देहरादून, 8 जुलाई। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन पर 750 करोड़ की लागत से ट्रैक बिछाया जाएगा। बृहस्पतिवार 4 जुलाई को इसके लिए टेंडर प्रक्रिया पूर्ण हो चुकी है। भारतीय रेलवे का उपक्रम इरकॉन इंटरनेशनल जल्द ही ट्रैक बिछाने का कार्य शुरू करेगा।
सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन परियोजना का कार्य तेजी से चल रहा है। 125 किमी लंबी रेलवे लाइन पर 16 सुरंग हैं। इनके खुदान का करीब 75 फीसदी से अधिक कार्य पूर्ण हो चुका है। वर्ष 2025 के अंत तक सभी सुरंगों का खुदान पूर्ण होने का लक्ष्य रखा गया है। रेल विकास निगम के प्रबंधक ओपी मालगुडी ने बताया कि सात कंपनियां अलग-अलग स्थानों पर टनल खोदने का काम कर रही हैं। रेल लाइन के लिए 105 किलोमीटर मैन टनल के अलावा एडिट टनल और निकासी टनल भी बनाई जा रही है।
125 किमी दूरी वाली इस रेलवे लाइन का 105 मीटर हिस्सा सुरंगों से होकर गुजरेगा। जिसमें सबसे बडी टनल करीब 14 किलोमीटर लंबी है। शेष 20 किमी में पुल और रेलवे स्टेशन होंगे। अब इस रेलवे लाइन पर ट्रैक बिछाने की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। इसके लिए रेलवे विकास निगम ने टेंडर प्रक्रिया पूर्ण कर ली है। रेलवे विकास निगम के अधिकारियों का कहना है कि 2026 के अंत तक ट्रैक बिछाने का कार्य पूर्ण कर लिया जाएगा।
पूरी परियोजना में 13 स्टेशन
ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन पर कुल 13 स्टेशन हैं। इनमें वीरभद्र और योगनगरी रेलवे स्टेशन का कार्य पूर्ण हो चुका है। योगनगरी रेलवे स्टेशन तक ट्रेनें चल भी रही हैं। इनके अलावा शिवपुरी, ब्यासी, देवप्रयाग, जनासू, मलेथा, श्रीनगर, धारीदेवी, तिलनी, घोलतीर, गौचर व सिंवई (कर्णप्रयाग) में स्टेशन हैं। स्टेशन निर्माण के लिए टेंडर प्रक्रिया आगामी अगस्त तक पूरी होने की संभावना है।
कर्णप्रयाग रेल लाइन भारतीय रेलवे का दूसरा पहाड़ी ब्राडगेज ट्रैक होगा। इससे पहले जम्मू- उधमपुर-कटरा-श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक भारतीय रेलवे की अकेली ब्राडगेज पहाड़ी रेल लाइन है। उत्तर रेलवे द्वारा संचालित कालका-शिमला नैरोगेज को विश्व धरोहर का दर्जा हासिल है। दूसरी मीटरगेज लाइन उत्तर रेलवे के जोगिंदरनगर-पठानकोट है। यह हिमांचल के पहाड़ी क्षेत्रों से पठानकोट पहुंचती है।
लाइन का 84 फीसदी हिस्सा सुरंग के अंदर से गुजरेगा
इस रेलवे लाइन का 84 फीसदी हिस्सा सुरंग के अंदर से गुजरेगा। पूरी रेललाइन पर 16 मुख्य और 12 सहायक सुरंगें बनाई जा रही हैं। सात सहायक सुरंगें हाईवे से जुड़ रही हैं जो आपातकाल में निकासी का कार्य करेंगी। पूरी लाइन पर 16 पुल हैं। इनमें चंद्रभागा, लक्ष्मोली व श्रीनगर में पुल निर्माण का कार्य पूर्ण हो चुका है। शेष 13 पुलों का निर्माण कार्य भी 70 फीसदी से अधिक पूर्ण हो चुका है।
90 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से रेल का परिचालन अनुमानित किया गया है। कुल 125.20 किलोमीटर लम्बी इस लाइन का निर्माण तेजी से चल रहा है।105.47 किलोमीटर की 17 टनल, 98.54 किलोमीटर एस्केप टनल सहित कुल 218 किलोमीटर टनल का निर्माण किया जा रहा है। परियोजना में 2835 मीटर के 16 महत्वपूर्ण पुल भी बनेंगे। इसमें 12 रेलवे स्टेशन बनाये जा रहे हैं। साथ ही 65 मीटर ऊंचा पुल भी है।इस लाइन का अनुमानित लागत 2011-12 में 4295.3 करोड़ थी जो अब बढ़ कर 16216 करोड़ होगयी।
पिछले रिकार्डों के अनुसार ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन के लिए पहला सर्वे 1919 में गढ़वाल के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर जे.एम. क्ले ने करवाया था।इसक बाद इस लाईन के लिए 1927 के आसपास भी सर्वे हुआ।उसके बाद हुये सर्वेक्षणों के आधार दार्जिलिंग और शिमला तक तो उस समय रेल चली गयी, मगर उत्तराखण्ड अब तक कर्णप्रयाग तक रेल की प्रतीक्षा कर रहा है। सन् 1996 में तत्कालीन रेल राज्य मंत्री सतपाल महाराज की पहल पर एक बार फिर कर्णप्रयाग तक सर्वे हुआ। इसी तरह टनकपुर-बागेश्वर लाइन अंग्रेजी प्रशासन की प्रस्तावित योजनाओं में शामिलर ही। कुछ लोग पहाड़ के इस ख्वाब का नाम ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल के बजाय अलकापुरी एक्सप्रेस या सतोपंथ एक्सप्रेस जैसा नाम चाहते हैं।