खेल/मनोरंजन

दून पुस्तकालय में तीन वृत्तचित्र फिल्मों का प्रदर्शन

देहरादून, 6 अक्टूबर। दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र की ओर से आज सायं हिन्दी फिल्म उद्योग के हाशिये पर काम करने वाले लोगों पर केंद्रित तीन वृत्तचित्रों का प्रदर्शन आज सायं सभागार में किया गया। पीएसबीटी के सहयोग से प्राप्त इन फिल्मों को पर्दे पर निकोलस हॉफलैण्ड ने प्रदर्शित किया।

पहली फिल्म द सरोज खान स्टोरी थी। इसका निर्देशन, दिधि तुली ने किया है। इसकी अवधि 57 मिनट है। दूसरी फिल्म डांसिंग शूज की अवधि 26 मिनट की थी। इसका निर्देशन, ऋषभ भटनागर व जोगविन्द्र खेड़ा ने किया है। अन्तिम फिल्म सुपरमैन ऑफ मालेगांव फिल्म का निर्देशन फैज अहमद खान ने किया है और यह फिल्म 66 मिनट अवधि की है।

द सरोज खान स्टोरी हिंदी फिल्म उद्योग के सबसे महान कोरियोग्राफरों में से एक सरोज खान का चित्र है, और उनके दृढ़ संकल्प, जुनून, असाधारण कौशल और जीवित रहने की दृढ़ इच्छा की प्रेरक कहानी है।

इसकी निर्देशक निधि तुली एक स्क्रिप्ट राइटर और फिल्म निर्माता हैं, जिन्होंने कई शैलियों में काम किया है। चार्ल्स वालेस स्कॉलरशिप की प्राप्तकर्ता, उन्होंने लंदन विश्वविद्यालय में पटकथा लेखन किया। उनकी फिल्मों में आर्ट इन एक्साइल, टीआईपीए, ऑफ फ्रेंडशिप, फिल्म्स एंड स्वॉर्ड्स और द सेंट ऑफ चित्रकूट शामिल हैं। उनका टेलीविजन शो द फिल्म एक गरीब किसान के बेटे 34 वर्षीय जमील शाह की प्रेरक यात्रा का अनुसरण करता है।

डांसिंग शूज फिल्म एक गरीब किसान के बेटे 34 वर्षीय जमील शाह की प्रेरणादायक यात्रा पर आधारित है, जो धारावी के एक छोटे से कमरे से सबसे बड़ी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय हस्तियों के लिए सर्वश्रेष्ठ डांसिंग शूज बनाता है।

ऋषभ भटनागर के काम में सर्कस ऑफ लाइफ, ड्रीमिंग अवेक, द इंग्लिशमैन और जैसी फिल्में शामिल हैं। उन्होंने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों के लिए सफल व्यावसायिक विज्ञापन फिल्मों का निर्माण किया है और सोनी, परसेप्ट पिक्चर्स, धर्मा प्रोडक्शंस और मुक्ता आर्ट्स के साथ जुड़े रहे हैं।

जोगविंद्र खेड़ा वाशिंगटन डीसी दक्षिण एशियाई फिल्म महोत्सव के कलात्मक निदेशक हैं। उन्होंने दो फीचर फिल्मों में सुभाष घई की सहायता की है और लोकप्रिय ब्रांडों के लिए कई विज्ञापनों का निर्देशन किया है। उन्होंने मुक्ता आर्ट्स, आईरॉक और वन अप एंटरटेनमेंट जैसे प्रोडक्शन हाउस के साथ काम किया है।

आखिर में दिखायी गई सुपरमैन ऑफ मालेगांव की कहानी भारत के महाराष्ट्र शहर मालेगांव के निवासियों के फिल्म निर्माण के प्रति जुनून के इर्द-गिर्द घूमती है। यह शहर सांप्रदायिक तनाव, गरीबी और कठिनाई से भरा हुआ है। इन सब से बचने के लिए मालेगांव के निवासी बॉलीवुड फिल्मों पर स्पूफ बनाने लगते हैं। यह डॉक्यूमेंट्री उसी फिल्म निर्माण प्रक्रिया की एक यात्रा है। सुपरमैन ऑफ मालेगांव साल 2008 की एक हिंदी डॉक्यूमेंट्री फिल्म है, जिसे फैजा अहमद खान ने लिखा और निर्देशित किया है। यह डॉक्यूमेंट्री 29 जून 2012 को सिनेमाघरों में रिलीज हुई थी।

कार्यक्रम के आरम्भ में दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी ने उपस्थित सभी लोगों का स्वागत किया और अन्त में निकोस ने सभी उपस्थित जनों का आभार व्यक्त किया।

इस अवसर पर , कुल भूषण नैथानी, मदन बिष्ट,अभि नन्दा, जगदीश महर,विनोद सकलानी,सुंदर बिष्ट,मनोज कुमार पँजानी, शैलेन्द्र नौटियाल,सहित शहर के अनेक फिल्म प्रेमी, रंगकर्मी, सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक साहित्यकार सहित दून पुस्तकालय के अधिसंख्य युवा पाठक उपस्थित रहे।

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दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र

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