कितना अजीब है यह Valentine’s Day, जो मूलतह शहीद दिवस था
-गोविंद प्रसाद बहुगुणा –
कितना अजीब है यह “प्रेम दिवस” मनाने की प्रथा जो आजकल चल पड़ी है “सिखा सरी” अपना ली गयी है जिसको युवा वर्ग Valentine’s Day बोलते हैं दरअसल यह तो मुख्यतः ” शहीद दिवस” के रूप में रोम में एक संत वैलेंटाइन के नाम से मनाया जाता था – तो क्या यह माने कि यह Valentine’s Dayभी प्रेमी जोड़ों का एक दूसरे के लिए बलिदान होने का दिवस है ? खैर इससे हमारा कोई लेना -देना नहीं लेकिन आजकल के बच्चों का खुल्लम-खुल्ला प्रेम देखकर अपना पुराना ज़माना जरूर याद आता है कि कैसा समय था हम लोगों का! -यह इस कविता में पढ़िए जो मैंने अभी हाल ही में एक कविता कोश में पढ़ी, लीजिए आप भी पढ़िए-GPB
“तब का प्यार//-सरोज उप्रेती .
तब का प्यार तब प्यार की परिभाषा ही अलग थी
लड़के -लडकियों का प्यार मन ही मन होता
फिर दिल दिया जाता
किसी को देखा तो मन को भा गया
फिर सपनो में भी वो ख्यालो में भी
वो ही नज़र आता
तब दबी जुबान से प्यार शब्द का उच्चारण करना
बेशर्मी का प्रतीक था I
बॉयज गर्ल्स कॉलेज में मीलों दूरियां थी
फिर भी प्यार करने वाले प्रेमी
रिसेज के वक्त कालेज के आस- पासमंडराते नजर आ जाते थे
जिस लडकी के दीवाने उसकी एक झलक पाने को
बेताब दिख गई तो उनके वारे न्यारे
ऐसा था तब का प्यार।
लडकियों पर पूरी बंदिस होने के बाबजूद
मिलने के कई बहाने थे
नई किताब लेने का बहाना
सहेली से कापी वापस लेने का बहाना
छोटे भाई को बोडीगार्ड बना कर साथ लेजाना
उसके हाथ में लोलीपोप थमाकर
दुकान के बाहर खड़ा कर देना
लोलिपोप के खत्म होने तक प्यार का इजहार भी कर देना
ऐसा था तब का प्यार।
शादियों में लडकियों पर घर वालों की पूरी निगरानी होती
पर प्यार तो प्यारपरवान चढ़ ही जाता
लोगों की निगाहों से बचकर
आखों के इशारों में दिल से दिल मिलते
फिर होता प्यार हो जाता
एसा था तब का प्यार।
कभी किसी लडके का
बाल बाल सुखाती लडकी पर दिल आ जाना
ना झटको जुल्फ से पानी गाते हुए
गली से निकलना
लडकी का आखें मिलते ही शर्म से लाल हो जाना
फिर होता था सिलसिला गुलाबी रंग के लिफाफे में
इत्र तरबर चिठ्ठी का कालेज के लीटर बॉक्स तक पहुच जाना
लड़की का सहेली को साथ लेकर
प्रेमी से गुपचुप मिलने जाना
फिर प्यार का इजहार
ऐसा था तब का प्यार
-सरोज उप्रेती”