पुलिस सुधार लागू नहीं कर रही हैं राज्य सरकारें

-श्याम सिंह रावत-
देश में पुलिस सुधारों की माँग लंबे समय से होती रही है। इसे लेकर वर्ष 1996 में सुप्रीम कोर्ट में दायर एक जनहित याचिका पर सितंबर, 2006 में आया ऐतिहासिक फैसला भारत में पुलिस सुधारों का सबसे महत्वपूर्ण निर्णय माना जाता है लेकिन 19 साल से भी ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी अधिकतर राज्यों ने उन सुधारों को आंशिक रूप में लागू किया है।

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह व अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (Writ Petition (Civil) No. 310 of 1996) मामले में 22 सितंबर, 2006 को अपने फैसले में कुल 7 प्रमुख निर्देश दिए थे, जिनका पालन केंद्र और सभी राज्य सरकारों को करना अनिवार्य था। ये निर्देश इस प्रकार हैं:—
1. राज्य सुरक्षा आयोग (SSC) का गठन—
राज्य स्तर पर एक सुरक्षा आयोग बने, जिसमें मुख्यमंत्री, गृह मंत्री, विपक्ष के नेता, मुख्य सचिव, डीजीपी आदि सदस्य हों। इसका काम पुलिस को राजनीतिक दखलंदाजी से बचाना और नीतिगत दिशा-निर्देश देना था।
2. DGP की नियुक्ति और न्यूनतम कार्यकाल—
डीजीपी की नियुक्ति मेरिट के आधार पर UPSC की एक समिति से तैयार पैनल में से हो और उसका कार्यकाल कम से कम 2 वर्ष का सुनिश्चित किया जाए (जब तक गंभीर आरोप या सजा न हो)।
3. SP, DSP, SHO स्तर के अन्य ऑपरेशनल पुलिस अधिकारियों को भी कम से कम 2 वर्ष का स्थिर कार्यकाल दिया जाए (ट्रांसफर केवल असाधारण परिस्थितियों में)।
4. पुलिस स्थापना बोर्ड—
ट्रांसफर, पोस्टिंग, प्रमोशन आदि का निर्णय यह बोर्ड लेगा, ताकि मनमाने ट्रांसफर न हों।
5. पुलिस शिकायत प्राधिकरण—
राज्य तथा जिला स्तर पर स्वतंत्र शिकायत प्राधिकरण बने जो पुलिस के खिलाफ गंभीर कदाचार (misconduct) की जाँच करें।
6. पुलिस और जाँच एजेंसी का पृथक्करण—
कानून-व्यवस्था और अपराध अनुसंधान के काम को अलग किया जाए, ताकि जाँच प्रभावित न हो।
7. राष्ट्रीय सुरक्षा आयोग—
केंद्र स्तर पर भी एक आयोग बने जो वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की नियुक्ति के लिए पैनल तैयार करे।
कोर्ट ने अपने दिशा-निर्देशों के क्रियान्वयन की शुरू में खुद निगरानी की, फिर 2008 में जस्टिस के.टी. थॉमस की अध्यक्षता में एक मॉनिटरिंग कमिटी गठित की, जिसकी रिपोर्ट 2010 में आई।
राज्यों ने इन निर्देशों का पूरा पालन नहीं किया, इसलिए प्रकाश सिंह को 2009, 2010, 2013 आदि में कई बार कोर्ट में अवमानना याचिकाएं दायर करनी पड़ीं तो कोर्ट ने राज्यों को कई बार फटकार लगाई।
सुप्रीम कोर्ट वर्ष 2024-2025 तक, स्वयं संज्ञान लेकर और स्थिति रिपोर्ट के जरिए अनुपालन की जाँच करता रहता है।
वर्तमान स्थिति—
कार्यान्वयन आंशिक और असमान है। कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव (CHRI) की 2020 की रिपोर्ट (जो 2024-25 तक प्रासंगिक बनी हुई है) के अनुसार, सिक्किम, असम, केरल और कुछ पूर्वोत्तर राज्य (जैसे मिजोरम) द्वारा SSC और PCA जैसे तंत्र स्थापित किये हैं लेकिन उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्यों में अभी भी राजनीतिक हस्तक्षेप और मनमाने ट्रांसफर आम हैं। इनके अलावा अन्य किसी भी राज्य ने इन 7 निर्देशों का पूर्ण और ईमानदारी से अनुपालन नहीं किया है।
22 सितंबर, 2025 को फैसले की 19वीं वर्षगांठ पर प्रकाश सिंह ने खुद एक लेख में कहा कि सुधारों का पूर्ण कार्यान्वयन अभी भी अधर में है। राजनीतिक हस्तक्षेप, मनमाने ट्रांसफर और शिकायत प्राधिकरणों की कमजोरी बनी हुई है।
सारत: 2006 का प्रकाश सिंह मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए दिशा-निर्देश भारत में पुलिस सुधार का ब्लूप्रिंट हैं, लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में इसका क्रियान्वयन आज भी अधर में है।
(लेखक के बारे में :-पिछले 46 साल से अनेक दैनिक समाचार पत्र और पत्रिकाओं में वरिष्ठ पदों पर रहते हुए पत्रकारिता में सक्रिय। सम्प्रति विभिन्न समाचार पत्रों व पोर्टलों के लिए स्वतंत्र लेखन।)
