास की सैकड़ों महिलाओं, पुरूषों और स्कूली बच्चों शामिल हुए।
न्यालसू ग्राम पंचायत के प्रधान प्रमोद सिंह के नेतृत्व में आयोजित इस कार्यक्रम के समापन पर उन्होंने कहा कि केदारघाटी में अब हर साल चिपको दिवस के अवसर पर उनकी ग्राम सभा की ओर समारोह आयोजित किया जाएगा।

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