ऐसे प्रेरक चरित्र अब कहां रह गये !
– गोविंद प्रसाद बहुगुणा-
आज से ४५ साल पहले की बात है, जब गणतंत्र दिवस २६ जनवरी १९९५ के दिन दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला विशेष अतिथि के रुप में भारत पधारे थे, तो उस दिन उन्होने गणतंत्र दिवस की स्थापना के उपलक्ष्य में अपने व्याख्यान के साथ ही पंडित जवाहरलाल नेहरू की मूर्ति का भी अनावरण किया था । उस दिन संसद भवन में अपने संबोधन में उन्होंने सभी सांसदों से कहा था कि -” A good leader can engage in a debate frankly and thoroughly, knowing that at the end he and the other side must be closer, and thus emerge stronger. You don’t have that idea when you are arrogant, superficial and uninformed.. in honouring the memory of Pandit Nehru, the first Prime Minister of an independent India and a person whose influence upon the thinking of our liberation movement, and upon my own thinking, was profound and lasting.
Panditji taught that narrow forms of nationalism, intense and powerful as they may be in awakening people to struggle, are inadequate as a basis for achieving victory or for lasting peace. Our experience has shown us the truth of this lesson that exclusiveness must give way to co-operation and interdependence…..”
उस समय भारत के प्रधानमंत्री श्री नरसिम्हाराव जी थे और राष्ट्रपति डा०शंकरदयाल शर्मा थे, दोनो ही विद्वान पुरुष थे। अतिथि राष्ट्रपति
नेल्सन मंडेला दुनिया की उन आनोखी नामी हस्तियों में थे, जो स्वतंत्रता और मानव अधिकारों के प्रवल समर्थक थे जिसकी वजह से उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार, लेनिन शान्ति पुरस्कार और भारत रत्न जैसे अलौ करणों के अलावा ५० से अधिक अंतरराष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए थे। अपने देश की आजादी के खातिर वे २७ वर्ष तक जेल में बंद रहे। वे अपने देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति रहे लेकिन दूसरे कार्यकाल के लिए उन्हें जब फिर निर्वाचित किया गया तो उन्होंने विनम्रतापूर्वक इस पद को अस्वीकार करते हुए कहा था कि अब दूसरे युवा और योग्य लोगों को अवसर दिया जाना चाहिए। यह भी एक मिसाल कायम की थी उन्होंने।….GPB