विचित्र किन्तु सत्य : स्कूल में अकेले छात्र पर मास्टर- 2, आया भी -2 और भोजन माता- 1
-प्रभुपाल सिंह रावत –
पौड़ी जिले के रिखणीखाल प्रखंड के एक राजकीय प्राथमिक विद्यालय क्वीराली तोल्यो के प्राथमिक विद्यालय में कक्षा एक से कक्षा पांच की कक्षाओं में गिनती का एक अकेला छात्र पढ़ाई करता है।वह भी दो किलोमीटर दूर के गाँव बिशणगयाऊ से जंगल के रास्ते आता है। उसे कभी-कभार उसके अभिभावक स्कूल तक छोडने आते हैं। वह भी सप्ताह में एक या दो दिन ही,जंगल होने के कारण जंगली जानवरों का भय बना रहता है।
मात्र एक छात्र के पठन-पाठन आदि के लिए 2 अध्यापक, 2 ऑगनबाडी कार्य कत्री व 1 भोजनमाता की नौकरी पक रही है।जो कि इलाके में एक चौंकानी वाली खबर बनी है।ऑगनबाडी कार्य कत्री व भोजनमाता स्थानीय महिलायें हैं। अध्यापकों में दीपदर्शन व भगवान दास के नाम सामने आ रहे हैं। ये जानकारी स्थानीय समाजसेवी विनोद मैंदोला से मिली है।
उत्तराखंड में तेजी से हो रहे पलायन के चलते सरकारी स्कूलों के यह दशा लगभग सर्वत्र नजर आ रही है। सरकार का ध्यान अपनी शिक्षा व्यवस्था में सुधार करने के बजाय सस्ती लोकप्रियता जुटाने पर है। सरकार को अपनी मरणासन्न होती जा रही शिक्षा व्यवस्था के बजाय UCC जैसे गैर जरुरी मुद्दों पर है।
उत्तराखंड में 3,573 विद्यालयों में छात्र संख्या 10 या फिर इससे भी कम रह गई है। इसमें सबसे अधिक 785 स्कूल पौड़ी जिले के हैं, जबकि सबसे कम तीन स्कूल हरिद्वार जिले के हैं।
विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य के सरकारी स्कूल लगातार छात्रविहीन हो रहे हैं। हाल यह है कि 1,671 सरकारी विद्यालयों में ताला लटक गया है, जबकि अन्य 3573 बंद होने की कगार पर हैं।
हैरानी की बात यह है कि 102 स्कूल ऐसे हैं, जिनमें हर स्कूल में मात्र एक-एक छात्र अध्ययनरत हैं। प्रदेश में एक अप्रैल 2024 से नया शिक्षा सत्र शुरू हो रहा है, लेकिन इस सत्र के शुरू होने से पहले राज्य के कई विद्यालयों में ताला लटक गया है। शिक्षा महानिदेशालय ने हाल ही में राज्य के सभी मुख्य शिक्षा अधिकारियों से जिलों में बंद हो चुके विद्यालयों की रिपोर्ट मांगी थी।
जिलों से मिली रिपोर्ट के मुताबिक, सरकारी विद्यालय छात्रविहीन होने से लगातार बंद हो रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, 3,573 विद्यालयों में छात्र संख्या 10 या फिर इससे भी कम रह गई है। इसमें सबसे अधिक 785 स्कूल पौड़ी जिले के हैं, जबकि सबसे कम तीन स्कूल हरिद्वार जिले के हैं।