विजय बहुगुणा का देहरादून धमकना गरमा गया राजनीतिक महौल

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देहरादून, 27 अक्टूबर। हरीश रावत के मुख्यमंत्रित्व काल में सन् 2016 में बगावत कर भाजपा में शामिल हुये कांग्रेस के 9 बागियों की वापसी की तैयारियों की चर्चा के बीच अचानक पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के देहरादून धमकने से उत्तराखण्ड में राजनीतिक माहौल गरमा गया है। भाजपा में लम्बे समय से अपनी उपेक्षा महसूस कर रहे कांग्रेस के इन पुराने बागियों के नेता विजय बहुगुणा ही माने जाते हैं। अटकलों को फिलहाल रोकने के लिये बुधवार को विजय बहुगुणा ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से भी भेंट की मगर बागियों के दूसरे बड़े नेता हरकसिंह रावत आये दिन विस्फोटक बयान देकर तथा पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के पक्ष में बयान दे कर भाजपा नेतृत्व की धड़कनें बढ़ाते जा रहे हैं।

विधानसभा चुनाव करीब आते जाने के साथ ही कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य के वापस कांग्रेस में लौट जाने के बाद पूर्व बागियों के कैंप में हरकतें बढ़ जाने के साथ ही विजय बहुगुणा का देहरादून आ धमकना राजनीतिक हलचल तो बढ़ा गया मगर उन्होंने बुधवार को मुख्यमंत्री से भेंट कर उन्होंने दलबदल की अटकलों में नये सिरे जोड़ दिये हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार विजय बहुगुणा मुख्यमंत्री ही नहीे अपितु भाजपा नेतृत्व को यह विश्वास दिलाना चाहते हैं कि कांग्रेस के पुराने बागियों की वापसी अवश्यंभावी है और अगर कोई उनको भाजपा में ही रोके रख सकता है तो वह अकेला सख्श मैं ही हूं। चूंकि 2016 की बगावत के असली सूत्रधार विजय बहुगुणा ही थे और वही अब तक बागियों के इस कैंप का नेतृत्व करते रहे हैं, इसलिये भाजपा नेतृत्व उन पर विश्वास कर भी सकता है। लेकिन यह मिशन वह मुफ्त में कामयाब क्यों करेंगे? इसके लिये लम्बे समय से उपेक्षित बहुगुणा के लिये सौदेबाजी का यही उपयुक्त पूर्व सीएम बहुगुणा के अचानक देहरादून पहुंचने व खफा बताए जा रहे नेताओं से मिलने ने कयासबाजी और बढ़ा दी है। यशपाल आर्य के अपने विधायक पुत्र के साथ भाजपा छोड़ कर कांग्रेस में जाने से भाजपा नेतृत्व पहले असहज स्थिति में था लेकिन उसके बाद हरक सिंह  और काऊ ने भाजपाइयों रक्तचाप और अधिक बढ़ा दिया है। ऐसी स्थिति में विजय बहुगणा भाजपा के काम आ सकते हैं लेकिन जाहिर है कि वह इस मिशन की मुंहमांगी कीमत मांगेंगे।  वह कीमत राज्य  सभा की  सीट  भी हो  सकती है, क्यूंकि    राज्य  से  प्रदीप  टमटा  की  सीट खाली  हो  रही  है. लेकिन उन्हें अपने साथ ही सौदेबाजी का लाभांश भी उनको बागियों में बांटना पड़ेगा।

मंगलवार दोपहर दून पहुंचते ही बहुगुणा सबसे पहले विधायक उमेश शर्मा काऊ के घर पहुंचे। बहुगुणा ने काऊ से करीब डेढ़ घंटे एकांत में बात की। मुलाकात के बाद बकौल काऊ, मैं विजय बहुगुणा के नेतृत्व में ही कांग्रेस से भाजपा में आया था। हमारी आपस में बात होती रहती है। आज वह दून में थे तो मेरा हाल-चाल लेने आए थे। इस दौरान सामान्य बातचीत ही हुई।

दूसरी ओर बागियों के कार्यकारी नेता हरक सिंह रावत भी चुप होने का नाम नहीं ले रहे हैं। मंगलवार को ही उन्होंने मीडिया से बातचीत में कहा कि‘‘फिलहाल’’ उनका कांग्रेस में जाने का इरादा नहीं है। फिलहाल शब्द का मतलब साफ है। उन्होनें यह कह कर साफ कर दिया कि आने वाले वक्त में वह कांग्रेस में जा सकते हैं। हरक राजनीतिक धमाके करने के एक्सपर्ट माने जाते हैं। वह दल बदलने में भी गुरेज नहीं करते। उन्होंने 1996 में भाजपा छोड़ कर धमाका किया था। उसके बाद उन्होंने 2016 में कांग्रेस में राजनीतिक धमाका कर डाला। इन दिनों जिस प्रकार वह हरीश रावत पर मस्खा लगा रहे हैं उससे उनकी वापसी तय मानी जा रही है। क्योंकि हरीश रावत कह चुके हैं कि 2016 के बागी माफी मांग कर वापस कांग्रेस में लौट सकते हैं और हरक सिंह रावत न केवल माफी मांग गये बल्कि हरीश रावत की तारीफ भी कर गये जबकि वह इससे पहले हरीश रावत के कटु आलोचक बने हुये थे।

राजनीतिक ज्योतिषियों के अनुसार अगर हरक सिंह रावत और उमेश शर्मा काऊ का अभियान इस तरह जारी रहा तो दीपावली के आसपास वह संभावित धमाका होने वाला है जिसकी की समय से प्रतीक्षा की जा रही है। चर्चा यहां तक है कि हरकसिंह रावत की अपेक्षाएं कुछ ज्यादा ही हैं इसलिये उनकी कांग्रेस वापसी में विलम्ब हो रहा है। यह भी चर्चा है कि वह जिलने लोगों को भाजपा से तोड़ना चाहते हैं उतने सभी को टिकट देना कांग्रेस के लिये आसान नहीं है। अगर इतने लोगों को एडजस्ट कर दिया तो कांग्रेस के अपने बफादार छिटक जायेंगे।

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