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टूटे रिश्ते पर बलात्कार का मुकदमा नहीं बन सकता : हाईकोर्ट

 

चंडीगढ़ : पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि एक सहमति से बना रिश्ता विवाह में परिवर्तित नहीं हो पाता, तो केवल इसी आधार पर किसी व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई नहीं की जा सकती। मुकदमा तभी दर्ज किया जा सकता है जब यह साबित हो कि विवाह का वादा शुरू से ही धोखाधड़ीपूर्ण था।

अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में यह देखना आवश्यक है कि आरोपी का वास्तव में विवाह करने का इरादा था या उसने केवल शारीरिक संबंध बनाने के लिए झूठा वादा किया।

जस्टिस कीर्ति सिंह ने यह टिप्पणी उस समय की जब वे गुड़गांव के एक प्रोफेशनल के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। उस पर आईपीसी की धारा 376(2)(एन) के तहत बलात्कार का मामला दर्ज किया गया था।

एफआईआर 24 अक्टूबर 2024 को गुड़गांव के सेक्टर 56 थाने में दर्ज की गई थी, जिसे दिल्ली से जीरो एफआईआर के रूप में ट्रांसफर किया गया था। शिकायतकर्ता, जो आरोपी की पूर्व सहकर्मी है, ने आरोप लगाया कि 2021 में आरोपी ने झूठे विवाह वादे के आधार पर उससे शारीरिक संबंध बनाए। साथ ही उसने यह भी कहा कि विवाह चर्चा के दौरान आरोपी और उसके परिवार ने अव्यावहारिक और भारी-भरकम मांगें रखीं।

शिकायतकर्ता का कहना था कि सितंबर 2024 में आरोपी ने परिवार की आपत्तियों का हवाला देकर शादी से पीछे हट गया। उसने दावा किया कि रिश्ते के दौरान उसकी सहमति धोखे से प्राप्त की गई थी क्योंकि आरोपी का विवाह करने का कोई इरादा नहीं था।

दूसरी ओर आरोपी ने हाईकोर्ट में एफआईआर रद्द करने की अर्जी दी। उसने कहा कि यह आरोप सगाई टूटने के बाद व्यक्तिगत दुश्मनी के कारण लगाए गए हैं। आरोपी ने तर्क दिया कि पूरा रिश्ता सहमति पर आधारित था। इसके सबूत के तौर पर उसने व्हाट्सऐप चैट, शिकायतकर्ता को दी गई आर्थिक सहायता और जुलाई 2024 में हुए “रोका” (सगाई) समारोह में दोनों परिवारों की भागीदारी का हवाला दिया।

आरोपी ने बताया कि शादी की तैयारियां भी चल रही थीं और अग्रिम भुगतान किए जा चुके थे, लेकिन “असहनीय मतभेदों” के चलते रिश्ता टूट गया। उसने कहा, “यह न तो जबरदस्ती का मामला है और न ही छल का। ऐसे हालात में आपराधिक मुकदमा चलाना बलात्कार कानून का दुरुपयोग होगा।”

सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद बेंच ने माना कि यह मामला दरअसल एक सहमति-आधारित रिश्ते के टूटने का है और मुकदमे की कार्रवाई जारी रखना कानून का घोर दुरुपयोग होगा।

अदालत ने कहा कि भले ही शिकायतकर्ता की दलील को सही मान लिया जाए, लेकिन इससे यह सिद्ध नहीं होता कि आरोपी ने विवाह का वादा बुरी नीयत से किया था। वास्तव में दोनों परिवार विवाह के लिए पूरी तरह तैयार थे, परंतु दुर्भाग्यवश शादी नहीं हो पाई, जिससे दोनों पक्षों के रिश्तों में खटास आ गई और बाद में एफआईआर दर्ज हुई।

हाईकोर्ट ने टिप्पणी की, “यह मामला इस बात का उदाहरण है कि जब एक सहमति पर आधारित रिश्ता मनचाहे परिणाम तक नहीं पहुँचता, तो एक पक्ष उसे आपराधिक रंग देने की कोशिश करता है। अदालतें ऐसे मामलों को जारी नहीं रहने दे सकतीं क्योंकि यह न्याय प्रक्रिया का गंभीर दुरुपयोग है।”

इसके साथ ही अदालत ने एफआईआर रद्द कर दी।

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