नयार नदी अध्ययन यात्रा दल के सदस्यों ने दी दून पुस्तकालय में प्रस्तुति
देहरादून, 15 मई. दून पुस्तकालय की ओर से आज नयार नदी:स्रोत से संगम अध्ययन यात्रा दल के सदस्यों ने नयार नदी के पारिस्थिकी तंत्र को जानने व समझने, उसमें आये बदलाव और उसके समाधान के प्रति सम्भावनाओं पर अपने यात्रा अनुभवों को श्रोताओं के मध्य रखा.
उल्लेखनीय है कि ‘पहाड़’ संस्था के संयोजन में 1974 से हर दस साल के अंतराल में की जाने वाली असकोट – आराकोट यात्रा का पिछले वर्ष 2024 में भी यात्रा सम्पन्न हुई. इस साल इस यात्रा के समानांतर कुछ जगहों पर नदी यात्राएं होती रहीं. इसमें विगत माह 21-28 अप्रैल, 2025 में कुछ सदस्यों ने नयार नदी के उद्गम स्थल दूधातोली से गंगा नदी में संगम व्यास घाट तक लगभग 104 किमी. की अध्ययन यात्रा की.
प्रस्तुतिकरण के दौरान यात्रा दल के वरिष्ठ सदस्य, यायावर लेखक डॉ. अरुण कुकसाल ने कहा कि पौड़ी जनपद में स्थित नयार नदी का उदगम स्थल दूधातोली जलागम क्षेत्र है। दूधातोली को हरा समुद्र या फिर पानी की मीनार/पामीर तथा जलवायु नियंत्रक भी कहा जाता है। यह जलागम लगभग पौड़ी, चमोली और अल्मोड़ा जनपद का एक संयुक्त क्षेत्र है। इसका उत्तरी हिस्सा चमोली, पूर्वी अल्मोड़ा और दक्षिण-पश्चिम पौड़ी (गढ़वाल) जनपद में शामिल है।
वस्तुतः दूधातोली क्षेत्र सामाजिक दृष्टि से राठ बहुल क्षेत्र में आता है।
डॉ. कुकसाल ने कहा कि पूर्वी और पश्चिमी नयार नदी का उदगम दूधातोली क्षेत्र के मुरलीकोठ चोटी 2900 मीटर ऊंचाई के पनढाल से निकलने वाली जलधाराओं से होता है. दो अलग -अलग दिशाओं पूर्वी व पश्चिमी नयार में यह दो नदियाँ बहती हैं और सतपुली में मिलकर अपने-अपने क्षेत्र से लगभग 100 किमी. की दूरी तय करके सतपुली से 2 किमी. आगे दुनै घाट नामक स्थल पर आपस में मिल कर नयार नदी के नाम से 20 किमी. की यात्रा तय करके व्यासघाट में नयार नदी गंगा में समाहित हो जाती है। उन्होंने अपनी प्रस्तुति में यात्रा के दृश्य वीडियो भी दिखाए.
श्री जयदीप रावत ने नयार नदी के जलागम क्षेत्र की अध्ययन यात्रा से उभरे कई सामाजिक तथ्यों को प्रस्तुत किया उन्होंने पूर्वी और पश्चिमी नयार नदी के प्रभाव और प्रवाह क्षेत्र के यात्रा मार्गों और उनमें शामिल होने वाली जलधाराओं का प्रमाणिक चिन्ह्नीकरण करने की बात कही. उन्होंने स्लाइड शो के माध्यम से यात्रा अनुभवों के महत्वपूर्ण बिंदुओं को बहुत बारीकी से दर्शकों के सम्मुख रखा.
राठ महाविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. वीरेंद्र चंद ने कहा कि दूधातोली क्षेत्र से पांच गैर हिमानी नदियां यथा- पश्चिमी रामगंगा, पूर्वी नयार, पश्चिमी नयार, आटागाड और वीनू जन्म लेती हैं। पश्चिमी रामगंगा उत्तराखण्ड हिमालय की सबसे बड़ी गैर हिमानी नदी है। उन्होंने पूर्वी व पश्चिमी नयार और उसमें मिलने वाली छोटी-छोटी जलधाराओं के जल प्रवाह और उनमें बढ़ते प्रदूषण पर चिंता व्यक्त की और उस ओर ध्यान देने की बात कही.
राठ महाविद्यालय, पैठाणी के युवा छात्रों, यश तिवारी, सागर बिष्ट व कुलदीप सिंह ने भी अध्ययन यात्रा के अपने अनुभव श्रोताओं के समक्ष रखे.
पूर्व मुख्य सचिव उत्तराखंड शासन श्री एन एस नपलच्याल ने इस तरह की यात्राओं की जरुरत बताते हुए इसे महत्वपूर्ण बताया. इस दिशा में उन्होंने युवा पीढ़ी को आगे आकर अपने नदियों व जंगल ज़मीन के अध्ययन कर उसके संरक्षण व विकास की दिशा में स्थानीय सत्र पर काम करना चाहिए.
युवा छात्रों ने कहा कि नयार नदी घाटी क्षेत्र के निवासी आज भी अपनी अजीविका जो मूलतः पारम्परिक खेती-बाड़ी और पशुपालन पर आश्रित है उसे अपनी मेहनत के बल पर जीवित रखे हुए हैं. यहाँ की नयार व उसकी सहायक जल धाराओं से स्थानीय समाज की आर्थिकी व सामाजिक व सांस्कृतिक मान्यताएं जुडी रही हैं. इस दृष्टि से नयार नदी के अस्तित्व को बचाये रखने के प्रयास किये जाने जरुरी हैं.
वक्तताओं ने पूर्वी नयार नदी से सतपूली में 14 सितम्बर, 1951 को आई भीषण बाढ़ के प्रारम्भिक स्थल डिन्यालू जो मरोड़ा गांव के निकट स्थित है उसके तथ्यों का पर भी जानकारी दी गयी. कार्यक्रम के दौरान वक्ताओं की ओर से नयार के जल प्रवाह तंत्र में निरंतर कमी, उच्च क्षेत्रों में मिश्रित वनों की कमी,पशुचारकों और वनकर्मियों की मनस्थिति और कार्य की दशा, के साथ ही सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक एवं आर्थिक तंत्र में हो रहे बहुआयामी बदलावों के बिंदु भी सामने आये. क्षेत्र की कुछ प्रमुख विभूतियों यथा- वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली, तीलू रौतेली, जसवन्त सिंह के पैतृक गांवों स्थिति को जाना व समझा गया।
सुझाव के तौर पर पानी को केन्द्र में रखकर दूधातोली का प्रबन्धन करने व संवेदनशील पारिस्थितिकीय क्षेत्र पर अपेक्षित देने के साथ हीचारागाह, डेयरी उद्योग को बढ़ावा दिए जाने,दूधातोली के व्यापक संरक्षण, प्रबन्धन एवं स्थानीय समुदाय के रोजगार हेतु विशेष परियोजना तैयार करने की बात कही गयी.
कार्यक्रम के दौरान उपस्थित लोगों ने सवाल-जबाब भी किये.
अंत में जन कवि डॉ. अतुल शर्मा नेअपनी कविता ‘नदी तू बहती रहना…’ सुनाकर सभागर के लोगों में जोश भर दिया. यात्रा दल के सदस्यों ने असकोट आराकोट गीत गाकर कार्यक्रम का समापन किया. कार्यक्रम का संचालन गांधीवादी विचारक बिजू नेगी और दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी ने किया.
कार्यक्रम के दौरान शहर के कई समाज सेवी, विचारक, साहित्यकार, लेखक, साहित्य प्रेमी, पुस्तकालय के युवा पाठक सहित , प्रो. कैलाश चंद्र पुरोहित, सुंदर सिंहआलोक कुमार, अरुण कुमार, मनोज इष्टवाल, कमल भट्ट, रेखा शर्मा, रंजना शर्मा, बिष्ट,अरुण कुमार असफल, आलोक सरीन, ए के कुकसाल, कुलभूशण, भारत सिंह रावत आदि उपस्थित रहे.