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हमारे पूर्वजों को सीधा चलने योग्य बनाने वाले जीनों का रहस्योद्घाटन

Scientists have now discovered some of the crucial molecular steps that led to that conspicuous character millions of years ago. A study published in the journal Nature on Wednesday suggests that our early ancestors became bipeds, as old genes started doing new things. Some genes became active in novel places in the human embryo, while others turned on and off at different times.

 

कार्ल ज़िमर द्वारा
27 अगस्त, 2025

चार्ल्स डार्विन ने 1859 में अपनी प्रसिद्ध कृति ऑन द ओरिजिन ऑफ स्पीशीज़ में विकासवाद के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। किंतु उन्हें यह स्वीकार करने में बारह वर्ष और लगे कि मनुष्य भी विकास की उसी प्रक्रिया का परिणाम हैं।
1871 में प्रकाशित द डिसेंट ऑफ मैन में डार्विन ने तर्क दिया कि मनुष्य वानरों से विकसित हुए हैं और उनके विकासक्रम में सबसे गहन परिवर्तनों में से एक था—सीधे खड़े होकर चलना।

डार्विन ने लिखा—“केवल मनुष्य ही द्विपाद (बाइपेड) बना है।” उन्होंने द्विपादता को मानवता का “सबसे विशिष्ट लक्षण” करार दिया।

अब वैज्ञानिकों ने उन महत्वपूर्ण आणविक प्रक्रियाओं का खुलासा किया है जिन्होंने लाखों वर्ष पूर्व इस विशिष्ट गुण को जन्म दिया। बुधवार को नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला कि हमारे आदि-पूर्वज इसलिए द्विपाद बने क्योंकि प्राचीन जीनों ने नई भूमिकाएँ निभाना शुरू कर दीं। कुछ जीन भ्रूण में नए स्थानों पर सक्रिय हुए, जबकि कुछ ने अपने चालू-बंद होने का समय बदल लिया।

वैज्ञानिकों का मानना रहा है कि सीधे चलने में सबसे अहम भूमिका एक हड्डी इलियम निभाती है। यह श्रोणि (पेल्विस) की सबसे बड़ी हड्डी है; जब आप अपने कूल्हे पर हाथ रखते हैं तो जो भाग स्पर्श में आता है, वही इलियम है।

बायाँ और दायाँ इलियम रीढ़ की हड्डी के आधार से जुड़े होते हैं। प्रत्येक इलियम पेट के अगले हिस्से तक फैला होता है, जिससे कटोरे जैसी संरचना बनती है। चलने में सहायक अनेक मांसपेशियाँ यहीं से जुड़ी होती हैं। यही हड्डी पेल्विक फ्लोर को सहारा देती है, जो मांसपेशियों का जाल है और खड़े होने पर हमारे आंतरिक अंगों को टोकरी की भांति थामे रखता है।

रोज़मर्रा की ज़िंदगी में जितना यह हड्डी अनिवार्य है, उतना ही यह पीड़ा का कारण भी बन सकती है। इसमें गठिया हो सकता है, बुढ़ापे में यह भंगुर हो जाती है—विशेषकर महिलाओं में—और गिरने से आसानी से फ्रैक्चर हो सकता है। आनुवंशिक विकार इसे विकृत कर देते हैं, जिससे चलना कठिन हो जाता है। यही हड्डी जन्म नहर का भी बड़ा भाग बनाती है—जहाँ कभी-कभी शिशु अटक सकते हैं और माँ के लिए जीवनघातक स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

इतना महत्त्वपूर्ण होते हुए भी इलियम का विकास लंबे समय तक रहस्य बना रहा। हार्वर्ड के विकासवादी आनुवंशिकीविद् डॉ. टेरेंस कैपेलिनी कहते हैं—“मेरे लिए यह अद्भुत है कि इलियम हमारे चलने और प्रसव के लिए अनिवार्य है, फिर भी इसके विकास के बारे में इतनी कम जानकारी है।”

चित्रण: चिंपैंज़ी, ऑस्ट्रेलोपिथेकस और आधुनिक मनुष्य की श्रोणि एवं निचले अंगों की तुलना
स्रोत: एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका / यूनिवर्सल इमेजेज ग्रुप, नॉर्थ अमेरिका एलएलसी

डॉ. कैपेलिनी और उनकी टीम ने इलियम पर गहन शोध शुरू किया। इस शोध में हार्वर्ड की पोस्ट-डॉक्टोरल शोधकर्ता गयानी सेनेविरथने ने वॉशिंगटन विश्वविद्यालय के भ्रूण ऊतक संग्रह से मानव भ्रूणों का अध्ययन किया। उन्होंने विकसित होते इलियम के त्रि-आयामी मॉडल बनाए और यह विश्लेषण किया कि कौन-कौन से जीन कब और कहाँ सक्रिय होते हैं।

इसी तरह उन्होंने चूहों के भ्रूणों का भी अध्ययन किया। दोनों प्रजातियों की तुलना से यह संकेत मिले कि मानव इलियम किस प्रकार विकसित हुआ। किंतु चूहे मनुष्य से दूर के रिश्तेदार होने के कारण सीमित जानकारी ही प्रदान कर सके।

अधिक स्पष्टता के लिए डॉ. सेनेविरथने ने प्राइमेट भ्रूणों की खोज की। उन्होंने अमेरिका और यूरोप के संग्रहालयों से संपर्क किया और चिंपैंज़ी, गिबन आदि प्रजातियों के भ्रूण नमूने पाए, जिन्हें जारों में संरक्षित किया गया था। इनका स्कैन कराने की व्यवस्था भी की।

एक बार वह तड़के बोस्टन से न्यूयॉर्क पहुँचीं और अमेरिकन म्यूज़ियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री से सौ वर्ष पुराने काँच के स्लाइड्स का एक क्रेट कार में लादकर ले आईं। इनमें लेमर भ्रूण के अंश संरक्षित थे। उन्होंने कहा—“मुझे डर था कि कहीं पुलिस न रोक ले, पर यह जोखिम आवश्यक था। उस सामग्री के बिना हमारी कहानी अधूरी रहती।”

कुल मिलाकर, शोधकर्ताओं ने 18 प्राइमेट प्रजातियों का अध्ययन किया। पेरिस के पाश्चर इंस्टीट्यूट की आनुवंशिकीविद् कैमिल बर्थेलोट कहती हैं—“यह आश्चर्यजनक है कि इतनी विविध भ्रूण प्रजातियाँ जुटाई गईं।”

शोध से ज्ञात हुआ कि प्राइमेट्स में इलियम का प्रारंभिक विकास चूहों जैसा ही है—रीढ़ के दोनों ओर दो कार्टिलेज छड़ें बनती हैं और बाद में हड्डी की कोशिकाएँ उन्हें प्रतिस्थापित कर देती हैं। परंतु मानव भ्रूण में यह प्रक्रिया अलग निकली।

डॉ. कैपेलिनी बताते हैं—“मानव भ्रूण में इलियम रीढ़ के समानांतर नहीं बल्कि लंबवत छड़ के रूप में आरंभ होता है। एक सिरा पेट की ओर और दूसरा पीछे की ओर बढ़ता है।” यही छड़ आगे बढ़कर अंतिम आकार ग्रहण करती है।

उनके अनुसार यह एक अद्वितीय घटना है—“मानव शरीर में कहीं और ऐसा नहीं देखा गया जहाँ वृद्धि का पूरा ढाँचा ही उलट गया हो।”

विशेष बात यह रही कि मानव इलियम ने वही जीन नेटवर्क अपनाया जो चूहों में सक्रिय होता है, लेकिन कार्यप्रणाली बदल दी। भ्रूणीय कोशिकाएँ पड़ोसी कोशिकाओं से मिले संकेतों पर प्रतिक्रिया करके जीनों को बिल्कुल नए पैटर्न में सक्रिय करती हैं और इस प्रकार अलग दिशा में बढ़ती हैं।

कैमिल बर्थेलोट का कहना है—“यह परिकल्पना तार्किक है। कंकाल के अन्य हिस्सों में भी इसी प्रकार पुराने जीनों के नए उपयोग से बदलाव आया है।”

डॉ. कैपेलिनी और उनकी टीम का मानना है कि यही उलटाव द्विपादता के विकास की कुंजी था। इसने हमारे पूर्वजों को ऐसी श्रोणि दी जो सीधा चलने के लिए आवश्यक मांसपेशियों को सहारा देती थी।

अध्ययन यह भी दर्शाता है कि लाखों वर्षों बाद एक और बड़ा परिवर्तन आया—जब मनुष्यों ने विशाल मस्तिष्क विकसित किए। वैज्ञानिकों ने पाया कि इलियम का कार्टिलेज हड्डी में परिवर्तित होने में लगभग 15 सप्ताह अधिक लेता है। डॉ. कैपेलिनी कहते हैं—“यह अत्यंत असाधारण और क्रांतिकारी बदलाव है।”

उनका अनुमान है कि यह परिवर्तन तब हुआ जब लगभग दस लाख वर्ष पहले मानव मस्तिष्क का आकार बढ़ा। बड़े सिर वाले शिशुओं का प्रसव कठिन था। प्राकृतिक चयन ने उन माताओं को बढ़त दी जिनकी श्रोणि गोलाकार थी और जन्म नहर अपेक्षाकृत चौड़ी थी।

टीम अब आगे श्रोणि के विकासक्रम को और गहराई से समझना चाहती है तथा यह जानना चाहती है कि इस विकास ने हमें किन-किन रोगों के प्रति संवेदनशील बनाया। किंतु मई में ट्रम्प प्रशासन द्वारा हार्वर्ड की अरबों डॉलर की फंडिंग रोक देने से शोध बीच में अटक गया, जिसमें यह परियोजना भी सम्मिलित थी।

डॉ. कैपेलिनी कहते हैं—“हम सब सोचते हैं कि यदि फंडिंग बंद न हुई होती तो हम कितनी दूर तक पहुँच गए होते।”

(कार्ल ज़िमर, द न्यूयॉर्क टाइम्स के लिए विज्ञान पर लिखते हैं और ऑरिजिन्स कॉलम के लेखक हैं।)

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