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एंटीबायोटिक दवाओं पर नहीं हो रहा असर, डब्ल्यू.एच.ओ. ने दी वैश्विक संकट की चेतावनी

  • प्रतिरोधी बैक्टीरिया से मौतों में उछाल, डब्ल्यू.एच.ओ. ने जताई गहरी चिंता

  • 2050 तक 3.9 करोड़ मौतों का खतरा: एंटीबायोटिक प्रतिरोध पर डब्ल्यू.एच.ओ. की रिपोर्ट

  • दवा नहीं कर रही काम, संक्रमण बढ़ रहा बेकाबू: डब्ल्यू.एच.ओ. का अलर्ट

 

-एंड्रयू जैकब्स-

द टाइम्स के संवाददाता हैं,

 

विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O.) की एक नई रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि दुनियाभर में हर छह में से एक संक्रमण अब आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधी हो चुका है, जिससे संक्रमणों का इलाज और मुश्किल होता जा रहा है। इस प्रतिरोध की दर सालाना 15% तक की वृद्धि दिखा रही है।

13 अक्टूबर, 2025 को जारी इस रिपोर्ट में बताया गया है कि यह प्रतिरोध मूत्र संक्रमण, गोनोरिया, ई. कोलाई और अन्य जानलेवा बैक्टीरिया में देखा जा रहा है, जो हर साल लाखों लोगों की जान लेते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 40% तक संक्रमण अब उन एंटीबायोटिक दवाओं का भी जवाब नहीं दे रहे, जिन्हें पहले प्रभावी माना जाता था।

दक्षिण-पूर्व एशिया और पूर्वी भूमध्यसागर क्षेत्र में स्थिति और भी गंभीर है, जहां हर तीन में से एक संक्रमण दवाओं के प्रति प्रतिरोधी है—यह वैश्विक औसत से लगभग दोगुना और यूरोप व पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र की तुलना में तीन गुना अधिक है।

इस बढ़ती हुई एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध (AMR) की समस्या का सबसे अधिक प्रभाव कम और मध्यम आय वाले देशों में देखा जा रहा है, जहां स्वास्थ्य प्रणाली पहले से ही कमजोर है।

W.H.O. के एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध विभाग के निदेशक, डॉ. इवान ह्यूटिन ने कहा,

“एंटीबायोटिक प्रतिरोध व्यापक रूप से फैला हुआ है और आधुनिक चिकित्सा के भविष्य के लिए खतरा बनता जा रहा है। जिन लोगों की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच सीमित है, वे इन संक्रमणों का सबसे बड़ा शिकार बनते हैं।”

डब्ल्यू.एच.ओ. के अनुमान के अनुसार, हर साल एक मिलियन से अधिक लोगों की मौत दवा-प्रतिरोधी बैक्टीरियल और फंगल संक्रमणों से होती है, और लगभग पांच मिलियन मौतों में ये संक्रमण योगदान करते हैंद लैंसेट में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, आने वाले 25 वर्षों में 3.9 करोड़ से अधिक लोगों की मौत ऐसे संक्रमणों से हो सकती है।

रिपोर्ट के अनुसार, यह प्रतिरोध स्वाभाविक रूप से समय के साथ विकसित होता है, लेकिन एंटीबायोटिक दवाओं के अत्यधिक और गलत इस्तेमाल से यह प्रक्रिया तेज़ हो जाती है। वहीं दूसरी ओर, नई दवाओं के विकास की गति बेहद धीमी है, क्योंकि इस क्षेत्र में काम कर रही दवा कंपनियों को व्यावसायिक लाभ नहीं मिल रहा है।

रिपोर्ट में विशेष रूप से ग्राम-नेगेटिव बैक्टीरिया के खतरे की ओर इशारा किया गया है, जिनकी बाहरी परत एंटीबायोटिक दवाओं को प्रवेश करने से रोकती है। इनमें ई. कोलाई और क्लेब्सिएला न्यूमोनिया जैसे बैक्टीरिया शामिल हैं, जो गंभीर संक्रमण और सेप्सिस का कारण बनते हैं। अफ्रीका में ऐसे संक्रमणों के लिए इस्तेमाल होने वाली प्रमुख दवाएं – सेफालोस्पोरिन्स – के प्रति प्रतिरोध की दर 70% से अधिक है।

अगर इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो इसका असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी भारी पड़ सकता है। सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलेपमेंट की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2050 तक वैश्विक आर्थिक उत्पादन में $1.7 ट्रिलियन डॉलर की गिरावट हो सकती है, जिसका कारण मुख्य रूप से उत्पादकता में कमी और परिवार के कमाऊ सदस्यों की समयपूर्व मृत्यु होगी।

हालांकि रिपोर्ट में कुछ सकारात्मक संकेत भी मिले हैं। 2015 में शुरू की गई निगरानी प्रणाली में अब तक लगभग 140 देश शामिल हो चुके हैं, जिनमें से 100 देशों ने इस साल प्रतिरोध संबंधी डेटा प्रदान किया, जो पिछले वर्षों की तुलना में चार गुना वृद्धि है।

डब्ल्यू.एच.ओ. में निगरानी और डायग्नोस्टिक प्रयासों की प्रमुख डॉ. सिल्विया बर्टान्योलियो ने कहा कि दुनिया भर में इस समस्या को लेकर जागरूकता बढ़ रही है, और अधिक देश सहयोग के लिए आगे आ रहे हैं। हालांकि उन्होंने यह भी बताया कि लगभग आधे देश अब भी कोई डेटा नहीं दे रहे, और जो दे रहे हैं उनमें से भी कई के पास भरोसेमंद आंकड़े एकत्र करने की क्षमता नहीं है


एंड्रयू जैकब्स द टाइम्स के संवाददाता हैं, जो इस पर ध्यान केंद्रित करते हैं कि स्वास्थ्य नीति, राजनीति और कॉरपोरेट हित किस प्रकार लोगों के जीवन को प्रभावित करते हैं।

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