सुशीला कार्की: नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश बनी पहली महिला प्रधानमंत्री

–जयसिंह रावत–
सुशीला कार्की नेपाल के न्यायिक इतिहास में एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व हैं, जिन्होंने नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्य किया। हाल के राजनीतिक संकट और अस्थिरता के बीच, खासकर 2025 में नेपाल में हिंसक प्रदर्शनों और सरकार के पतन के बाद, सुशीला कार्की का नाम एक बार फिर चर्चा में है। उन्हें अंतरिम सरकार की कमान संभालने के लिए समर्थन मिल रहा है, जो नेपाल की ध्वस्त राजनीतिक और कानूनी व्यवस्था को संभालने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। यह लेख उनके जीवन, करियर, भारत के साथ संबंध, राजशाही पर उनके विचार, और वर्तमान चुनौतियों पर उनके संभावित दृष्टिकोण को अपडेट करता है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
सुशीला कार्की का जन्म 7 जून 1952 को नेपाल के मोरंग जिले, बिराटनगर में हुआ। उन्होंने महेन्द्र मोरंग कैंपस, बिराटनगर से स्नातक की पढ़ाई पूरी की और इसके बाद भारत के बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से 1975 में राजनीति शास्त्र में मास्टर डिग्री हासिल की। इसके बाद, उन्होंने 1978 में त्रिभुवन विश्वविद्यालय, नेपाल से कानून की डिग्री प्राप्त की। भारत में उनकी शिक्षा ने उन्हें भारतीय संस्कृति और राजनीतिक व्यवस्था से परिचित कराया, जो उनके दृष्टिकोण को व्यापक बनाने में सहायक रहा।
करियर और उपलब्धियाँ
सुशीला कार्की ने अपने करियर की शुरुआत 1979 में वकालत से की और 2009 में सुप्रीम कोर्ट की अस्थायी न्यायाधीश बनीं। 2010 में वे स्थायी न्यायाधीश बनीं और 11 जुलाई 2016 को नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश नियुक्त हुईं। उनके कार्यकाल (13 अप्रैल 2016 से 6 जून 2017) में उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर रुख अपनाया और कई ऐतिहासिक फैसले सुनाए, जैसे कि अख्तियार दुरुपयोग अनुसंधान आयोग के प्रमुख लोकमान सिंह कार्की को अयोग्य घोषित करना। उनके फैसलों ने प्रशासन और राजनीति में जवाबदेही के नए मानक स्थापित किए।
2017 में उनके खिलाफ संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया, जिसे राजनीतिक रूप से प्रेरित माना गया। जनता के समर्थन और सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद यह प्रस्ताव वापस लिया गया, जिसने उनकी निष्पक्षता और स्वतंत्रता को और मजबूत किया।
भारत के साथ संबंध
सुशीला कार्की की भारत के साथ गहरी शैक्षिक और सांस्कृतिक कड़ी रही है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में उनकी शिक्षा ने उन्हें भारत की लोकतांत्रिक और कानूनी प्रणालियों से परिचित कराया। भारत और नेपाल के बीच घनिष्ठ संबंधों को देखते हुए, वह दोनों देशों के बीच सहयोग को महत्व देती हैं। नेपाल की वर्तमान अस्थिरता के संदर्भ में, वह भारत के साथ कूटनीतिक और आर्थिक सहयोग को मजबूत करने की पक्षधर हो सकती हैं, विशेष रूप से कानून व्यवस्था और आर्थिक स्थिरता को बहाल करने के लिए। हालांकि, उनके स्वतंत्र और निष्पक्ष स्वभाव को देखते हुए, वह भारत या किसी अन्य देश के अनुचित हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं करेंगी।
राजशाही पर दृष्टिकोण
नेपाल में 2008 में राजशाही का अंत हो गया, और सुशीला कार्की ने अपने करियर में लोकतांत्रिक और संवैधानिक मूल्यों को प्राथमिकता दी है। उनके नेपाली कांग्रेस के प्रति झुकाव के बावजूद, उन्होंने हमेशा कानून के शासन को सर्वोपरि रखा। राजशाही की बहाली के विषय पर उनके कोई स्पष्ट सार्वजनिक बयान उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन उनके न्यायिक दर्शन और भ्रष्टाचार विरोधी रुख को देखते हुए, वह ऐसी किसी व्यवस्था का समर्थन करने की संभावना कम है जो लोकतांत्रिक सिद्धांतों के खिलाफ हो। वह शायद एक ऐसी सरकार की वकालत करेंगी जो जनता के हितों को प्राथमिकता दे और संवैधानिक ढांचे के भीतर काम करे।
वर्तमान राजनीतिक चुनौतियाँ और संभावित दृष्टिकोण
2025 में नेपाल एक गंभीर राजनीतिक संकट से गुजर रहा है। हिंसक प्रदर्शनों और सोशल मीडिया पर प्रतिबंध के बाद, प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने 9 सितंबर 2025 को इस्तीफा दे दिया, और देश की कमान सेना के हाथों में चली गई। 10 सितंबर 2025 को काठमांडू के मेयर बालेन शाह ने अंतरिम सरकार की घोषणा की, जिसमें सुशीला कार्की को नेतृत्व के लिए समर्थन मिला।
1. चुनाव कराने की चुनौती
नेपाल में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना एक बड़ी चुनौती है, खासकर जब राजनीतिक तंत्र अस्थिर है। सुशीला कार्की की निष्पक्षता और भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी सख्त नीति को देखते हुए, वह एक पारदर्शी और सुरक्षित चुनाव प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए कठोर कदम उठा सकती हैं। उनके अनुभव और साहस को देखते हुए, वह चुनावी प्रक्रिया में राजनीतिक दबाव को कम करने और जनता का विश्वास जीतने की दिशा में काम कर सकती हैं।
2. ध्वस्त कानून व्यवस्था
नेपाल में हाल के हिंसक प्रदर्शनों ने कानून व्यवस्था को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। कार्की ने अपने कार्यकाल में न्यायपालिका को स्वतंत्र और पारदर्शी बनाए रखने के लिए राजनीतिक दबाव का सामना किया है। वह कानून व्यवस्था को बहाल करने के लिए पुलिस और सेना के साथ समन्वय स्थापित कर सकती हैं, साथ ही मानवाधिकारों का सम्मान सुनिश्चित कर सकती हैं। उनकी नीति “न्यायपालिका एक चालनी है, जो समाज की विकृतियों को छानकर स्वच्छता लाती है” उनके दृष्टिकोण को दर्शाती है।
3. राजनीतिक स्थिरता
नेपाल का राजनीतिक तंत्र वर्तमान में पूरी तरह से अव्यवस्थित है। कार्की ने पहले भी सत्ता के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है। वह अंतरिम सरकार में नेतृत्वकारी भूमिका निभाते हुए सभी राजनीतिक दलों के साथ संवाद स्थापित कर सकती हैं ताकि एक स्थिर और समावेशी सरकार का गठन हो। उनकी निडरता और निष्पक्षता उन्हें इस चुनौती से निपटने में सक्षम बनाती है।
निजी जीवन
सुशीला कार्की का विवाह नेपाली कांग्रेस के नेता दुर्गा प्रसाद सुवेदी से हुआ, और उनका एक पुत्र, प्रहस्त सुवेदी, है। वह नेपाली, अंग्रेजी और हिंदी में निपुण हैं और सरल जीवनशैली के लिए जानी जाती हैं। उनके स्वभाव में निडरता और ईमानदारी प्रमुख है, जो उनके फैसलों और कार्यशैली में स्पष्ट झलकती है।
नेपाल के लिए एक प्रेरणा दायक व्यक्तित्व
सुशीला कार्की नेपाल के लिए एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व हैं, जिन्होंने न केवल न्यायपालिका में ऐतिहासिक उपलब्धियाँ हासिल कीं, बल्कि वर्तमान राजनीतिक संकट में भी एक संभावित नेतृत्वकर्ता के रूप में उभरी हैं। भारत के साथ उनके शैक्षिक और सांस्कृतिक संबंध उन्हें क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं, लेकिन वह नेपाल की संप्रभुता और स्वतंत्रता को सर्वोपरि रखेंगी। राजशाही के प्रति उनका रुख संभवतः नकारात्मक होगा, क्योंकि वह लोकतंत्र और संवैधानिक मूल्यों में विश्वास रखती हैं। चुनाव, कानून व्यवस्था और राजनीतिक स्थिरता जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए उनकी निष्पक्षता, साहस और अनुभव महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।
