उत्तराखण्ड : जनजातियों का इतिहास
✍️– उषा रावत
उत्तराखण्ड की सांस्कृतिक विविधता का सबसे महत्वपूर्ण लेकिन सबसे उपेक्षित पहलू है , यहाँ की जनजातियाँ। वे समुदाय, जिन्होंने सदियों से हिमालय की कठोर भौगोलिक परिस्थितियों में अपने अस्तित्व को बनाए रखा, अपनी अनूठी जीवनशैली, लोककथाओं, परंपराओं और ज्ञान पद्धतियों को सहेज कर रखा , लेकिन मुख्यधारा के इतिहास में जिन्हें कभी गंभीरता से जगह नहीं मिली।
जयसिंह रावत द्वारा लिखित यह पुस्तक ‘उत्तराखण्ड : जनजातियों का इतिहास’ एक महत्वपूर्ण और दुर्लभ प्रयास है, जो उत्तराखण्ड की प्रमुख जनजातियों — जैसे भोटिया, थारू, जौनसारी, बुक्सा और राजी — के ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं को विस्तार से प्रस्तुत करती है। यह न केवल एक शोधपरक कृति है, बल्कि एक संवेदनशील सामाजिक दस्तावेज भी है, जिसमें इन जनजातियों के संघर्ष, परिवर्तन और अस्तित्व की कथा को सजीव रूप में चित्रित किया गया है।
इस पुस्तक की विशेषता यह है कि यह न तो जनजातीय जीवन को महज एक “विषय” के रूप में देखती है और न ही सिर्फ तथ्यों की खानापूरी करती है। इसके हर अध्याय में लेखक की वर्षों की शोध-यात्रा, जमीनी अनुभव और पत्रकारिता की गहराई स्पष्ट रूप से झलकती है। उन्होंने सरकार की जनजाति नीतियों, शिक्षा, स्वास्थ्य, विस्थापन, वन अधिकार, पर्यटन और बाज़ारीकरण जैसे मुद्दों का विश्लेषण करते हुए यह बताया है कि किस तरह से ये जनजातियाँ अपनी पहचान को बचाए रखने की जद्दोजहद में लगी हैं।
‘उत्तराखण्ड : जनजातियों का इतिहास’ न केवल शोधार्थियों और इतिहासकारों के लिए बल्कि विद्यार्थियों, नीति-निर्माताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और आम पाठकों के लिए भी अत्यंत उपयोगी है। यह पुस्तक उन लोगों के लिए एक आँख खोलने वाला दस्तावेज़ है, जो उत्तराखण्ड को सिर्फ देवभूमि के रूप में देखते हैं, लेकिन यहाँ के लोगों की असली कहानियों से अनजान हैं।
इस महत्वपूर्ण कृति के लिए लेखक जयसिंह रावत को हार्दिक बधाई। साथ ही, इसे प्रकाशित करने के लिए विनसर पब्लिशिंग कंपनी, देहरादून का भी आभार, जिसने इस विचारोत्तेजक पुस्तक को पाठकों तक पहुँचाया।
प्रकाशक: विंसर पब्लिशिंग कंपनी, डिस्पेंसरी रोड, देहरादून, Phone- 7055585559