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जब भी मिल बैठते हैं ये दो यार, मचा देते हैं धमाल

-दिनेश शास्त्री-
लोकगायन के क्षेत्र में कई जोड़ियां सुपर हिट होती रही हैं, यह अलग बात है कि समय का झंझावात अथवा व्यवसायिक दायित्व जोड़ियों को एक दूसरे से दूर कर देते हैं। इसके बाद भी जब कभी संयोग बनता है और जोड़ी बैठती है तो चाहने वाले मुग्ध हो जाते हैं।
हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड की इसी तरह की एक जोड़ी की। यह जोड़ी है  80 के दशक की। इस जोड़ी ने उस कालखंड में लोकगीतों में धमाल मचाया था। किरदार हैं  दीवान कनवाल और अजय ढौंढियाल। ये दोनों कुमाऊनी लोकगीत गायन के सशक्त हस्ताक्षर रहे हैं और उनकी यह यात्रा आज भी निरंतर जारी है।
आपको बता दें, दीवान कनवाल पहली कुमाऊनी फीचर फ़िल्म मेघा आ के पार्श्वनाथ गायक रहे। यह फ़िल्म जीवन सिंह बिष्ट ने बनाई थी और 1987 में रिलीज हुई थी। यह फिल्म बाद में दूरदर्शन पर भी प्रसारित हुई थी। दीवान कनवाल के साथ उतनी ही प्रसिद्धि अपने निराले अंदाज के कारण अजय ढोड़ियाल की रही है। मूलतः अजय ढौंढियाल पत्रकार हैँ। ये दोनों दशकों पुराने मित्र हैँ और विभिन्न मंचों पर सदा साथ गाते रहे हैँ।
अभी हाल में ये जोड़ी संयोगवश देहरादून में मिली तो पुराने दिनों की याद ताजा हो गई। इन दोनों का एक वीडियो सोशल मीडिया पर साथ गाते हुए वायरल हो रहा है जिसको बहुत पसंद किया जा रहा है। गीत वही पुराना है – हिसाऊ खा छे खाले हीरा काफव काचे छू। गीत की भावभूमि यह है कि ग्रीष्म ऋतु आ गई है किंतु अभी काफल पकने में कुछ वक्त बाकी है जबकि हिंसालु पक गए हैं।
लिहाजा नायक से कहा जा रहा है कि फिलहाल हिंसालु खाने हैं तो खा लो, काफल अभी कच्चे हैं। इस तरह के लोकगीत उत्तराखंड के जनमानस में अरसे से लोकप्रिय रहे हैं। हालांकि आज भी उस दौर के गीतों की लोकप्रियता कम नहीं है किंतु भौतिकता की दौड़ में काफी कुछ पीछे छूट रहा है। आप भी इस जोड़ी के बिना साज बाज गाए गए गीत का आनंद लीजिए।

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