पुण्यतिथि पर विशेष : अनटोल्ड लव स्टोरी ऑफ इंडियन बुलबुल, लता मंगेशकर
Indeed, the queen of melodies, Lata Mangeshkar, remained unmarried throughout her life, but it is also true that, like a flower, love found a corner of her heart. She had given her priceless heart to a prince. However, this love could not flourish because the king’s father had strictly instructed his son that the queen of their state could not be an ordinary woman. The prince, Raj Singh Dungarpur, who adored his father dearly, seemed to have accepted his father’s command. On the other hand, Lata Ji’s heart, which had been stolen by this prince, also regarded this instruction as her father’s decree. This prince, who had won Lata Ji’s heart, remained unmarried throughout his life. Despite numerous hardships, Lata Ji too stayed away from such a sacred bond. It is noteworthy that the love between them remained disciplined and respectful until the end, serving as an example for the youth. As a result of their meeting of hearts, Raj Singh lovingly called Lata Ji ‘Mithu.’ Though Lata Ji, six years older than Raj, could never become the princess of the Dungarpur family, it is another story that she reigned as the queen of melodies for decades. translation- Usha rawat
-प्रो़. श्याम सुंदर भाटिया-
बेशक सुरों की मल्लिका लता मंगेशकर आजीवन अविवाहित रहीं, लेकिन यह भी सच है, फूल के मानिंद उनके दिल के एक कोने में मुहब्बत भी घर कर गई थी यानी वह एक राजकुमार को अपना बेशकीमती दिल दे बैठी थीं। यह प्यार परवां नहीं चढ़ पाया, क्योंकि राजा के पिता ने अपने राजकुमार पुत्र को यह सख्त हिदायत दी थी, हमारी रियासत की महारानी कोई आम महिला नहीं होगी। पिताश्री से भी बेपनाह मुहब्बत करने वाले इस राजकुमार-राज सिंह डुंगरपुर ने मानो पिताश्री की हां में हामी भर दी हो। दूसरी तरफ धड़क रहे दिल ने भी इस हिदायत को अपने पिताश्री का ही फरमान माना। लता जी का दिल चुरा चुके यह राजकुमार जीवन पर्यंत वैवाहिक बंधन में नहीं बंधे। हालांकि तमाम दुश्वारियों के चलते लता जी भी ऐसे पवित्र बंधन से दूर रहीं। यह बात दीगर है, इन दोनों में प्रेम की डोर अंत तक अनुशासित और मर्यादित रही, युवाओं के लिए अनुकरणीय है। यह दो दिलों के मिलने का ही नतीजा था, राज सिंह लता जी को प्यार से मिट्ठू बुलाते थे। राज से छह बरस बड़ी लता जी अंततः डुंगरपुर घराने की शहजादी तो नहीं बन पाईं। यह बात दीगर- वह दशकों स्वरों की महारानी रहीं।
आखिर कौन थे राज सिंह डूंगरपुर
रेशमी आवाज की धनी रहीं लता जी का यूं तो राजस्थान से कोई सीधा रिश्ता नहीं है, लेकिन यहां की रियासत रही डुंगरपुर से उनका गहरा नाता रहा है। यह नाता था दोस्ती का। यह नाता था बेपनाह मुहब्बत का। राज सिंह का जन्म 19 दिसंबर, 1935 में राजस्थान के डूंगरपुर राजघराने में हुआ था । वह डूंगरपुर रियासत के राजा लक्ष्मणसिंह के छोटे पुत्र थे। राजसिंह ने 1955 से 1971 के दौरान 86 प्रथम श्रेणी के मैच खेले थे। उन्होंने 16 बरसों तक प्रथम श्रेणी का क्रिकेट खेला। वह करीब 20 साल तक बीसीसीआई से जुड़़़े रहे। राजसिंह 1959 में लॉ करने मुंबई गए थे। क्रिकेट खेलने के भी शौकीन थे। 1955 से ही राजस्थान रणजी टीम के सदस्य थे। मुंबई के क्रिकेट मैदान में लता जी के भाई हृदयनाथ मंगेशकर से मुलाकात हुई। उनके भाई अक्सर राज को अपने साथ घर लेकर जाते थे। राज सिंह पहली मुलाकात में ही लता को दिल दे बैठे थे। लता रिकॉर्डिंग में बिजी रहती थीं। बिजी शेड्यूल के कारण ज्यादा मिल नहीं पाती थीं। कहते हैं, राज उनके गाने सुनकर उनकी कमी को पूरा करते थे। फुर्सत मिलते ही दोनों मिलते थे।
लता-राज क्रिकेट के शौकीन थे
स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर और राज सिंह डूंगरपुर की दोस्ती कब प्यार में बदल गई, इसका अंदाजा तो उन दोनों को भी नहीं था। राज लता के गानों के दीवाने थे। वह एक टेप रिकॉर्डर हमेशा अपनी जेब में रखते थे और उनके गाने सुनते थे। लता की क्रिकेट के प्रति दीवानगी भी छिपी नहीं है। अक्सर वे मैदान पर राज को क्रिकेट खेलते देखने जाती थीं। दोनों अक्सर मिला करते थे। कहते हैं, राज और लता को एक-दूसरे का संग बहुत पसंद था। मुहब्बत परवान पर थी। दोनों शादी करना चाहते थे, लेकिन राज ने एक बार अपने माता-पिता से कहा तो वे बोले, लेकिन कोई आम लड़की आपके राजघराने की बहू नहीं होगी। वे चाहते थे कि राजपरिवार की लड़की ही राजपरिवार की बहू बननी चाहिए। लता में गुण खूब थे, लेकिन एक साधारण परिवार से थीं। मुहब्बत की पराजय हो गई और राज परिवार के आगे झुक गए। शादी न होने के बाद भी दोनों ने एक-दूसरे का साथ दिया था। चैरिटी में साथ काम किया था। हालांकि, दोनों की मुहब्बत आज केवल याद बनकर रह गई है।
डूंगरपुर से था ख़ास जुड़ाव
यह किस्सा भी दिलचस्प है। पाक मुहब्ब्त का एक उदाहरण है। बकौल राजघराने के खासमखास श्री राजेश जैन, भारत रत्न लता जी के 75वें जन्म दिन पर राजघराने के राजसिंह डूंगरपुर के मुंबई स्थित आवास में था। राज सर को मैंने सुबह दीदी के आवास पर जाने और बधाई देने की बात कही। इस पर राज सर ने तत्काल मुझे ही बुके लेकर जाने का फरमान दिया। जब मैं सुबह-सुबह 7 बजे बुके लेकर लता दीदी के बंगले पर पहुंचा तो नीचे हजारों की तादाद में वीआईपी हस्तियां मौजूद थीं। इतनी भीड़ को देखकर लगा, इतने वीआईपी के बीच आखिर लता जी से कैसे मिलूंगा? उनको बुके कैसे दे पाऊंगा? मुझे यह सौभाग्य कैसे प्राप्त होगा? लेकिन खुशकिस्मती से दीदी का आभार कहें या उनका बड़प्पन, एक व्यक्ति संदेश लेकर आया कि डूंगरपुर से राजेश जैन जी कौन हैं? बेस्रबी से बुलावे के लिए इंतजार में था। अपना नाम सुनते ही बोला, मैं हूं, तुरंत अंदर बुलाया गया। फिर मैंने लता दीदी को बुके देकर डूंगरपुर की ओर से उनको जन्मदिन की बधाई दी। इसी समय लता दीदी ने मुझे 25 लाख रुपए की स्वीकृति का पत्र भी सौंपा और कहा कि इसे डूंगरपुर कलेक्टर को दे देना। उन्होंने यह सौगात डूंगरपुर की बदहाल चिकित्सा को लेकर दी थी। इस भवन का नाम भी लता मंगेशकर भवन रखा गया। मौजूदा वक्त में इस भवन में एड्स रोगियों के लिए एआरटी सेंटर चल रहा है। उल्लेखनीय है, लता जी ने 2007-08 राज्यसभा सांसद रहते हुए राज जी के कहने पर ही यह चेक दिया था।
(लेखक सीनियर जर्नलिस्ट और रिसर्च स्कॉलर हैं। 2019 में मॉरीशस के अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन में पत्रकार भूषण सम्मान से अलंकृत हैं। प्रो. भाटिया कॉलेज ऑफ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन के एचओडी भी रह चुके हैं। संप्रति नॉर्थ इंडिया की नामचीन प्राइवेट यूनिवर्सिटी में मीडिया मैनेजर हैं।)