उत्तराखंड में भूस्खलन व ग्लेशियर झीलों पर वैज्ञानिक निगरानी होगी तेज : विशेषज्ञ संस्थानों को दी गयी जिम्मेदारियां
देहरादून, 23 सितम्बर। मुख्य सचिव श्री आनन्द बर्द्धन ने मंगलवार को वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जीएसआई), इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग (आईआईआरएस), सेंट्रल वॉटर कमीशन सहित राष्ट्रीय स्तर के वैज्ञानिक संस्थानों के साथ भूस्खलन न्यूनीकरण पर महत्वपूर्ण बैठक की। बैठक में भूस्खलन संभावित क्षेत्रों की पहचान और उसके प्रभावी समाधान पर विस्तृत चर्चा हुई।
मुख्य सचिव ने कहा कि प्रदेश के भूस्खलन संभावित क्षेत्रों का चिन्हीकरण कर एक पूर्वानुमान मॉडल तैयार किया जाए। ऐसा मैकेनिज्म विकसित करना होगा, जो सैटेलाइट इमेज और धरातलीय परीक्षणों के आधार पर यह अनुमान लगा सके कि कितनी वर्षा के बाद किसी विशेष क्षेत्र में भूस्खलन की संभावना बन सकती है। इससे समय रहते निचले क्षेत्रों को खाली कर लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी।
उन्होंने वाडिया संस्थान, आईआईआरएस, जीएसआई और सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट को मिलकर इस दिशा में तत्काल और वृहत स्तर पर काम शुरू करने के निर्देश दिए।
मुख्य सचिव ने प्रदेश की 13 ग्लेशियर झीलों में सेंसर लगाने की जिम्मेदारी वाडिया संस्थान को सौंपी। उन्होंने कहा कि शुरुआत में 6 संवेदनशील झीलों पर सैटेलाइट एवं धरातलीय परीक्षण कर सेंसर स्थापित किए जाएं। साथ ही इन झीलों की संवेदनशीलता कम करने के उपायों पर भी कार्य किया जाए। उन्होंने आश्वासन दिया कि इस कार्य के लिए आवश्यक फंड की कोई कमी नहीं आने दी जाएगी और सभी जरूरी वैज्ञानिक संस्थानों का सहयोग भी उपलब्ध कराया जाएगा।
मुख्य सचिव ने इसे मल्टी इंस्टीट्यूशनल टास्क बताते हुए कहा कि सभी संस्थानों को गंभीरता से और तत्काल इस दिशा में कार्य करना होगा।
इस अवसर पर सचिव श्री विनोद कुमार सुमन, आईजी एसडीआरएफ श्री अरुण मोहन जोशी, महानिदेशक यूकॉस्ट प्रो. दुर्गेश पंत सहित वाडिया संस्थान, आईआईआरएस, जीएसआई, सेंट्रल वॉटर कमीशन के वैज्ञानिक और अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।
