ट्रंप क्यों पलट गए ?
-By- Milind Khandekar
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार की सुबह नौ बजे सोशल मीडिया पर पोस्ट किया कि यह शेयर ख़रीदने का समय है. टैरिफ़ लगाने के बाद से शेयर बाज़ार नीचे था. दोपहर दो बजे तक वो पलट गए. चीन को छोड़कर बाक़ी देशों पर अतिरिक्त टैरिफ़ पर 90 दिन की रोक लगा दी. हिसाब किताब में चर्चा करेंगे कि ट्रंप क्यों पलटे और आगे अब क्या करेंगे?
ट्रंप ने गाजे बाजे के साथ दो अप्रैल को 86 देशों पर टैरिफ़ लगाने की घोषणा की थी. 10% बेसिक टैरिफ़ सभी देशों पर पाँच अप्रैल से लागू हो गया. नौ अप्रैल से हर देश पर अलग-अलग अतिरिक्त टैरिफ़ लगाया गया था. जो जितना टैरिफ़ अमेरिका पर लगाते हैं उतना अमेरिका उस पर लगा देगा. शेयर बाज़ार गिरना तय था. ट्रंप कहते रहे कि उन्हें बाज़ार की परवाह नहीं है. यह अमेरिका के भविष्य के लिए उठाया गया कदम है. खेल तब पलट गया जब शेयर बाज़ार के साथ साथ बॉन्ड बाज़ार भी गिर गया. इसका मतलब था कि अमेरिकी सरकार को क़र्ज़ पर ज़्यादा ब्याज चुकाना पड़ सकता है. ट्रंप इस डर से पलट गए.
पहले समझ लेते हैं कि बॉन्ड होते क्या है?
किसी भी देश की सरकार आम तौर पर खर्च ज़्यादा करती है और कमाई कम. घाटा पूरा करने के लिए सरकार बाज़ार से क़र्ज़ लेती है. यह क़र्ज़ उठाने के लिए सरकार बॉन्ड जारी करती है. ये बॉन्ड दस साल या उससे ज़्यादा अवधि की होते हैं. बॉन्ड पर सरकार समय समय पर क़र्ज़ चुकाती रहती है. अमेरिकी सरकार के बॉन्ड सबसे सेफ़ माने जाते हैं. इसमें दूसरे देशों की सरकारें भी पैसे लगाती हैं जैसे भारत, चीन, जापान. ये बॉन्ड बाज़ार में लिस्ट होते हैं और शेयरों की तरह उनकी ख़रीद फ़रोख़्त होती है.
शेयर बाज़ार और बॉन्ड बाज़ार आमतौर पर विपरीत दिशा में चलते हैं. शेयर बाज़ार नीचे जाता है तो निवेशक बॉन्ड बाज़ार की शरण में आते हैं. वहाँ 4% से ज़्यादा रिटर्न मिलता रहता है. रिस्क ना के बराबर. इस बार शेयर बाज़ार के साथ साथ बॉन्ड बाज़ार में भी बिकवाली हो गई. निवेशकों को लगा कि टैरिफ़ लगने से महंगाई बढ़ेगी. ब्याज दरों में बढ़ोतरी होगी . इसका सीधा नुक़सान अमेरिका की सरकार को है. आख़िर बॉन्ड पर
ब्याज तो उसे ही चुकाना होगा. बॉन्ड बाज़ार में बिकवाली चीन की तरफ़ से करने की चर्चा रही है लेकिन कोई पुष्टि नहीं हुई है.
कितना बड़ा असर?
टैरिफ़ की घोषणा के बाद 10 साल के बॉन्ड का रेट क़रीब 4% से बढ़कर 4.5% तक पहुँच गया यानी क़रीब 0.5% .
- अमेरिका का कुल सरकारी कर्ज़: लगभग 30 ट्रिलियन डॉलर
- 2023 में ब्याज पर कुल खर्च: करीब 875 अरब डॉलर सालाना
अगर बॉन्ड रेट 0.5% (यानी आधा प्रतिशत) बढ़ता है तो अमेरिका को सालाना 150 अरब डॉलर ज़्यादा ब्याज चुकाना पड़ सकता है
न्यूयार्क टाइम्स के मुताबिक़ बॉन्ड बाज़ार के दबाव में ट्रंप ने फ़ैसला बदल दिया. इसके अलावा ट्रंप समर्थकों का दबाव, अमेरिका में मंदी की आशंका भी कारण बने.
अब सवाल है कि आगे क्या होगा?
ट्रंप का पुराना रिकॉर्ड देखें तो 90 दिन की रोक को एक्सटेंशन मिलता रहेगा. उन्होंने कहा कि 75 देश बातचीत के लिए हमारे संपर्क में है. भारत तो पहले से बातचीत कर रहा है, इसलिए कम से कम भारत अब इसके चपेट में आने की आशंका कम है. वैसे भी भारत की अर्थव्यवस्था पर इसका असर पड़ने की आशंका कम थी. इसकी चर्चा हमने पिछले हफ़्ते की थी. अमेरिका में मंदी की आशंका भारत के लिए मुश्किल खड़ी कर सकती थी .
फिर भी ख़तरा बना हुआ है. वो हैं अमेरिका और चीन की लड़ाई. दोनों देश एक दूसरे पर डेढ़ सौ परसेंट टैरिफ़ लगा चुके हैं. ट्रंप का कहना है कि चीन ने बदले की कार्रवाई की है इसलिए वो उसे छूट नहीं देंगे. यह लड़ाई भी लंबी चलने की संभावना कम है. एक तरफ़ है दुनिया का सबसे बड़ा कारख़ाना यानी चीन और दूसरे तरफ़ उस कारख़ाने का सबसे बड़ा बाज़ार यानी अमेरिका. दोनों जानते हैं कि इसमें नुक़सान दोनों देशों का है. बातचीत के दरवाज़े दोनों तरफ़ से खुल रहे हैं, रास्ता भी जल्द खुलना चाहिए.