पौड़ी रामलीला के युग पुरुष,सुरेंद्र सिंह बर्तवाल
-डा0 योगेश धस्माना
गढ़वाल में पौड़ी और देहरादून में 1897 के वर्ष रामलीला मंचन के प्रमाण मिलते है। किंतु लिखित इतिहास पौड़ी रामलीला का विधिवत रूप से 1905 से ही मिलता है। इस वर्ष पूर्ण चंद्र त्रिपाठी और पौड़ी के चर्चित रहे फोटो ग्राफर धीरेंद्र रावत के दादाजी नरेंद्रसिंह रावत जी,जो उस वक्त जिलाधीश कार्यालय में ओसी कार्यालय अधीक्षक पद पर थे,ने इसकी विधिवत शुरुवात की थी। बाद में भोला दत्त काला और एडवोकेट तारा दत्त गैरोला ने इसे विस्तार दिया।
सन 1918 से 1952 तक सुरेंद्र सिंह ,जो पहले पी.डब्ल्यू.डी. फिर जिला बोर्ड के प्रथम सचिव के रूप में 1952 तक ने रामलीला को 7 दिन से बड़ा कर 10 दिवसीय करने के साथ इसकी राग रागिनी को शास्त्रीय रागों में ढालने का ऐतिहासिक कार्य किया। तब रामलीला की तालीम उनके एजेंसी स्थित घर पर ही होती थी। रामलीला का सामान भी उनके घर पर ही रखा जाता था।
सुरेंद्र सिंह ने खुद न केवल कुशल संगीतज्ञ थे, वरन रामलीला की चौपाइयों को लिपिबद्ध कर उन्हे शास्त्रीय रागो में ढालने का भी काम किया। आगे चल कर अजीत सिंह नेगी, भूपेंद्रनेगी, मेरे पिता दया सागर धस्माना आदि अनेक लोगों ने इन धुनों को कर्नप्रिय बनाने में अपना योगदान दिया।
पौड़ी की रामलीला की एक खास पहचान यह थी की इस आयोजन में तत्कालीन डीएम 1907 जोसेफ क्ले और स्टोवल ने भी बहुत सक्रियता दिखाई थी।कलाकारों का उत्साह वर्धन के लिए वे पुरस्कार वितरण समारोह में उपस्थित रहते थे। इस सब आयोजन में नरेंद्र रावत जी की सक्रियता सर्वाधिक होती थी। इन्ही के घर पर मुकंदीलाल बैरिस्टर 1900 से 1904 तक रहे थे। दुर्भाग्यवश इनका कोई फोटो उपलब्ध नही है।
सुरेंद्र सिंह जी के बाद 1990 तक पौड़ी रामलीला की साज सज्जा को भगवंत सिंह नेगी जी और फिर उनके पुत्र आशुतोष नेगी ने सभाला। अब गौरी शंकर थपलियाल और मनोज रावत के नेतृत्व में पदमेंद्र नेगी, दिनेश रावत उर्फ टिन्नू सहित वीरेंद्र खकरियाल आदि नई पीढ़ी के युवक युवतियां श्रद्धा भाव से इसका आयोजन कर रहे है। रामलीला के युग पुरुष सुरेंद्र बर्तवाल जी का फोटो पाठको के लिए साझा कर रहा हूं।