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स्वामीरामजी के प्रथम गुरु , बुद्धि बल्लभ धस्माना

-डॉ योगेश धस्माना

उत्तराखंड में धस्माना जाति ज्योतिष विज्ञान और तंत्र साधना के साथ राज वैध के रूप में प्रख्यात रहे है। मध्यकाल में गढ़ नरेश फतेह शाह के शासन काल 1655 से 1725 के बीच ग्राम बग्याली के रतिराम धस्माना नवरत्नों में एक थे।लगभग इसी अवधि में इनके वंशज चंद राजाओं के भी राज वैद्य थे।

इसी काल में उनके द्वारा अपने गांव तोली , बग्याली की बहुत दूरी और अपने ईस्ट देव भैरव नाथ की पूजा न कर पाने की बात राजा को बताने के बाद उनके द्वारा अल्मोड़ा में बटुक भैरव नाथ जी का भव्य मंदिर बनाया गया था। ठीक इसी तरह गांव तोली में बुद्धि बल्लभ धस्माना ऐसे ज्योतिषाचार्य और जन सेवी हुवे ,जिहोने अपनी पत्नी गौरी देवी के साथ जनसेवा कर दरिद्रनारायण की सेवा में अपने को समर्पित कर दिया था।इनके तीन पुत्रों में,प्रयाग दत्त,किशोरी लाल,जिन्हे स्वामी राम के नाम से जाना जाता है और मुसद्दीलाल हुवे थे।

प्रयागदत्त जी को तो लखपति नाम से ख्याति मिली,किशोरी स्वामीराम के नाम से चर्चित रहे,जब कि मुसद्दीलाल भी ज्योतिषाचार्य के रूप में प्रसिद्ध हुवे।ये वर्तमान में जोलीग्रांट के अधिस्ठाटा स्मरण कुलाधिपति विजय धस्माना के दादा थे।

प्रयागदत्त जी ने पिता के पद चिन्हों पर चलते हुवे दुधारखाल में स्कूल की स्थापना ,ताड़केश्वर मंदिर का जीर्णोधार,कोटद्वार में मां के नाम से गौरी पुस्तकालय और भवन का निर्माण कर पौड़ी मिशन स्कूल में1943में निधन मेधावी बच्चों को स्कॉलरशिप भी प्रदान की थीं।पौड़ी जिला अस्पताल परिसर में कंडोलिया मंदिर की भी स्थापना उनके द्वारा की गई थी।आज ऐसे जन सेवी और समाजसेवियों की जरूरत समाज में है।शिलापट्ट और सेवा का ढोल पीट कर सेवा का कोई पुरुषार्थ नही हो सकता।

परिवार में बड़े होने के कारण लखपति साहब ने अपने वृद्ध पिता और माता की अथक सेवा कर उनसे जनसेवा और धर्मार्थ की शिक्षा प्रात की।बुद्धि बल्लभ जी साधना और ज्योतिष का प्रभाव स्वामी राम पर पड़ता। इसी आशीर्वाद से उन्हें विख्यात संत और योगाचार्य के रूप में पहचान मिली।इस गौरवशाली इतिहास की स्मृतियां दो फोटुओ में देख सकते है।पहला पहला बुद्धि बल्लभ दंपति का है दूसरे में स्वामी राम ,प्रयागदत जी के बड़े पुत्र कप्तान शंभू प्रसाद और तीसरे में मुसद्दीलाल जी के बड़े बेटे ,और विजय धस्माना के ताऊजी स्वर्गीय गिरीश धस्माना हैं ।

 

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