अभी भी बहुत चौड़ी खायी कायम है शहर और गांव के जीवन स्तर में
- The average MPCE in rural and urban India in 2023-24 has been estimated to be Rs. 4,122 and Rs. 6,996, respectively without taking into account of the values of items received free of cost by the households through various social welfare programmes.
- Considering the imputed values of items received free of cost through various social welfare programmes, these estimates become Rs. 4,247 and Rs. 7,078 respectively, for rural and urban areas.
- In nominal prices, the average MPCE (without imputation) in 2023-24 increases by about 9% in rural areas and 8% in urban areas from the level of 2022-23.
- The urban-rural gap in MPCE has declined to 71% in 2022-23 from 84% in 2011-12. It has further come down to 70% in 2023-24 that confirms sustained momentum of consumption growth in rural areas.

BY- JAYSINGH RAWAT
आजादी के बाद चले अनेक विकास कार्यक्रमों और कल्याणकारी योजनाओं के चलते देशवासियों का जीवन स्तर निरंतर उठता जा रहा है। फिर भी गांव और शहर के जीवन स्तर में अभी भी भारी अंतर बना हुआ है। यह अंतर गांव और शहर वासियों द्वारा आम जीवन के उपयोग और सुख सुविधा वाली वस्तुओं पर खर्च आंकड़ों से स्पष्ट हो जाता है। सांख्यकी और कार्यक्रम मंत्रालय द्वारा पारिवारिक उपभोग सर्वेक्षण 2023 -24 के अनुसार शहरी क्षेत्रों में ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में प्रति व्यक्ति खर्च लगभग 71% अधिक है।बेहतर जीवन की चाह में गावों से शहरों की और लोगों का बेतहासा पलायन जारी है।
2023-24 में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में औसत घरेलू उपभोग व्यय (MPCE) में वृद्धि देखी जा रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में औसत MPCE 4,122 रुपये और शहरी क्षेत्रों में 6,996 रुपये होने का अनुमान है, जबकि पिछले वर्ष (2022-23) में यह क्रमशः 3,773 रुपये और 6,459 रुपये था। इसका मतलब है कि शहरी क्षेत्रों में ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में प्रति व्यक्ति खर्च लगभग 71% अधिक है, जो शहरी और ग्रामीण जीवन स्तर में अंतर को दिखाता है। 2023-24 में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में औसत घरेलू उपभोग व्यय (MPCE) में वृद्धि देखी जा रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में औसत MPCE 4,122 रुपये और शहरी क्षेत्रों में 6,996 रुपये होने का अनुमान है, जबकि पिछले वर्ष (2022-23) में यह क्रमशः 3,773 रुपये और 6,459 रुपये था। इसका मतलब है कि शहरी क्षेत्रों में ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में प्रति व्यक्ति खर्च लगभग 71% अधिक है, जो शहरी और ग्रामीण जीवन स्तर में अंतर को दिखाता है।
पारिवारिक उपभोग व्यय सर्वेक्षण (HCES) का उद्देश्य घरेलू उपभोग और व्यय के विस्तृत आंकड़ों को संकलित करना है, जो भारत में जीवन स्तर और समग्र कल्याण का विश्लेषण करने के लिए आवश्यक हैं। 2023-24 के सर्वेक्षण के अनुसार, मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय (MPCE) में वृद्धि, ग्रामीण-शहरी अंतर का कम होना, और उपभोग असमानता में गिरावट, देश में जीवन स्तर में सुधार और आर्थिक समावेशन को दर्शाते हैं। पारिवारिक उपभोग व्यय सर्वेक्षण उपभोक्ताओं द्वारा वस्तुओं और सेवाओं के उपभोग का डेटा संकलित कर जीवन स्तर और कल्याण का आकलन करता है। यह उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) के लिए वेटिंग डायग्राम विकसित करने में सहायक है, जो आर्थिक विश्लेषण के लिए आवश्यक है। साथ ही, GDP और CPI जैसे व्यापक आर्थिक संकेतकों के आधार वर्ष को अद्यतन करने के लिए डेटा प्रदान करता है।
सर्वेक्षण से यह स्पष्ट है कि 2023-24 में दोनों क्षेत्रों में औसत MPCE में वृद्धि हुई है, जिससे जीवन स्तर में सुधार की ओर संकेत मिलता है। हालांकि, यह वृद्धि असमान है, और ग्रामीण क्षेत्रों में यह वृद्धि थोड़ी अधिक है। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच MPCE में अंतर अभी भी है, लेकिन यह अंतर घट रहा है। 2011-12 में यह अंतर 84% था, जो 2022-23 में घटकर 71% हो गया, और 2023-24 में यह 70% रह जाने का अनुमान है। इससे यह संकेत मिलता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोग की गति तेज हो रही है। 2023-24 में सबसे अधिक MPCE सिक्किम में दर्ज किया गया, जहाँ ग्रामीण क्षेत्रों में ₹9,377 और शहरी क्षेत्रों में ₹13,927 रही। वहीं, सबसे कम MPCE छत्तीसगढ़ में दर्ज की गई, जहाँ ग्रामीण क्षेत्रों में ₹2,739 और शहरी क्षेत्रों में ₹4,927 रही।
जब लोग ईंधन पर खर्च करते हैं, तो यह उनकी यात्रा और परिवहन की जरूरतों को दर्शाता है। शहरी क्षेत्रों में, जहां सार्वजनिक परिवहन की उपलब्धता अधिक हो सकती है, ईंधन खर्च कम हो सकता है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां लोग अधिकतर निजी वाहनों का उपयोग करते हैं, वहां ईंधन पर खर्च अधिक हो सकता है। अगर किसी परिवार का ईंधन पर खर्च बढ़ रहा है, तो यह इस बात का संकेत हो सकता है कि उनकी जीवनशैली में बदलाव आ रहा है, जैसे अधिक यात्रा करना, या उनका आय स्तर और खर्च बढ़ गया है। इससे यह भी संकेत मिल सकता है कि उनका जीवनस्तर ऊंचा हो रहा है, क्योंकि अधिक यात्रा और परिवहन खर्च आमतौर पर बेहतर जीवन स्तर का संकेत है। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में ईंधन पर खर्च में अंतर देखा जा सकता है। शहरी क्षेत्रों में लोग अधिकतर सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करते हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकतर निजी वाहनों का उपयोग किया जाता है। इसलिए, ग्रामीण क्षेत्रों में ईंधन पर खर्च अधिक हो सकता है। जब ईंधन की कीमतें बढ़ती हैं, तो यह सीधे लोगों की आर्थिक स्थिति पर असर डालता है, खासकर उन परिवारों पर जिनकी आय स्थिर या कम है। इस खर्च का बढ़ना यह दर्शाता है कि परिवारों को अपने अन्य खर्चों में कटौती करनी पड़ सकती है या उनके पास अधिक आय हो सकती है जिससे वे इस खर्च को सहन कर पा रहे हैं।
लोगों का खर्च किसमें हो रहा है:
लोगों का खर्च मुख्य रूप से गैर-खाद्य वस्तुओं जैसे परिवहन, कपड़े, बिस्तर, जूते, मनोरंजन और टिकाऊ वस्तुओं पर हो रहा है। शहरी क्षेत्रों में किराया भी गैर-खाद्य व्यय का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति:
हालांकि इस लेख में शिक्षा और स्वास्थ्य के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई है, परंतु यह देखा जा सकता है कि ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में उपभोग असमानता में कमी आई है, जिससे यह संकेत मिलता है कि सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों के माध्यम से कुछ सुधार हो रहा है।लोग अधिक खर्च परिवहन, कपड़े, जूते, और मनोरंजन जैसी गैर-खाद्य वस्तुओं पर कर रहे हैं। हालांकि, ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन स्तर में बढ़ोतरी हो रही है, और उपभोग असमानता कम हो रही है।
(नोट: लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कई पुस्तकों के लेखक हैं तथा उत्तराखंड हिमालय के संपादक मंडल के मानद सदस्य हैं.-ADMIN)