पहलगाम आतंकी हमला: क्या कश्मीर में फिर लौट रहा है आतंक का साया?
This attack was not just on tourists—it was an assault on the livelihoods of Kashmiri youth who depend on the tourism sector to make ends meet. The Beta-Saran Valley, known as ‘Mini Switzerland,’ has long been a source of income for local guides, hoteliers, taxi drivers, shopkeepers, and artisans. By attacking tourists, the terrorists are not just striking at outsiders—they are attacking the Kashmiris’ livelihoods and their hopes for a peaceful future.
– जयसिंह रावत-
22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम के बैसरन घाटी में हुआ आतंकी हमला एक बार फिर उस असहज सच्चाई को सामने ले आया है, जिसे हम बार-बार नजरअंदाज करते रहे हैं—कि कश्मीर में आतंकवाद की जड़ें अभी पूरी तरह सूखी नहीं हैं। इस सुनियोजित हमले में कम से कम 28 निर्दोष पर्यटकों की जान चली गई, जिनमें दो विदेशी नागरिक भी शामिल थे, और दर्जनों घायल हुए हैं। यह अब तक का सबसे बड़ा पर्यटक-आधारित आतंकी हमला माना जा रहा है। आतंकी कश्मीरियों के मित्र नहीं, उनके दुश्मन हैं। यह लड़ाई अब सिर्फ कश्मीर की नहीं, पूरे देश की है। हमें इसे समझने और इस पर गहरी सोच के साथ कदम उठाने की आवश्यकता है।
पर्यटन बनाम आतंक: किसे निशाना बनाया गया और क्यों?
यह हमला आम नागरिकों,पर्यटकों,पर था, जो प्रकृति का आनंद लेने कश्मीर की वादियों में आए थे। बैसरन घाटी, जिसे ‘मिनी स्विट्जरलैंड’ कहा जाता है, वर्षों से कश्मीर के युवाओं और स्थानीय निवासियों के लिए रोज़गार का माध्यम रही है। ऐसे में यह हमला केवल पर्यटकों पर नहीं, बल्कि उन कश्मीरी युवाओं की आजीविका पर भी हमला है जो शांति से अपनी जिंदगी चलाना चाहते हैं। आतंकियों का यह कृत्य यह साफ करता है कि वे कश्मीरियों के मित्र नहीं, बल्कि उनके सबसे बड़े शत्रु हैं। जो ताकतें खुद को “कश्मीर के हितैषी” कहती हैं, वही ताकतें कश्मीरियों की रोज़ी-रोटी छीनने पर तुली हैं। पर्यटकों को डराकर भगाने का मतलब है हजारों स्थानीय गाइडों, होटल-कर्मचारियों, टैक्सी चालकों, दुकानदारों और हस्तशिल्पियों को बेरोजगार करना।
यह हमला जम्मू-कश्मीर की पहले से ही नाजुक आर्थिक स्थिति पर भी सीधा वार है। जिस राज्य ने 2023–24 में रिकॉर्ड 1.5 करोड़ पर्यटकों को आकर्षित किया था, वहां इस तरह की हिंसा दोबारा अविश्वास का माहौल पैदा कर सकती है। पर्यटकों पर हमले का मतलब है कश्मीरियों की रोज़ी-रोटी पर हमला और राज्य की अर्थव्यवस्था पर प्रहार।
अब तक का सबसे बड़ा पर्यटक केंद्रित आतंकी हमला है?
यदि हम पर्यटकों को निशाना बनाकर किए गए आतंकी हमलों की बात करें तो हां, यह अब तक का सबसे बड़ा और सबसे घातक हमला माना जा सकता है। इससे पहले 2017 में अमरनाथ यात्रियों की बस पर हुए हमले में 7 लोगों की मौत हुई थी, जबकि इस बार मृतकों की संख्या 28 है। आतंकियों का यह हमला सिर्फ कश्मीर के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एक चेतावनी है कि आतंकवाद अभी पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है। यह हमला कश्मीर की पर्यटन अर्थव्यवस्था और स्थानीय समुदायों की जीवनशैली के लिए एक बड़ा खतरा बन चुका है।
बदलती रणनीति: सॉफ्ट टारगेट्स पर हमले
कश्मीर में आतंकवाद की रणनीति अब बदल चुकी है। अब वे सेना की टुकड़ियों या पुलिस चौकियों पर नहीं, बल्कि आम नागरिकों, प्रवासियों, कश्मीरी पंडितों और पर्यटकों पर हमले कर रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में इस तरह के कई हमले देखे गए हैं:
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मई 2024: एक पर्यटक जोड़े पर हमला।
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जून 2024: तीर्थयात्रियों की बस पर गोलीबारी।
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2022–23: कश्मीर में प्रवासी श्रमिकों और कश्मीरी पंडितों की टार्गेट किलिंग।
यह बदलती रणनीति इस बात की ओर इशारा करती है कि आतंकी अब समाज को भीतर से तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं—डर और अविश्वास का माहौल बनाकर।
सरकारी आंकड़े और विफलताएँ
गृह मंत्रालय द्वारा संसद में प्रस्तुत किए गए आंकड़ों के अनुसार, 2018 से 2022 के बीच जम्मू-कश्मीर में 761 आतंकी घटनाएं हुईं, जिनमें 174 नागरिकों की जान गई। 2019 के बाद आतंकवाद में गिरावट के सरकारी दावों के बावजूद, पिछले दो वर्षों में पर्यटकों और आम नागरिकों पर हमले बढ़े हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या सरकार ने आतंक की बदलती रणनीति को समय रहते पहचाना?
कश्मीर की जनता को साथ लेकर चलने की जरूरत
इस हमले के बाद सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या सरकार केवल सुरक्षा बलों के भरोसे इस चुनौती से निपटेगी, या कश्मीरी जनता को इस लड़ाई का हिस्सा बनाएगी? क्योंकि जब आम कश्मीरी ही आतंकवाद के खिलाफ बोलने लगेगा, तभी आतंक की जड़ें कटेंगी।हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह हमला केवल पर्यटकों पर नहीं, बल्कि कश्मीरियों की भविष्य की उम्मीदों पर भी हमला है। कश्मीरियों के लिए शांति, विकास और समृद्धि के मार्ग को तोड़ने की कोशिशें आतंकियों की यह कार्रवाई साबित करती हैं। हम सभी को एकजुट होकर आतंकवाद के खिलाफ खड़ा होना होगा और यह समझना होगा कि यह लड़ाई केवल सेना और पुलिस की नहीं, बल्कि पूरे कश्मीर की है।
पहलगाम हमला केवल एक आतंकी घटना नहीं है, यह एक चेतावनी है—हमारी नीति, सुरक्षा और दृष्टिकोण को पुनः परखने की। और यह भी समझने की कि आतंकवाद न तो किसी धर्म का प्रतिनिधित्व करता है, न किसी समुदाय का। वह सिर्फ अंधकार लाता है—विकास के खिलाफ, भाईचारे के खिलाफ और इंसानियत के खिलाफ।
(लेख में प्रकट विचार लेखक के निजी हैं -एडमिन )