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समय से पहले मॉनसून वापसी: राहत भी और चिंता के संकेत भी

Southwest monsoon has withdrawn from some parts of Rajasthan today, 14th September 2025. Conditions are favourable for withdrawal of Southwest Monsoon from some more parts of Rajasthan and some parts of Punjab and Gujarat during next 2-3 days. ii) Heavy to Very heavy rainfall over northeastern states and Maharashtra for next 3 days.

जयसिंह रावत

भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने इस बार मॉनसून की समय से पहले वापसी की पुष्टि की है। सामान्यत: मॉनसून 17 सितम्बर से पीछे हटना शुरू करता है, लेकिन इस बार यह प्रक्रिया 14 सितम्बर को ही शुरू हो गई। यानी तीन दिन पहले। मौसम के लिहाज से यह बदलाव भले मामूली लगे, लेकिन कृषि, जल प्रबंधन और आपदा नियंत्रण की दृष्टि से इसके गहरे निहितार्थ हैं।

मॉनसून वापसी की परंपरा और नया पैटर्न

मॉनसून की वापसी का सामान्य समय 2020 तक 1 सितम्बर तय माना जाता था। लेकिन 1971 से 2019 तक के आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर 2020 से इसे 17 सितम्बर कर दिया गया। यही कारण है कि हाल के वर्षों में वापसी की तुलना इस नई तारीख से की जाती है।

रिकॉर्ड के अनुसार:

2015 → 4 सितम्बर (सबसे जल्दी)

2016 → 15 सितम्बर

2017 → 27 सितम्बर

2018 → 29 सितम्बर

2019 → 9 अक्टूबर

2020 → 28 सितम्बर

2021 → 6 अक्टूबर

2022 → 30 सितम्बर

2023 → 25 सितम्बर

2024 → 23 सितम्बर

2025 → 14 सितम्बर (सबसे जल्दी, 2020 के बाद से)
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यह साफ है कि 2015 के बाद यह सबसे जल्दी मॉनसून वापसी है।

मॉनसून की यात्रा: आगमन से वापसी तक

*सामान्यत: मॉनसून 1 जून को केरल में दस्तक देता है और 38 दिनों (1 जून से 8 जुलाई) में पूरे देश को कवर कर लेता है। इस साल यह प्रक्रिया 37 दिनों में पूरी हुई।

*मॉनसून ने 24 मई को समय से पहले आगमन किया।

*29 जून तक पूरे भारत को कवर कर लिया।

*वापसी की प्रक्रिया 15 अक्टूबर तक पूरी होती है। इस बार यदि शुरुआत जल्दी हुई है तो उम्मीद है कि अंतिम वापसी भी कुछ पहले हो सकती है।

जल्दी वापसी के कारण

आईएमडी ने कहा है कि राजस्थान और उत्तर-पश्चिम भारत में अनुकूल मौसम परिस्थितियाँ बनीं, जिससे मॉनसून पीछे हटने लगा। पंजाब और गुजरात के कुछ हिस्सों से भी अगले दिनों में वापसी होगी। जल्दी वापसी का सीधा कारण आमतौर पर यह होता है कि वातावरण में नमी कम हो जाती है और मानसूनी हवाओं की जगह शुष्क पश्चिमी हवाएँ हावी होने लगती हैं।

बारिश का हाल

इस साल आईएमडी ने ‘सामान्य से ऊपर’ बारिश का अनुमान लगाया था। आँकड़े भी इस अनुमान की पुष्टि करते हैं।
-1 जून से 14 सितम्बर 2025 तक देश में 7% अधिक बारिश दर्ज हुई।
-उत्तर-पश्चिम भारत (राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर) में यह 32% अधिक रही।
-इस अतिरिक्त बारिश के कारण कई राज्यों में बाढ़ और आपदाएँ भी सामने आईं।

हिमाचल प्रदेश: बादल फटने और भूस्खलन।

उत्तराखंड: नदियों में उफान और बाढ़।

जम्मू-कश्मीर: पहाड़ी नालों का खतरा।

खेती पर असर

भारत की लगभग 55% खेती वर्षा पर निर्भर है। मॉनसून की समय से पहले वापसी किसानों के लिए मिले-जुले असर डाल सकती है।

1. फायदे

*खरीफ फसल की कटाई (धान, मक्का, ज्वार, सोयाबीन) के समय बारिश कम होगी, जिससे फसल बचने की संभावना बढ़ेगी।
*रबी फसलों (गेहूँ, चना, सरसों) की बुवाई की तैयारी जल्दी हो सकेगी।

2. नुकसान

*खरीफ फसलों को पकने के अंतिम चरण में पानी की जरूरत होती है। जल्दी वापसी से नमी की कमी हो सकती है।
*जिन क्षेत्रों में देर से बोआई हुई है, वहाँ फसलें प्रभावित होंगी।

जल और ऊर्जा प्रबंधन

भारत में जलाशयों और नदियों में पानी की उपलब्धता सीधे मॉनसून पर निर्भर करती है। जल्दी वापसी का असर इन क्षेत्रों में भी देखा जाएगा—

जलाशय: यदि पर्याप्त भराव हो चुका है तो समस्या नहीं, लेकिन यदि वापसी जल्दी हो जाए और जल स्तर कम रहे तो सिंचाई प्रभावित हो सकती है।

जलविद्युत परियोजनाएँ: उत्तराखंड, हिमाचल और पूर्वोत्तर राज्यों में बिजली उत्पादन वर्षा और नदियों के बहाव पर आधारित है। जल्दी वापसी से उत्पादन घट सकता है।


आपदा का खतरा

इस बार उत्तर-पश्चिम भारत में अधिक बारिश से भूस्खलन, बाढ़ और फ्लैश फ्लड की घटनाएँ बढ़ीं।

हिमाचल प्रदेश में भारी तबाही हुई।

*उत्तराखंड में अलकनंदा और भागीरथी नदियों का जलस्तर खतरे के निशान से ऊपर गया।

*महाराष्ट्र और पूर्वोत्तर में भी भारी वर्षा का अलर्ट जारी हुआ है।

*हालाँकि वापसी जल्दी होने से आगे और आपदा की संभावना कुछ कम हो सकती है।

असामान्य घटना नहीं

मॉनसून की जल्दी वापसी अपने आप में कोई असामान्य घटना नहीं है। लेकिन जब इसे बढ़ते तापमान, जलवायु परिवर्तन और वर्षा के बदलते पैटर्न के साथ देखा जाए तो यह एक गंभीर चेतावनी है।

*कभी बारिश समय से पहले शुरू हो रही है, कभी देर से।

*कभी अधिक हो रही है, कभी कम।

*और कभी-कभी एक ही सीजन में कहीं बाढ़ और कहीं सूखा।

*भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिए यह अस्थिरता सबसे बड़ी चुनौती है।

इसलिए ज़रूरत है कि—

*किसानों को मौसम की सटीक और समय पर जानकारी मिले।

*सिंचाई और जल प्रबंधन पर अधिक निवेश हो।

*जलवायु अनुकूल खेती को बढ़ावा दिया जाए।

जल्दी वापसी को राहत और चिंता, दोनों नजरिए से देखना होगा। राहत इसलिए कि आगे की फसलों के लिए अवसर बन रहा है, और चिंता इसलिए कि यह जलवायु परिवर्तन के अनिश्चित पैटर्न की ओर इशारा करता है।

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