ब्लैक मंडे का डर क्यों ?
-By- Milind Khandekar
सोशल मीडिया पर पोस्ट की बाढ़ सी आ गई है कि सोमवार को शेयर बाज़ार में क्या होगा? ब्लैक मंडे की आशंका जताई जा रही है. इसकी जड़ में है अमेरिका में मंदी की आशंका. मंदी की आशंका का कारण है बेरोज़गारी और इससे जुड़ा है Sahm Rule. इसके हिसाब से तीन महीने की बेरोज़गारी दर पिछले 12 महीने की न्यूनतम दर से 0.5% ज़्यादा है तो मंदी आती है. 1970 से यह फ़ार्मूला सही साबित हुआ है. यह Rule बनाने वाली Claudia Sahm का कहना है कि अकेले इस आँकड़े के आधार पर मंदी की आशंका ग़लत है. फिर भी बाज़ार का डर बना हुआ है.
अमेरिका के शेयर बाज़ार में पिछले हफ़्ते गिरावट आयी है. टेक्नॉलजी शेयरों का पैमाना नापने वाले Nasdaq क़रीब 4% गिर चुका है. पिछले बुधवार को फ़ेड रिज़र्व ने ब्याज दरों में कटौती का फ़ैसला नहीं किया. अब उम्मीद है कि सितंबर में कटौती हो सकती है क्योंकि बेरोज़गारी बढ़ रही है. कोरोनावायरस के बाद महंगाई को क़ाबू में करने के लिए दुनिया भर में सेंट्रल बैंक ने ब्याज दरों को बढ़ाया ताकि लोगों के हाथ से पैसा खिंच लिया जाएँ. पैसा कम होगा तो खर्च कम करेंगे. खर्च कम करेंगे तो महंगाई कम होगी. इसके चलते मंदी का डर भी बना रहता है. सवाल सिर्फ़ इतना होता है कि ख़राब मौसम में फँसे इकनॉमिक विमान की लैंडिंग हार्ड होगी या सॉफ़्ट. हार्ड मतलब मंदी का दौर, बेरोज़गारी, आमदनी ना बढ़ना और सॉफ़्ट का मतलब बिना मंदी में फँसे बच निकलना.
अब ब्याज दर बढ़ाकर दो साल हो चुके हैं. महंगाई की दर क़ाबू में आ रही है. फिर भी ब्याज दरों में कटौती करने का फ़ैसला नहीं हो रहा है. इसका एक बड़ा कारण रहा है GDP में बढ़ोतरी हो रही है. ब्याज दर ज़्यादा होने के बाद भी आर्थिक गतिविधि कम नहीं हो रही है. अब अमेरिका में बेरोज़गारी बढ़ने के…