शेयर बाज़ार नर्वस है?
-Milind Khandekar
ठंडे चुनाव की गर्मी शेयर बाज़ार तक पहुँच गई है. पिछले हफ़्ते भर में BSE में निवेशकों को दस लाख करोड़ रुपये का नुक़सान हो गया है. शुक्रवार को बाज़ार बढ़ोतरी के साथ बंद हुआ, फिर भी सवाल बना हुआ है कि शेयर बाज़ार आने वाले दिनों में किस तरफ़ जाएगा?
शेयर बाज़ार को नापने का पैमाना होता है इंडेक्स जैसे नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ़्टी 50. इसमें अलग अलग सेक्टर के 50 शेयर है. यह इंडेक्स पिछले 6 महीने में 13% बढ़ा है, लेकिन पिछले एक महीने में 2% घटा है. इस कारण सवाल पूछा जा रहा है कि बाज़ार को किस बात का डर है?
एक और इंडेक्स है India VIX यह Volatility को मापता है. 23 अप्रैल को यह 10 पर था और अब 18 पर यानी बाज़ार में उथल-पुथल बढ़ी हैं. यह उथल-पुथल बाज़ार में गिरावट का एक कारण हो सकता है. 2019 के चुनाव में भी यह इंडेक्स मार्च में 14 से बढ़कर मई में 28 तक पहुँच गया था यानी पिछले चुनाव में भी बाज़ार में बेचैनी थी. ऐसी ही उथल-पुथल 2009 और 2014 में देखी गई थी. 2009 में दुनिया भर में फ़ाइनेंशियल संकट के बाद चुनाव हुए थे. कांग्रेस का गठबंधन जीता था. मई 2009 में VIX 84 तक पहुँच गया था. रिज़ल्ट के बाद नीचे आया . 2014 में VIX 37 तक पहुँच गया था उस समय बीजेपी की जीत हुई थी. इस आधार पर VIX के उतार चढ़ाव को चुनाव नतीजों से जोड़ना जल्दबाज़ी होगी.
चुनावों से पहले बाज़ार में उठापटक होती रही है. यह चार्ट बताता है कि 6 महीने का रिटर्न अच्छा रहता है. बाज़ार को चुनाव रिज़ल्ट में उम्मीद दिखती है. 2009 और 2014 के मुक़ाबले 2019 में रिटर्न चुनाव से पहले और बाद में कम रहा है. इस बार Nifty 50 का 6 महीने का रिटर्न 13% रहा है. यह औसत के आसपास है.
बाज़ार के जानकारों का कहना है कि बीजेपी की जीत को डिस्काउंट कर रखा है यानी बाज़ार मानकर चल रहा है कि सरकार बीजेपी की बनेगी. फिर अचानक क्या हुआ है? इसका जवाब EMKAY फ़ाइनेंशियल की लीड इकनॉमिस्ट माधवी अरोड़ा देती है. उन्होंने कहा कि बाज़ार को उम्मीद थी कि बीजेपी 2019 की 303 सीटों से ज़्यादा सीटें आराम से हासिल करेगी लेकिन सीटें 300 से कम होने की आशंका से बाज़ार में उथल-पुथल है. फ़िलिप कैपिटल की रिपोर्ट में कहा गया है कि 400 पार होने की संभावना नहीं है. वोट प्रतिशत घटने से अटकलें लग रही है . इसका असर कुछ सीटों पर पड़ सकता है लेकिन हमारा मानना है कि बीजेपी फिर से सरकार बनाने जा रही है.
चुनाव के अलावा दो फ़ैक्टर है विदेशी निवेशकों की बिकवाली और कंपनियों के रिज़ल्ट्स.फ़रवरी और मार्च में विदेशी निवेशक शेयर ख़रीद रहे थे. अप्रैल से बेचना शुरू किया और मई महीने में तो 17 हज़ार करोड़ रुपये की बिकवाली कर चुके हैं. कंपनियों के रिज़ल्ट्स भी उम्मीद के मुताबिक़ ही रहे हैं. मोतीलाल ओसवाल की रिपोर्ट के मुताबिक़ Nifty की 50 कंपनियों में से 28 के रिज़ल्ट से पता चलता है कि उनका प्रॉफिट 13% बढ़ा है जबकि बाज़ार को उम्मीद 8% बढ़ने की थी. यह गिरावट का कारण नहीं हो सकता है. ऐसे में बाज़ार की बेचैनी समझ पाना मुश्किल है.
वैधानिक चेतावनी : यह लेख सिर्फ़ जानकारी देने के उद्देश्य से लिखा गया है.इसके आधार पर निवेश का फ़ैसला नहीं करें. शेयर बाज़ार में निवेश के लिए SEBI से मान्यता प्राप्त सलाहकारों से बात करना चाहिए.