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सही मायनों में एक विश्व मानव थे सुन्दर लाल बहुगुणा

 

Apart from being a world renowned environmentalist, Bahuguna was a freedom fighter, a Sarvodayi, a journalist and a great social revolutionary. Late  Padmvibhushan  Sundar Lal Bahuguna was a great personality who created awareness about forests and especially the environment across the world. Although the Chipko movement was started by Gaura Devi and her rural friends on 24 March 1974 with the inspiration of Chandi Prasad Bhatt, Comrade Govand Singh Rawat and Alam Singh Bisht etc. in Reni, the border area of Chamoli district. But the role played by Sunderlal Bahuguna in spreading the message of Reni village about saving the trees that provide life and air to every corner of the world was extraordinary. He tried to save not only the trees but also every creation of nature on this earth from the whims of man by becoming the voice of them. But that was one aspect of Bahuguna’s life whereas his role for the society was multifaceted.

 


-जयसिंह रावत
विश्व विख्यात पर्यावरणविद होने के साथ ही बहुगुणा एक स्वाधीनता सेनानी, एक सर्वोदयी, एक पत्रकार और महान समाजिक क्रतिकारी थे।
स्वर्गीय बहुगुणा को  दुनियाभर में वनों और खास कर पर्यावरण के प्रति चेतना जागाने वाली महान हस्ती थे। यद्यपि चिपको आन्दोलन का श्रीगणेश जिला चमोली के सीमान्त क्षेत्र रेणी में चण्डी प्रसाद भट्ट, कामरेड गोवन्द सिंह रावत एवं आलम सिंह बिष्ट आदि की प्रेरणा से गौरा देवी एवं उनकी ग्रामीण सहेलियों ने 24 मार्च 1974 में कर दिया था। लेकिन प्राण वायु देने वाले वृक्षों को बचाने वाले रेणी गांव के उस संदेश को दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचाने में सुन्दरलाल बहुगुणा ने जो भूमिका अदा की वह असाधारण थी। उन्होंने पेड़ों के लिये ही नहीं बल्कि इस धरती पर प्रकृति की हर एक कृति की आवाज बन कर उन्हें मनुष्य की हवश से बचाने का प्रयास किया। लेकिन वह बहुगुणा के जीवन का एक पक्ष था जबकि उनकी भूमिका समाज के लिये बहुपक्षीय थी।

 

TWO LEGENDS OF HISTORIC CHIPKO MOVEMENT, SUNDAR LAL BAHUGUNA AND CHANDI PRASAD BHATT, WHO ATTRACTED ATTENTION OF THE WORLD AT ENVIRONMENT AND FORESTS.

राजशाही के खिलाफ भी लड़ते रहे
देश जब अग्रेजों की गुलामी से छटपटा रहा था तब सुन्दरलाल कम उम्र में ही आजादी के आन्दोलन में कूछ पड़े। टिहरी रियासत में बरा-बेगार जैसी कुरीतियों और प्रजा की आवाज का दमन करने के कारण राजशाही के खिलाफ भड़के जन विद्रोह में उन्होंने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। बहुगुणा टिहरी की राजशाही के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ने वाले टिहरी प्रजामण्डल के सचिव भी रहे। प्रजामण्डल के आन्दोलन के दौरान उन्हें 7 महीनों तक टिहरी जेल की उसी कोठरी में रखा गया जिसमें अमर शहीद श्रीदेव सुमन ने 84 दिन की भूख हड़ताल के बाद प्राणोत्सर्ग किया था।

सत्ता के बजाय संघर्ष चुना बहुगुणा ने

1 अगस्त 1949 को टिहरी राज्य के आजाद भारत के संयुक्त प्रान्त में विलय के बाद सुन्दरलाल बहुगुणा ने सक्रिय राजनीति से जुड़ कर सत्ता का सुख भोगने के बजाय बिनोवा भावे के सर्वोदय आन्दोलन में जुड़ कर समाज की बुराइयों के खिलाफ लड़ने और समाज को नयी दिशा देने का बीड़ा उठाया। वह सन् 1952 तक कांग्रेस से जुड़े रहे। चूंकि टिहरी की आजादी के बाद सम्पूर्ण टिहरी प्रजामण्डल भी कांग्रेस की टिहरी जिला इंकाई बन गया था, इसलिये बहुगुणा का कांग्रेसी होना स्वाभाविक ही था। सुन्दरलाल बहुगुणा को राजनीति से विरक्ति तब से शुरू हो गयी थी जबकि वह टिहरी राज्य की विधान परिषद के चुनाव हार गये थे। टिहरी की राजशाही के साथ ही अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष में सुन्दरलाल बहुगुणा की अहं भूमिका की जानकारी मुझे तब मिली जब कि मैं अपनी पुस्तक ‘टिहरी राज्य के ऐतिहासिक जन विद्रोह’ के लिये शोध कर रहा था।

टिहरी राज्य विधान परिषद के चुनाव हार गये थे

भारत सरकार के देशी राज्य विभाग के सचिव वी.पी. मेनन की मध्यस्थता में टिहरी नरेश और प्रजामण्डल के बीच हुये समझौते के तहत 21 अगस्त 1948 को 30 सदस्यीय टिहरी राज्य विधान परिषद के चुनाव हुये थे जिसमें प्रजामण्डल के अध्यक्ष परिपूर्णानन्द पैन्यूली, सचिव सुन्दर लाल बहुगुणा और प्रमुख नेता आनन्द शरण रतूड़ी जैसे दिग्गज चुनाव हार गये थे। जबकि प्रजामण्डल को 30 में 24 सीट मिलने पर उसकी चार सदस्यीय अंतरिम सरकार बन गयी थी। परिपूर्णानन्द पैन्यूली टिहरी सीट से राजशाही समर्थक खेमराज बहुगुणा से और नरेन्द्रनगर सीट पर सुन्दर लाल बहुगुणा राजा की फौज के कमाण्डर रहे कर्नल नत्थू सिंह सजवाण से चुनाव हार गये थे। टिहरी की आजादी के समय रियासत के भविष्य को लेकर प्रजामण्डल में दो धाराएं मुखर हो गयीं थी। उनमें एक धारा टिहरी की भौगोलिक और सांस्कृतिक स्थिति के अनुरूप हिमाचल प्रदेश में मिलने की पक्षधर थी तो दूसरी धारा सुंयक्त प्रान्त के मुख्यमंत्री पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त से प्रभावित होने के कारण ब्रिटिश गढ़वाल समेत शेष उत्तराखण्ड के साथ ही संयुक्त प्रान्त में मिलने की पक्षधर थी। सुन्दरलाल बहुगुणा भी टिहरी को संयुक्त प्रान्त में मिलाने के पक्षधर थे और अन्ततः हुआ भी वही।

दलितों के मसीहा भी थे बहुगुणा

सारे देश की ही तरह उत्तराखण्ड में भी छुआछूत की बीमारी सदियों से चली आ रही थी। बहुगुणा का जन्म एक उच्च कुलीन ब्राह्मण परिवार में होने के बावजूद उन्होंने छुआछूत के खिलाफ बिगुल बजाया और हरिजनोत्थान के लिये ब्राह्मणवादी समाज की कुरीतियों का मुकाबला किया। उन्होने घनश्याम सैलानी आदि के साथ बूढाकेदार में हरिजनों का मंदिर प्रवेश कराया। वरिष्ठ आइएएस रहे अनुसूचित जाति के एक अधिकारी चन्द्र सिंह आज भी अपनी तरक्की के लिये सारा श्रेय बहुगुणा जी को देते हैं और कहते हैं कि उन्होंने उनकी पढ़ाई के लिये न केवल हौसलाफजाई की अपितु आर्थिक मदद भी दी और पढ़ने का इंतजाम भी कराया। बहुगुणा ने सन् 60 के दशक में शराबखोरी के खिलाफ भी आन्दोलन छेड़ा। उस दौरान वह 3 बार जेल गये। इस अभियान में उनकी पत्नी विमला बहुगुणा सहित महिलाओं की भागीदारी प्रमुख रही। बिनोवा के भूदान आन्दोलन की सफलता के बाद बहुगुणा ने पहाड़ की महिलाओं को उनके कष्टों से मुक्त कराने के लिये भी आन्दोलन चलाया। यद्यपि शुरू में वह टिहरी बांध के समर्थक रहे लेकिन बाद में वह खिलाफ हो गये। उन्होंने बांध के खिलाफ उन्होंने 3 बार भूखहड़ताल की। भविष्य में बांध के खतरों से उत्तराखण्डवासियों को जागरूक करने एवं सरकार को सद्बुद्धि दिलाने के लिये सन् 1995 उन्होंने 74 दिन तक उपवास भी किया। उन्हें कई बार पुलिस पकड़ कर जेल में भी डालती रही मगर वह अपने उद्ेश्य से टस से मस नहीं हुये।

ऋषिगंगा की बाढ़ और बहुगुणा की चेतावनिया

फरबरी 2021 में चिपको की जन्मस्थली रेणी गांव में ऋषिगंगा और धौली गंगा में बिजली प्रोजेक्टों से आई भयंकर बाढ़ ने सुन्दर लाल बहुगुणा और चण्डी प्रसाद भट्ट की बिजली प्रोजेक्टों के प्रति आशंका सही साबित हुयी है। उत्तराखण्ड आन्दोलन को उनका खुला समर्थन रहा। बहुगुणा उन लोगों में से नहीं थे जो कि धारा के साथ बह कर ख्याति अर्जित करते हैं। उनमें शुरू से ही धारा के विपरीत चलने का माद्दा रहा। इसीलिये कई बार उन्हें जनाक्रोश का सामना भी करना पड़ा। टिहरी बांध के मामले में भी उन्हें कई बार बांध समर्थकों और ठेकेदार संस्कृति के उपासकों का विरोध झेलना पड़ा। सुन्दर लाल बहुगुणा का निधन वास्तव में एक युग का अन्त है। यह एक जीवित इतिहास के रूप में भारत ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व के लिये एक प्रेरणा पुंज थे।

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