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संघर्षों की प्रतिमा चिन्यालीसौड़ के तीन पुल और 80 साल का इतिहास…..

 

-शीशपाल गुसाईं

चिन्यालीसौड़ के तीन पुल पूरे 80 साल के इतिहास के गवाह हैं ।
इन तीन पुलों की कहानी न केवल स्थानीय इतिहास और संघर्षों की प्रतिमा है, बल्कि यह क्षेत्र की विकास यात्रा और संसाधनों के उपयोग की दिशा में प्रयासों का एक उदाहरण भी है। पुलों का निर्माण, पुनर्निर्माण और उनकी मजबूत स्थिति दर्शाती है कि समय के साथ किस प्रकार से तकनीकी और प्रशासनिक प्रयासों के संगठित परिणाम सामने आते हैं।

*चिन्याली, जो कभी एक छोटा सा गाँव था, आज एक प्रमुख बाज़ार चिन्यालीसौड़ में बदल चुका है। यह स्थान उत्तरकाशी जिले का प्रवेश द्वार है, जिसे 24 फरवरी 1960 को टिहरी से अलग किया गया था। इस क्षेत्र का ऐतिहासिक महत्व भी है, विशेषकर अविभाजित उत्तर प्रदेश में 1995 में यहाँ बनाई गई हवाई पट्टी जो सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मानी जाती है। अविभाजित उत्तर प्रदेश के ब्लॉकों के 1982 के पुनर्गठन में डुंडा ब्लॉक से चिन्यालीसौड़ ब्लॉक बना। पहले ब्लॉक श्री फतेह सिंह रावत थे। राज्य बनने के बाद स्थापित हुई तहसील, नगरपालिका व तमाम कार्यालयों का केंद्र चिन्यालीसौड़ में करीब 25 हज़ार लोगों की रिहाइश है। हाल के सालों में देखते ही देखते अच्छी शिक्षा,स्वास्थ्य के लिए गमरी, दिचली, बिष्ट, नगुण पट्टियों के गांव से लोग ऐसे छूटे जैसे चिन्यालीसौड़ कटोरे की तरह भर गया हो!*

*टिहरी रियासत के समय में, राजा प्रताप शाह ने यहाँ पट्टियों का गठन किया था, जो अब बाज़ार के रूप में विकसित हुआ है वह चिन्यालीसौड़ क्षेत्र बिष्ट पट्टी और भागीरथी नदी के पार गमरी पट्टी में विभाजित था। गमरी से धनारी पट्टी लगी है। बाद में राजा नरेंद्र शाह ने इन पट्टियों का पुनर्गठन किया और गमरी से दिचली नामक नई पट्टी बन गई। नदी पार करने के लिए प्रारंभ में लकड़ियों की नावों का उपयोग किया जाता था। 1944 में साधु रामदास ने नदी पर पुल बनाने की पहल की थी, जो उनकी बुद्धिमानी और लोगों के कष्टों को समझने की काबिलियत को दर्शाता है। उस समय, नदी को पार करने में लोगों को बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। बारिश के दौरान नदी उफान पर रहती थी, जिससे लोगों की जिंदगी और दैनिक कार्य प्रभावित होते थे।*

*साधु रामदास जिनका नाम अब इतिहास में कहीं खो गया है, ने लोगों की इस परेशानी को ध्यान में रखा और टिहरी राजा से पुल बनाने का संकल्प लिया। उनकी इस पहल ने न केवल लोगों की जिंदगी को आसान बनाया बल्कि आस-पास के गाँवों को भी विकास की राह पर अग्रसर किया। नरेंद्रनगर महल के बाहर साधु के धरने ने राजा को पुल बनाने के लिए आगे आना पड़ा। हालांकि दीवान चक्रधर जुयाल ने धरने से उठाने, मांग की टालमटोल करने का एक विफल प्रयास किया। राजा नरेंद्र शाह ने गमरी व दिचली पट्टी वालों के पुल की सौगात दी। चिन्यालीसौड़ के पूर्व प्रमुख व सीनियर एडवोकेट बलबीर सिंह बिष्ट कहते हैं कि वह साधु रामदास प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश का था। बहुत ही संघर्ष की गाथा साधु की उन्होंने सुनी है। हालांकि समय के साथ सबसे निचले पुल की लकड़ी सड़ गई है, लेकिन लोहा मजबूत है, जो चट्टान की तरह खड़ा है।*

*चिन्यालीसौड़ और देवीसौड़ के बीच बीचवाला पुलअविभाजित उत्तर प्रदेश पीडब्ल्यूडी ने ठेकेदार दुर्गा प्रसाद नौटियाल, शम्भू प्रसाद नौटियाल आदि की सहायता से 1990 में निर्मित किया गया। टिहरी बांध की 29 अक्टूबर 2005 को अंतिम टलन बंद किये जाने के फलस्वरूप 42 वर्ग किलोमीटर की झील बननी शुरू हुई थी, इसमें करीब दो दर्जन पुल डूब गए थे, जिसमें यह बीच वाला पुल भी है। बीच वाला और सबसे निचला पुल झील में पानी कम होने पर यह दिखाई देते हैं जब पानी बढ़ता है तब यह दोनों पुल डूब जाते हैं। बीच के पुल ने 2006 में जलमग्न होने से पहले कई वर्षों तक लोगों की सेवा की। इससे यह पुल क्षेत्र के लाभ के लिए बुनियादी ढांचे के विकास में विभिन्न हितधारकों के बीच एकता और सहयोग के समय का प्रतिनिधित्व करता है।*

*तीसरा और सबसे ऊपर का पुल, उत्तराखंड सरकार और टीएचडीसी द्वारा 2017 में बनाया गया एक लोहे का आर्च ब्रिज, क्षेत्र में प्रगति और विकास के एक नए युग का प्रतीक है। यह हावड़ा ब्रिज के तरह बनाया गया है। इसमें डेढ़ सौ टन लोहा लगा है। इसे बनाने में स्थानीय लोगों का संघर्ष भी रहा है। यह पुल आधुनिक संरचना इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी में प्रगति का प्रतिनिधित्व करती है जिसने चिन्यालीसौड़ और गमरी, दिचली पट्टी के लोगों के लिए कनेक्टिविटी और पहुँच में सुधार किया है।*

*चिन्यालीसौड़ का यह भाग विशेष तौर पर इसलिए खास है क्योंकि यह न सिर्फ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि आज भी सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यहां से करीब 200 किमी दूर से तिब्बत बॉर्डर शुरू हो जाता है। फोटो में ये तीन पुल संघर्ष और चुनौतियों से लेकर प्रगति और विकास तक के क्षेत्र की यात्रा का प्रतीक हैं। प्रत्येक पुल की अपनी कहानी है, जो उन लोगों के इतिहास, संस्कृति को दर्शाती है जिन्होंने क्षेत्र में इन महत्वपूर्ण जीवन रेखाओं को बनाने और बनाए रखने के लिए कड़ी मेहनत की है। पुल केवल भौतिक संरचनाएँ नहीं हैं, बल्कि बाधाओं को दूर करने और एक उज्जवल भविष्य की ओर आगे बढ़ने में लोगों के दृढ़ संकल्प और दृढ़ता की याद दिलाते हैं।*

( नोट:- लेखक वरिष्ठ पत्रकार और ऐतिहासिक पुस्तकों के लेखक हैँ। –एडमिन)

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