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खराब हवा से बढ़ रहा रूमेटाइड आर्थराइटिस का खतरा

 


ज्योति रावत–

दिल्ली और अन्य महानगरों में छाई रहने वाली स्मॉग की परत न केवल आंखों और फेफड़ों को नुकसान पहुंचा रही है, बल्कि अब यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी कमजोर कर रही है। हाल ही में चिकित्सकों ने चेतावनी दी है कि वायु प्रदूषण, विशेषकर सूक्ष्म कण (PM2.5) और विषैली गैसें, रूमेटाइड आर्थराइटिस (Rheumatoid Arthritis – RA) जैसी गंभीर बीमारी को बढ़ावा दे रही हैं।

दिल्ली में आयोजित इंडियन रूमेटोलॉजी एसोसिएशन (IRACON 2025) के 40वें वार्षिक सम्मेलन में विशेषज्ञों ने बताया कि जिस तरह से पर्यावरणीय प्रदूषण शरीर में सूजन (inflammation) और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को बढ़ाता है, उसी तरह यह जोड़ों की पुरानी सूजन संबंधी बीमारी — रूमेटाइड आर्थराइटिस — को भी भड़का सकता है।

रूमेटाइड आर्थराइटिस क्या है

रूमेटाइड आर्थराइटिस एक क्रॉनिक ऑटोइम्यून डिसऑर्डर है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली अपने ही ऊतकों पर हमला करने लगती है। इससे जोड़ों में सूजन, दर्द, अकड़न और सूजन के साथ-साथ समय के साथ हड्डियों और उपास्थियों को नुकसान पहुंचता है। धीरे-धीरे यह विकलांगता तक का कारण बन सकता है।

पहले माना जाता था कि यह बीमारी मुख्य रूप से जेनेटिक यानी आनुवंशिक कारणों से होती है, लेकिन अब यह साफ हो गया है कि प्रदूषण जैसे पर्यावरणीय कारक भी इसे बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं।

प्रदूषण से कैसे बढ़ता है खतरा

एम्स (AIIMS) की हेड ऑफ रूमेटोलॉजी डॉ. उमा कुमार के अनुसार, प्रदूषक तत्व शरीर में सूजन संबंधी प्रतिक्रियाएं बढ़ाते हैं, जोड़ों की सतह को नुकसान पहुंचाते हैं और बीमारी की गति को तेज करते हैं। उन्होंने कहा — “हवा में मौजूद प्रदूषक कण (PM2.5, नाइट्रोजन ऑक्साइड्स, ओजोन) शरीर की कोशिकाओं में ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस और ऑटोइम्यून प्रतिक्रिया को जन्म देते हैं। इसे अब नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।”

फोर्टिस अस्पताल के रूमेटोलॉजी विशेषज्ञ डॉ. बृजेश धर पांडे ने बताया कि वायु प्रदूषण प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर देता है। इससे शरीर अपने ही ऊतकों को ‘दुश्मन’ समझने लगता है और उन पर हमला करने लगता है। यह प्रतिक्रिया रूमेटाइड आर्थराइटिस जैसी बीमारियों को जन्म देती है।

वैज्ञानिक साक्ष्य

यूरोपियन मेडिकल जर्नल (2024) में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि PM2.5 और ओजोन के संपर्क में आने से शरीर में ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस और ऑटोइम्यून इंफ्लेमेशन बढ़ता है। वहीं, 2025 में प्रकाशित एक अन्य रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि जो लोग ट्रैफिक से भरे इलाकों में रहते हैं, उन्हें रूमेटाइड आर्थराइटिस का खतरा अपेक्षाकृत अधिक है।

क्यों है यह चिंता का विषय

भारत में पहले से ही लगभग 1% वयस्क आबादी रूमेटाइड आर्थराइटिस से पीड़ित है। अब वायु प्रदूषण इस संख्या को और बढ़ा सकता है।
डॉ. नीरज जैन, सर गंगाराम अस्पताल, नई दिल्ली के अनुसार — “सबसे चिंताजनक बात यह है कि अब वे युवा भी इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं जिनके परिवार में इसका कोई इतिहास नहीं रहा। यह संकेत है कि प्रदूषण एक स्वतंत्र और शक्तिशाली कारक बन चुका है।”

सामाजिक और आर्थिक असर

रूमेटाइड आर्थराइटिस जैसी पुरानी बीमारियां न केवल शारीरिक पीड़ा देती हैं, बल्कि आर्थिक और सामाजिक बोझ भी बढ़ाती हैं। लंबे समय तक इलाज की आवश्यकता, कार्यक्षमता में कमी और बढ़ते चिकित्सीय खर्च व्यक्ति व समाज दोनों पर असर डालते हैं।

समाधान की दिशा

विशेषज्ञों का मानना है कि इस बढ़ती स्वास्थ्य समस्या का समाधान केवल चिकित्सा से नहीं, बल्कि सख्त प्रदूषण नियंत्रण से ही संभव है।
डॉ. उमा कुमार का कहना है — “अब यह सिर्फ हवा की गुणवत्ता का मुद्दा नहीं रहा, बल्कि एक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातस्थिति बन चुका है। सरकारों को PM2.5 स्तर घटाने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। वाहनों के उत्सर्जन पर नियंत्रण, औद्योगिक धुएं पर निगरानी, और स्वच्छ ऊर्जा के प्रयोग को बढ़ावा देना अत्यावश्यक है।”

वायु प्रदूषण अब केवल सांस तक सीमित नहीं

वायु प्रदूषण अब केवल सांस और हृदय रोगों तक सीमित नहीं रहा। यह शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली को इस हद तक प्रभावित कर रहा है कि वह अपने ही शरीर के खिलाफ लड़ाई छेड़ दे रही है। प्रदूषित हवा के इस दुष्चक्र को तोड़ना अब स्वास्थ्य नीति का प्रमुख लक्ष्य होना चाहिए।
यदि हमने अभी कदम नहीं उठाए, तो आने वाले वर्षों में “सांस की बीमारी” से ज्यादा “जोड़ों की बीमारी” देश की नई स्वास्थ्य चुनौती बन सकती है।

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