भारत में पशुओं के कृत्रिम गर्भाधान की सफलता दर केवल 32 से लेकर 35 प्रतिशत तक
The success rate of artificial insemination (AI) in India is only around 32-35% due to several factors. One major reason is the quality of semen; if the sperm used is of poor quality, has low motility, or is not stored properly, it reduces the chances of fertilization. Another critical factor is the timing of insemination. If AI is not performed at the right stage of the estrus cycle, conception rates drop significantly. The lack of well-trained technicians also affects success rates, as improper handling or incorrect deposition of semen can lead to failure. Additionally, the nutritional status and overall health of the animal play a crucial role. Deficiencies in essential minerals and vitamins like calcium, phosphorus, and vitamins A, D, and E can lead to reproductive issues. Hormonal imbalances, ovarian cysts, uterine infections, and conditions like repeat breeding syndrome further reduce fertility. Environmental factors such as extreme heat or cold also impact the reproductive cycle, as heat stress can interfere with hormonal regulation. Moreover, poor hygiene during the AI procedure can cause infections, leading to a lower success rate. To improve AI success, farmers should ensure proper heat detection, use high-quality semen, rely on trained professionals, maintain optimal animal nutrition, address reproductive health issues promptly, manage environmental stress, and follow strict hygiene protocols. By focusing on these aspects, the success rate of artificial insemination can potentially increase to 50-60%.
भारत में पशुओं के कृत्रिम गर्भाधान (Artificial Insemination – AI) की सफलता दर केवल 32-35% रहने के पीछे कई कारण हैं। शुक्राणु की गुणवत्ता एक महत्वपूर्ण कारक है, क्योंकि यदि शुक्राणु कम सक्रिय (Low motility) हैं या उनका भंडारण सही तरीके से नहीं किया गया है, तो उनकी प्रभावशीलता घट जाती है। सही समय पर गर्भाधान न होने से भी सफलता दर प्रभावित होती है, क्योंकि यदि मादा पशु के हीट साइकल (Heat Cycle) की सही पहचान नहीं की जाती, तो गर्भधारण की संभावना कम हो जाती है। प्रशिक्षित तकनीशियनों की कमी भी एक बड़ी समस्या है, क्योंकि यदि शुक्राणु को सही तकनीक से नहीं डाला जाता, तो उसका प्रभाव कम हो जाता है। पशुओं के पोषण और स्वास्थ्य की स्थिति भी गर्भधारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, खासकर यदि पशु में कैल्शियम, फॉस्फोरस, विटामिन A, D और E की कमी हो। हार्मोनल और प्रजनन संबंधी बीमारियाँ, जैसे ओवेरियन सिस्ट (Ovarian Cysts), एंडोमेट्राइटिस (Endometritis), और रिपीट ब्रीडिंग सिंड्रोम (Repeat Breeding Syndrome), भी सफलता दर को प्रभावित करती हैं। पर्यावरणीय और जलवायु प्रभाव, जैसे अत्यधिक गर्मी या ठंड, पशुओं के हार्मोन को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे गर्भाधान की सफलता दर घट जाती है। हीट स्ट्रेस (Heat Stress) के कारण पशु का हीट साइकल भी प्रभावित हो सकता है। स्वच्छता और संक्रमण का खतरा भी एक महत्वपूर्ण कारक है, क्योंकि यदि गर्भाधान के दौरान उपकरण ठीक से साफ न किए जाएँ या प्रक्रिया अस्वच्छ तरीके से हो, तो संक्रमण हो सकता है, जिससे गर्भधारण की संभावना कम हो जाती है। सफलता दर बढ़ाने के लिए पशुओं की हीट पहचान कर सही समय पर गर्भाधान करना, उच्च गुणवत्ता वाले शुक्राणु और प्रशिक्षित तकनीशियन का उपयोग करना, पशुओं के पोषण में सुधार करना, खनिज और विटामिन की आपूर्ति सुनिश्चित करना, पशु चिकित्सक से नियमित जांच कराना, पर्यावरणीय प्रबंधन पर ध्यान देना और स्वच्छता बनाए रखना आवश्यक है। यदि इन बिंदुओं पर ध्यान दिया जाए तो कृत्रिम गर्भाधान की सफलता दर 50-60% तक बढ़ाई जा सकती है।
भारत पशुधन पोर्टल पर राज्यों द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार देश में कृत्रिम गर्भाधान की सफलता दर 32 प्रतिशत- 35 प्रतिशत के बीच है।यह जानकारी केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी राज्य मंत्री प्रो. एस.पी. सिंह बघेल ने 11 मार्च, 2025 को लोकसभा में एक लिखित उत्तर में दी। डेयरी राज्य मंत्री प्रो. एस.पी. सिंह बघेल ने ने सदन को बताया कि देश में देशी नस्लों सहित गोजातीय पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान की दक्षता और सफलता दर बढ़ाने के लिए पशुपालन और डेयरी विभाग द्वारा तकनीकी प्रगति, वैज्ञानिक हस्तक्षेप और नीतिगत पहल के रूप में निम्नलिखित कदम उठाए गए हैं।
(i) राष्ट्रव्यापी कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम: इस कार्यक्रम का उद्देश्य कृत्रिम गर्भाधान कवरेज को बढ़ाना और स्वदेशी नस्लों सहित उच्च आनुवंशिक योग्यता वाले बैलों के वीर्य के साथ किसानों की दहलीज पर गुणवत्तापूर्ण कृत्रिम गर्भाधान सेवाएं (एआई) प्रदान करना है।
(ii) संतति परीक्षण और वंशावली चयन कार्यक्रम: इस कार्यक्रम का उद्देश्य देशी नस्लों के बैलों सहित उच्च आनुवंशिक योग्यता वाले बैलों को पैदा करना है। संतान परीक्षण गिर, साहीवाल नस्ल के मवेशियों और मुर्रा, मेहसाणा नस्ल की भैंसों के लिए लागू किया जाता है। वंशावली चयन कार्यक्रम के तहत राठी, थारपारकर, हरियाना, कंकरेज नस्ल के मवेशियों और जाफराबादी, नीली रावी, पंढरपुरी और बन्नी नस्ल की भैंसों को शामिल किया गया है। कार्यक्रम के तहत पैदा हुए रोग मुक्त उच्च आनुवंशिक योग्यता वाले बैलों को पंजाब सहित देश भर के वीर्य केंद्रों को उपलब्ध कराया जाता है।
(iii) वीर्य केंद्रों का सुदृढ़ीकरण: वीर्य उत्पादन में गुणात्मक और मात्रात्मक सुधार लाने के लिए, राष्ट्रीय गोकुल मिशन के अंतर्गत वीर्य केंद्रों का सुदृढ़ीकरण किया जा रहा है। पशुपालन और डेयरी विभाग ने वीर्य उत्पादन के लिए न्यूनतम मानक प्रोटोकॉल तैयार किया है और पंजाब सहित देश भर में वीर्य केंद्रों के मूल्यांकन और ग्रेडिंग के लिए केंद्रीय निगरानी इकाई (सीएमयू) का गठन किया है।
(iv) ग्रामीण भारत में बहुउद्देश्यीय कृत्रिम गर्भाधान तकनीशियन (मैत्री): किसानों के घर-द्वार पर गुणवत्तापूर्ण कृत्रिम गर्भाधान सेवाएँ प्रदान करने के लिए मैत्री को प्रशिक्षित और चाक-चौबंद किया जाता है। इसके अलावा, पंजाब सहित राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कृत्रिम गर्भाधान तकनीशियनों और पेशेवरों के पुनश्चर्या प्रशिक्षण के लिए सहायता उपलब्ध कराई जाती है।
(v) सेक्स सॉर्टेड सीमन: विभाग ने गुजरात, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में स्थित 5 सरकारी सीमन स्टेशनों पर सेक्स सॉर्टेड सीमन उत्पादन सुविधाएं स्थापित की हैं। 3 निजी सीमन स्टेशन भी सेक्स सॉर्टेड सीमन खुराक का उत्पादन कर रहे हैं। अब तक देशी नस्लों के बैलों सहित उच्च आनुवंशिक योग्यता वाले बैलों से 1.17 करोड़ सेक्स सॉर्टेड सीमन खुराक का उत्पादन किया गया है और उन्हें कृत्रिम गर्भाधान के लिए उपलब्ध कराया गया है।
(vi) सेक्स सॉर्टेड सीमेन का उपयोग करके त्वरित नस्ल सुधार कार्यक्रम: इस कार्यक्रम का उद्देश्य 90 प्रतिशत तक की सटीकता के साथ बछियों को पैदा करना है, जिससे नस्ल सुधार और किसानों की आय में वृद्धि हो। यह कार्यक्रम पंजाब सहित सभी राज्यों में लागू किया गया है। सरकार ने किसानों को उचित दरों पर सेक्स सॉर्टेड सीमेन उपलब्ध कराने के लिए स्वदेशी रूप से विकसित सेक्स सॉर्टेड सीमेन तकनीक शुरू की है।
(vii) इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) तकनीक का कार्यान्वयन: देशी नस्लों के उत्कृष्ट पशुओं के प्रजनन के लिए विभाग ने 22 आईवीएफ प्रयोगशालाएँ स्थापित की हैं। एक ही पीढ़ी में गोजातीय आबादी के आनुवंशिक उन्नयन में इस तकनीक की महत्वपूर्ण भूमिका है। पटियाला और लुधियाना में आईवीएफ प्रयोगशालाओं की स्थापना के लिए पंजाब को धनराशि जारी की गई है; दोनों प्रयोगशालाएँ अब चालू हैं। इसके अलावा, किसानों को उचित दरों पर तकनीक प्रदान करने के लिए सरकार ने स्वदेशी आईवीएफ मीडिया लॉन्च किया है।
(viii) जीनोमिक चयन: उच्च आनुवंशिक योग्यता (एचजीएम) वाले पशुओं का चयन करने तथा मवेशियों और भैंसों के आनुवंशिक सुधार में तेजी लाने के लिए, विभाग ने एकीकृत जीनोमिक चिप्स – देशी मवेशियों के लिए गौ चिप और भैंसों के लिए महिष चिप विकसित की हैं – जो विशेष रूप से देश में देशी नस्लों के उच्च आनुवंशिक योग्यता वाले पशुओं के जीनोमिक चयन की शुरुआत करने के लिए डिज़ाइन की गई हैं।
देशी नस्लों को अंधाधुंध प्रजनन से बचाने के लिए देश में सभी आयातित जर्मप्लाज्म की नस्ल शुद्धता जांच की जाती है। जर्मप्लाज्म के आयात को विनियमित करने और देश में आनुवंशिक विकारों के प्रवेश को रोकने के लिए विभाग ने गोजातीय जर्मप्लाज्म के आयात और निर्यात के लिए दिशा-निर्देश तैयार किए हैं। ( Source -PIB)