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पुण्यतिथि पर विशेष –तीन दशकों से साहित्य साधनारत रहे पुष्कर सिंह कंडारी

 

-अनुसूया प्रसाद मलासी-

“जालु बला आंग्यूँ-सांग्यूँ, औलु त्  घ्यते पर”।।अर्थात्- जीवन-यापन के लिए व्यक्ति कहीं भी जाए, लेकिन आखिरकार आएगा तो अपनी जड़ों की ओर ही!

गढ़वाली मुहावरे और कहावतों के वृहद संग्रह से चर्चाओं में आने वाले साहित्यकार पुष्कर सिंह कंडारी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। शिक्षा विभाग में जिला विद्यालय निरीक्षक पद से सेवानिवृत्त होने के बाद वे पिछले 30 सालों से निरंतर साहित्य साधना में लगे रहे। उनके गढ़वाली मुहावरे-कहावतों का वृहद संग्रह हिंदी साहित्य अकादमी ने दो खंडों में प्रकाशित किया है।

अगस्त्यमुनि विकासखंड के कमसाल गाँव में स्व. श्री देव सिंह कंडारी के घर में जन्मे पुष्कर सिंह कंडारी जब मात्र 8 माह के थे, तभी उनके पिताजी का देहांत हो गया। उनकी माँ ने मेहनत-मजदूरी कर किसी तरह इस बच्चे का लालन-पालन किया। प्राइमरी स्कूल दूर होने और संसाधन के अभाव में उन्होंने प्राइमरी शिक्षा अपने ननिहाल क्यूँजाघाटी के भणज स्कूल से किया। बाद में विद्यापीठ से हाई स्कूल किया।

90 वर्षीय श्री कंडारी से चार वर्ष पूर्व अगस्त्यमुनि से 10 किलोमीटर दूर उनके पैतृक गाँव कमसाल में मुलाकात हुई थी।उन दिनों वे अपनी पत्नी के साथ रहकर अपने पैतृक मकान का जीर्णोद्धार कर रहे थे। उनके बच्चे हालांकि शहरी क्षेत्रों में रहते हैं लेकिन बकौल कंडारी -” पागलपन सवार है लोगों में, जो सुविधाओं के बहाने पलायन कर रहे हैं। आएंगे तो अपने घरों की ओर ही”, इसलिए विरासत पर मिले जर्जर मकान को आधुनिक सुविधाजनक बना रहा हूँ। उनका कहना था- “शहरों में लोग पिंजरे में रहते हैं। यहाँ गाँव में खुला वातावरण है। निर्भयता से लोग रहते हैं, शुद्ध हवा और पानी यहाँ है। इसलिए अगस्त्यमुनि कस्बे में मकान होने के बावजूद उनका मन गाँव में ज्यादा लगता है”।

अध्यापन कार्य उन्होंने अगस्त्यमुनि में शुरू किया। 2 साल तक बिना वेतन के कार्य किया, बाद में ₹40 में नौकरी लगी फिर खेड़ाखाल हाईस्कूल में लंबी सेवाएं दी। विद्यार्थी जीवन मैं ही उन्होंने पहला नाटक लिखा और मंचन किया- ‘ककड़ाट्या सासू’। तब से लगातार हिंदी, गढ़वाली व अंग्रेजी में कविता, कहानियां लेखन कार्य शुरू हुआ। 1988 में अवकाश प्राप्त होने के बाद उन्होंने 14000 गढ़वाली मुहावरे और कहावतों का वृहद संग्रह लिखा और उसे प्रकाशित कराया। इसके अलावा गढ़वाली लोक भाषा, गढ़वाल में जनश्रुतियां एवं विश्वास और कविता संग्रह भी प्रकाशित किया।

वर्ष 2012 में शरीर के दाहिने हिस्से में पक्षाघात होने के बावजूद श्री कंडारी साहित्यिक गतिविधियों में सक्रिय हैं। कवि चंद्र कुँवर बर्त्वाल संस्थान के सचिव रहे हैं। कई संस्थाओं ने उनकी साहित्य साधना के लिए सम्मानित किया है। मांस, मदिरा और चाय से तौबा करने वाले श्री कण्डारी ने कहा था कि-“पहाड़ के युवा को सही मार्गदर्शन की जरूरत है, ताकि वह यहाँ की कठिन पृष्ठभूमि में रहते हुए भी अपने भविष्य को संवारने में कामयाब हो सकें”। ऐसे साहित्य प्रेमी व महान शिक्षाविद् पुष्कर सिंह कंडारी जी का 9 अक्टूबर 2020 को देहावसान हो गया था। ।
ऐसी महान विभूति को नमन। विनम्र श्रद्धांजलि।

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