यांग्ती कुटी घाटी में हिमनदों की प्रगति जलवायु परिवर्तन के साथ पूरी तरह मेल खाती है
देहरादून, 11 दिसंबर। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के सबसे पूर्वी कोने में बसी यांग्ती कुटी घाटी से पिछले बावन हजार साल (एमआईएस–३) से लेकर अब तक हिमनदों के कई बार आगे बढ़ने के प्रमाण मिले हैं। एक नए शोध के मुताबिक ये सभी प्रगतियाँ उस समय की जलवायु में आए बदलावों के साथ बिल्कुल तालमेल रखती हैं।
मध्य हिमालय में हिमनदों की प्रकृति को समझने के लिए कई वैज्ञानिकों ने आधुनिक डेटिंग विधियाँ इस्तेमाल की हैं। लेकिन इन ऊँचे और दुर्गम इलाकों में डेटिंग के लिए सामग्री कम मिलने की वजह से अब तक सटीक समय–क्रम का डेटा सीमित रहा है। इसलिए भारतीय ग्रीष्म मॉनसून और मध्य–अक्षांश पछुआ हवाओं जैसे दो बड़े जलवायु तंत्रों का हिमनदों पर असर क्या है, यह अनुमान ही लगाया जाता रहा।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के स्वायत्त संस्थान वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने पहली बार मध्य हिमालय से बावन हजार साल पुरानी सबसे प्राचीन हिमनद प्रगति की खोज की है। यह अंतिम हिमयुग के चरम (लास्ट ग्लेशियल मैक्सिमा) के दौरान हुई प्रगति का प्रमाण है। इसके बाद के छोटे समय के प्रमाण तो मध्य हिमालय के कई हिस्सों से पहले ही मिल चुके हैं।
शोधकर्ताओं ने पाया कि अर्ध–शुष्क हिमालयी क्षेत्रों की नमी की कमी वाली घाटियाँ बारिश या बर्फबारी बढ़ने पर बहुत संवेदनशीलता से प्रतिक्रिया करती हैं। यह अध्ययन बताता है कि एमआईएस–३ के बाद से जलवायु में आए बदलावों के साथ पूरे क्षेत्र में हिमनदों की प्रतिक्रिया एकसाथ हुई है। यह उत्तरी अटलांटिक के सहस्राब्दी स्तर के जलवायु उतार–चढ़ाव से शुरू हुई बड़ी जलवायु गड़बड़ी के साथ पूरी तरह मेल खाता है।
प्रसिद्ध पत्रिका क्वाटरनेरी साइंस रिव्यूज में प्रकाशित इस शोध में मजबूत समय–क्रम और जलवायु प्रमाण दिए गए हैं जो एमआईएस–३ के दौरान हिमनद सामग्री (मोराइन) की ऊँचाई से भारी बर्फ जमा होने को साबित करते हैं।
यह अध्ययन हिमालयी जलवायु और हिमनदों की गतिशीलता के बीच संबंधों को समझने में मौजूदा ज्ञान को बढ़ाएगा और मध्य हिमालय में घाटी हिमनदों को चलाने में भारतीय ग्रीष्म मॉनसून की तुलना में पछुआ हवाओं की भूमिका का सही आकलन करने में मदद करेगा।
