आखिर मोदी और शाह की भुजाएं गुजरात में क्यों नहीं फड़कती ?…… गुजरातियों का सेना से परहेज का कारण क्या है। ..???

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जयसिंह रावत

देश को केवल अपने हाथों में सुरक्षित होने का दावा कर रहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उत्तराखण्ड, पंजाब और हरियाणा जैसे सैन्य बाहुल्य राज्यों में जा कर सेना के पराक्रम, शौर्य और सर्वोच्च बलिदान का जज्बा जगा रहे हैं, जबकि उन्हें यह जज्बा सबसे पहले अपने गृह राज्य गुजरात में जगाना चाहिये था जहां उन्होंने 15 साल तक मुख्यमंत्री के रूप में राज किया और दशकों तक उस प्रदेश के सामाजिक और राजनीतिक जीवन का हिस्सा रहे। मोदी जी वहां देश के लिये सर्वोच्च बलिदान का जज्बा पैदा नहीं कर सके। कुल मिला कर व्यवसाय प्रधान राज्य गुजरात का देश की आजादी और फिर राष्ट्र निर्माण में उल्लेखनीय योगदान तो अवश्य रहा मगर राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में योगदान नगण्य रहा है।

देश के काम 56 इंच के नहीं 36 इंच के सीनें आते हैं

इस वर्ष 11 दिसम्बर को भारतीय सैन्य अकादमी में आयोजित शीतकालीन दीक्षान्त परेड में छोटे से राज्य उत्तराखण्ड के 43 जैटलमैन कैडेट लेफ्टिनेंट के तौर पर थल सेना में शामिल हुये जबकि इतने बड़े गुजरात प्रदेश के पासआउट होने वाले जैंटलमैन कैडेटों की संख्या मात्र 2 थी। इस गणित से समझा जा सकता है कि आखिर देश के काम 56 इंच के सीनों के बजाय 36 इंच के सीने ही काम आते हैं। गाल बजाने से देश की रक्षा नहीं होती बल्कि सीनों पर गोलियां खाने से देश को सरक्षित रखा जाता है।

6 करोड़ की आबादी वाला गुजरात 6 अधिकारी भी फौज को नहीं देता

देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी में सन् 2004 से लेकर 2018 के बीच के 14 वर्षों में आयोजित 28 छमाही शीत एवं ग्रीष्म कालीन पासिंग आउट परेडों (दीक्षान्त परेडों) में से 15 परेडों के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार इन 15 अवसरों पर लगभग 1 करोड़ की जनसंख्या वाले उत्तराखण्ड के 723 युवा अधिकारी के रूप में देश की थल सेना में शामिल हुये जबकि 6,03,83,628 (2011 की जनगणना के अनुसार) आबादी वाले गुजरात के केवल 56 युवा सेना में गये। गुजरात की जनसंख्या 7 करोड़ से ऊपर जा चुकी है और इन 14 वर्षों में सेना में अधिकारी के तौर पर जाने वाले गुजरात के युवाओं की संख्या 100 के आसपास मानी गयी है। जबकि हरियाणा और उत्तराखण्ड के सेना ज्वाइन करने वाले अधिकारियों की संख्या डेढ हजार से ऊपर तथा उत्तर प्रदेश के युवाओं की संख्या 2 हजार के ऊपर हो गयी है। जून 2007 के दीक्षान्त समारोह में उत्तर प्रदेश के 116,  हिमाचल के 17 हरियाणा के 56 और उत्तराखण्ड के 69 नव सैन्य अधिकारी पासआउट हुये वहीं गुजरात का केवल एक युवा अधिकारी बन कर थल सेना की किसी यूनिट में शामिल हुआ। ऐसी भी कुछ दीक्षान्त परेडें गुजरीं जबकि जनसंख्या के हिसाब से देश के इस 10वें बड़े राज्य गुजरात से एक भी अधिकारी आर्मी में नहीं पहुंचा। दिल्ली जैसे शहरनुमा राज्य से तक हर छह महीने में दर्जनभर युवा अधिकारी बन कर सेना में शामिल होते हैं।

IMA Dehradun POP December 2021 -The State-Wise List of Gentlemen Cadets

SERNO STATE / UNION TERRITORY 149 REG 132 TGC TOTAL
1 ANDHRA PRADESH 5 0 5
2 ANDAMAN NICOBAR 0 0 0
3 ARUNACHAL PRADESH 0 0 0
4 ASSAM 2 0 2
5 BIHAR 26 0 26
6 CHANDIGARH 5 0 5
7 CHHATTISGARH 2 0 2
8 DELHI 10 1 11
9 GUJARAT 1 1 2
10 GOA 0 0 0
11 HARYANA 34 0 34
12 HIMACHAL PRADESH 12 1 13
13 JAMMU & KASHMIR 11 0 11
14 JHARKHAND 4 0 4
15 KARNATAKA 5 1 6
16 LADAKH 0 0 0
17 KERALA 5 0 5
18 INDIANS WITH NEPAL DOMICILE 1 0 1
19 MADHYA PRADESH 19 1 20
20 MAHARASHTRA 17 3 20
21 MANIPUR 2 0 2
22 MEGHALAYA 0 0 0
23 MIZORAM 2 0 2
24 NAGALAND 0 0 0
25 ODISHA 1 1 2
26 PUNJAB 22 0 22
27 PONDICHERRY 0 0 0
28 RAJASTHAN 20 3 23
29 SIKKIM 0 0 0
30 TAMIL NADU 6 1 7
31 TELANGANA 3 0 3
32 TRIPURA 0 0 0
33 UTTAR PRADESH 43 2 45
34 UTTARAKHAND 42 1 43
35 WEST BENGAL 3 0 3
TOTAL 303 16 319

गुजरात से अधिक विदेशी नेपाल का अधिक योगदान

राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में गुजरात के नगण्य योगदान के बारे में रक्षा विश्लेषक आकार पटेल ने आउटलुक पत्रिका के 13 मई 2017 के अंक में लिखा है कि देश की सेना में गुजरात से अधिक विदेशी नेपाल का अधिक योगदान है। पटेल के अनुसार वर्ष 2009 में विशेष जनजागरण अभियान के बाद गुजरात के सर्वाधिक 719 युवा तीनों सेनाओं में सैनिक के तौर पर भर्ती हुये जो कि देश के 10 बड़े राज्यों में लगभग नगण्य है। गुजरातियों में भी सेना में भर्ती होने वालों में जडेजा और सोलंकी जैसी मार्शल क्षत्रिय जातियों के युवा शामिल हैं। व्यावसायिक संस्कारों के कारण गुजरात में बड़े-बड़े व्यवसायी एवं उद्योगपति हुये। आन, बान और शान के लिये मर मिटने की परम्परा न होने के कारण रक्षा के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में गुजरातियों का उल्लेखनीय योगदान रहा। यहीं मोहन दास कर्मचन्द गांधी, सरदार पटेल, मोहम्मद जिन्ना और नरेन्द्र मोदी जैसे असाधारण राजनेता भी हुये मगर गुजरात ने उत्तराखण्ड, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों की तरह पराक्रमी जनरल या परमवीर सैनिक नहीं दिये। उत्तराखण्ड की कुमाऊं रेजिमेंट ने तो स्वतंत्र भारत का पहला परम वीरचक्र तथा गढ़वाल राइफल्स के दरबान सिंह नेगी और गबर सिंह नेगी ने प्रथम विश्व युद्ध में 1914 और 1915 में दो विक्टोरिया क्रास जीते थे। उनमें से दरबान सिंह नेगी पहले भारतीय थे जिन्हें ब्रिटिश साम्राज्य का सबसे बड़ा बहादुरी का पुरस्कार विक्टोरिया क्रास मिला था। हालांकि उस समय दूसरे विजेता खुदाबन्द खान भी भारतीय थे जो बाद में पाकिस्तानी नागरिक बने। देश की रक्षा के लिये गुजरात से किसी सैनिक की कभी शहादत हुयी हो, ऐसा भी सुनने को नहीं मिला है, जबकि कारगिल युद्ध के दौरान सर्वोच्च बलिदान देने वाले 527 शहीदों में से 75 शहीद उत्तराखण्ड के थे। उस समय उत्तराखण्ड की जनसंख्या मात्र 84 लाख से भी कम थी।

मोदीशाह की भुजाऐं केवल उत्तराखण्ड आकर फड़कती हैं

मोदी जी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश और हरियाणा जैसे राज्यों में जा कर देश प्रेम और देश के लिये सर्वोच्च बलिदान का जज्बा पैदा करने की चुनावी कोशिश कर रहे हैं, जबकि उत्तराखण्ड के लोगों में यह जज्बा आज से नहीं बल्कि प्राचीन काल से ही कूट-कूट कर भरा हुआ है। उत्तराखण्ड पहला राज्य है जिसकी गढ़वाल राइफल्स और कुमाऊं रेजिमेंट भारत की थल सेना की ताकत बढ़ाती हैं। विशुद्ध गढ़वालियों की ‘‘गढ़वाल राइफल्स’’ की 22 रेगुलर बटालियनों के अलावा 2 इको टास्क फोर्स, 1 गढ़वाल स्काउट, और तीन राष्ट्रीय राइफल्स की बटालियनें हैं। इसी तरह 1947 में कबायली हमले को नाकाम कर जम्मू-कश्मीर को बचाने वाली कुमाऊं रेजिमेंट की भी 21 बटालियनें, 2 टेरिटोरियल आर्मी, 1 कुमाऊं स्काउट और 3 अन्य विशेष बटालियनें हैं। नगा रेजिमेंट का मुख्यालय भी रानीखेत में ही है जिसमें बड़ी संख्या में गढ़वाली, कुमाऊनी और भारतीय गोरखा सैनिक शामिल हैं। सेना के तीनों अंगों में उत्तराखण्ड के सैनिक हैं और देश की असम राइफल्स समेत सेना की ऐसी कोई पैरा मिलिट्री फोर्स नहीं जिसमें उत्तराखण्ड के सैनिक बहुतायत में न हों। अब तक उत्तराखण्ड देश को 2 थल सेनाध्यक्ष और एक नोसेनाध्यक्ष दे चुका है। तीनों सेनाओं में दूसरी और तीसरी पंक्ति के सैन्य नेतृत्व में भी उत्तराखण्ड, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान आर पंजाब के जाबाजों की बहुतायत है। इसलिये इन राज्यों में सैन्य जज्बा जगाने के बजाय गुजरात में सेना के प्रति आकर्षण पैदा किये जाने की जरूरत है ताकि राष्ट्रीय सुरक्षा में हर क्षेत्र का योगदान सुनिश्चित करने के साथ ही देश की सुरक्षा और मजबूत की जा सके।

भगोड़े सैनिक भी सेना के शौर्य का गुणगान करते हैं

इंदिरा गांधी के बाद नरेन्द्र मोदी को निश्चित रूप से सबसे साहसी प्रधानमंत्री माना जा सकता है। उनकी सुरक्षा सम्बन्धी डॉक्टरिन इज्राइल से मिलती जुलती ही नहीं बल्कि प्रेरितभी लगती है। लेकिन मोदी जी को यह बात भी ध्यान में रखनी होगी कि इज्राइल इतना छोटा देश होते हुये भी इतना शक्तिशाली और साहसी इसलिये है क्योंकि वहां के नागरिकों के लिये अनिवार्य सैन्य सेवा है। इज्राइल के अलावा भी अन्य कई देशों में किसी न किसी रूप में सैन्य सेवा की अनिवार्यता है। लेकिन भारत में कुछ विशेष क्षेत्रों और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के कन्धों पर देश की सुरक्षा की जिम्मेदारी छोड़ दी गयी है। भारत में सेना का चाहे जितना भी गुणगान कर लो मगर नेता, नौकरशाह और व्यापारी वर्ग अपने लाडलों को सेना की जाखिम भरी नौकरी से दूर रखता है। राजनीति में आये भगोड़े सैनिक भी सेना के शौर्य का गुणगान करते हैं।

तीनों सशस्त्र सेनाओं में 52,000 सैनिकों की कमी

लोकसभा में 21 मार्च 2018 को रक्षा राज्यमंत्री सुभाष भामरे द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार तीनों सशस्त्र सेनाओं में 52,000 सैनिकों की कमी है। भामरे के अनुसार थल सेना में 21,383, नोसेना में 16,348 और वायु सेना में 15,010 सैनिकों की कमी है। थल सेना में उस तिथि तक 7,680 अधिकारियों की कमी है। यह कमी केवल जुबानी सेवा से पूरी नहीं हो सकती। सैनिकों और सैन्य साजोसामान की कमी से देश सशक्त नहीं हो सकता। जनरल बीसी खण्डूड़ी की अध्यक्षता वाली रक्षा सम्बन्धी संसदीय समिति ने इस कमी को उजागर किया तो खण्डूड़ी को अध्यक्ष पद से हाथ धोना पड़ा। अगर लोग इसी तरह सेना से दूरी बनाये रखेंगे तो घुस कर मारने और आतंकियों को चुन-चुन कर मारने की बात बेमानी है। हैरानी का विषय यह है कि पिछले पांच सालों में उत्तराखण्ड के युवाओं में भी सेना के प्रति आकर्षण कम हो रहा है। वर्ष 2014 तक जहां भारतीय सैन्य अकादमी से उत्तराखण्ड के 69 तक युवा हर 6 महीने में पास आउट होते थे और हरियाणा तथा उत्तराखण्ड में सैन्य अधिकारी देने की प्रतिस्पर्धा लगी रहती थी वहीं अब यह संख्या गिर कर 25 से 30 के बीच आ गयी है। देश को मजबूत बनाने के लिये ‘‘लिप सर्विस’’ से काम नहीं चलेगा। इसलिये जरूरी है कि सेना में हर वर्ग की और हर प्रदेश की भागीदारी सुनिश्चित करने के साथ ही आवश्यक सैन्य सेवा का प्रावधान करने पर भी विचार किया जाय।

jaysinghrawat@gmail.com

मोबाइल-941232499

 

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