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संप्रदायिकता की आग, कभी पुरोला तो कभी गौचर और थराली

By-Jay Singh Rawat

एक नाबालिग लड़की से बलात्कार के मामले से इस शांत क्षेत्र में भड़की साम्प्रदायिकता की आग को कुछ संकीर्ण मानसिकता के शरारती तत्व बुझने देने का नाम नहीं ले रहे हैं। ये तत्व प्रशासन से मिली खुली छूट  से प्रोत्साहित हो कर भोले भाले पहाड़ी लोगों की धार्मिक भावनाओं को एक समुदाय विशेष के खिलाफ भड़का कर माहौल बिगाड़  रहे हैं । विरोध बलात्कार के नाम पर हो रहा है लेकिन निशाने पर पूरे सम्प्रदाय को लिया जा रहा है।

साम्प्रदायिक तत्वों द्वारा निरंतर एक सम्प्रदाय विशेष के खिलाफ गैर कानूनी हरकतें की जा रही हैं तथा उस सम्प्रदाय के लोगो को न केवल आजीविका चलाने पर रोक की मांग की जा रही है अपितु उन्हे वहां से भागने की भी मांग की जा रही है। ऐसी ही बेतुकी और असंवैधानिक मांग गौचर में भी कुछ संगठनों द्वारा की जा रही है। ऐसी ही मांग कुछ समय पहले उत्तरकाशी के पुरोला में भी की गयी थी। जो साबित करता है कि कुछ  संकीर्ण मानसिकता के तत्व सारे उत्तराखंड में साम्प्रदायिक माहौल खराब कर छूद्र स्वार्थ सिद्ध करना चाहते हैं। चर्चा यह भी है कि यह केदारनाथ उप चुनाव के लिए आधार तैयार किया जा रहा है। इस तरह के तत्वों के चेहरे जग जाहिर होने और सुप्रीम कोर्ट से स्पष्ट आदेश के बावजूद ऐसे तत्वों के खिलाफ कार्यवाही नहीं हो रही है।

उत्तराखंड में साम्प्रदायिक अशांति फैलाने में सोशल मीडिया भी पीछे नहीं है। सोशल मीडिया के लिए न तो पढ़ा लिखा होने और ना ही पत्रकारिता का जानकार होने की आवश्यकता है। ऐसे लोगो से पत्रकारिता से सम्बन्धित कानूनों, व्यवसायिक नैतिकता और संविधान की जानकारी की अपेक्षा भी नहींं की जा सकती है। ये कथित पत्रकार जिहाद शब्द का मतलब और अभिप्राय नहीं  जानते और फिर भी हर बात पर जिहाद जोड़ कर अफवाहें फैलाते रहते हैं  जबकि अफवाह फैलाना भी जुर्म है। थूक जिहाद की चर्चा थम नही रही है। पेशाब कांड पर जुबान पर ताले लगे हुए हैं। कुकर्मियों के कुकर्मों  को भी मजहब के आयने से देखा जा रहा है। थूक वाली अफवाह मैं  4 -5 दशकों से सुन रहा हूं ।

 

जो संगठन अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को क्षेत्र विशेष में व्यवसाय चलाने से रोकना चाहते हैं  उनको संविधान की जानकारी देना पुलिस का काम है जो पुलिस कर नहीं रही है। संविधान का अनुच्छेद 14 और 16 भारत के नागरिकों को समान अवसरों  का मौलिक अधिकार देता है। कोई भी और कही पर भी कानून के अनुसार शुरु किये गये रोजगार या आजीविका के अवसर को भारत के किसी भी नागरिक से नहीं छीन सकता। अगर कोई किसी नागरिक के जीने  के या आजीविका के और गैर प्रतिबंधित स्थान पर रहने के मौलिक अधिकार को छीनने का प्रयास करता है या रुकावट पैदा करता है तो वह कानून का उल्लंघन है और ऐसे तत्वों की जगह जेल है।

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नागरिक स्वतंत्रता वाले मौलिक अधकारों से सम्बन्धित संविधान के अनुच्छेद 19 की ये धाराएं भी देखिये ;-

(डी)भारत के राज्य क्षेत्र में स्वतन्त्र रूप से घूमने का अधिकार;
(इ)भारत के किसी भी हिस्से में निवास करने और बसने का अधिकार; तथा
(जी)कोई भी पेशा अपनाना, या कोई व्यवसाय, व्यापार या बिजनेस करना।

संविधान में मौलिक आधिकारों  से सम्बन्धित एक अन्य अनुच्छेद 14 क्या कहता है, उसे भी पढ़िए :-

कानून के समक्ष समानता राज्य भारत के क्षेत्र में किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या कानूनों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा

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कोई भी सरकार सत्ता संभालते समय किसी धर्मग्रन्थ की नही बल्कि संविधान की शपथ लेती है। इसलिए बिना राग द्वेष या अनुराग के सरकार का पहला फर्ज अपना राज धर्म निभाना है। अगर राज धर्म का पालन नहीं हो रहा और नागरिकों  के आधिकारों  तथा उनके जनोमाल की रक्षा नहीं हो रही हो तो वह संविधान की ली गयी शपथ का उल्लंघन है।

(नोट : जयसिंह रावत एक वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हैं और ये विचार लेखक के निजी हैं जिनसे एडमिन का सहमत होना जरूरी नहीं  है। – एडमिन उषा रावत)

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