राष्ट्रीय

सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से धर्मांतरण कानूनों पर रोक लगाने की याचिकाओं पर जवाब मांगा

नयी दिल्ली. 17 सितम्बर। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (16 सितंबर 2025) को उन राज्यों से जवाब मांगा, जिन्होंने एंटी-कन्वर्जन कानून बनाए हैं, जिसमें याचिकाओं के माध्यम से इन कानूनों पर रोक लगाने की मांग की गई है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बी आर गवई और जस्टिस विनोद चंद्रन की बेंच एक समूह याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी, जो मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा सहित अन्य राज्यों द्वारा बनाए गए एंटी-कन्वर्जन कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दे रही हैं।

मुख्य बिंदु:

  • याचिकाकर्ताओं की दलीलें: वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कोर्ट को बताया कि ये कानून असंवैधानिक हैं क्योंकि वे विवाह के उद्देश्य से धार्मिक रूपांतरण को प्रतिबंधित करते हैं। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश ने 2024 में अपने कानून में संशोधन किया, जिसमें विवाह के माध्यम से अवैध रूपांतरण के लिए न्यूनतम सजा 20 वर्ष कर दी गई, जो व्यक्ति के प्राकृतिक जीवन की अवधि तक बढ़ सकती है। जमानत की शर्तें भी सख्त कर दी गई हैं, जो PMLA और TADA जैसे कानूनों के समान हैं, जिसमें आरोपी को साबित करना पड़ता है कि वह निर्दोष है (रिवर्स बर्डन ऑफ प्रूफ)। सिब्बल ने कहा कि इससे अंतर-धार्मिक विवाह असंभव हो जाते हैं।
  • हालिया विकास: हाल ही में राजस्थान ने भी ऐसा ही कानून पारित किया है। गुजरात हाईकोर्ट ने राज्य के एंटी-कन्वर्जन कानून के कुछ प्रावधानों पर रोक लगा दी थी, जबकि मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य के कानून के एक प्रावधान पर रोक लगाई थी।
  • सुप्रीम कोर्ट का रुख: कोर्ट ने राज्यों से जवाब मांगा है, लेकिन अभी तक इन कानूनों पर कोई अंतरिम रोक नहीं लगाई गई है। यह मामला 2023 से लंबित है, जब सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न हाईकोर्टों से संबंधित याचिकाओं को खुद के पास स्थानांतरित करने की अनुमति दी थी। तब से कई सुनवाइयाँ हुई हैं, लेकिन अंतिम निर्णय नहीं आया। 2020 से भाजपा शासित कई राज्यों ने ऐसे सख्त कानून बनाए हैं, जो विवाह के लिए धार्मिक रूपांतरण को रोकते हैं।

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