मंगलौर में करतार भड़ाना खत्म कर पाएंगे भाजपा का सूखा?
-दिनेश शास्त्री-
उत्तराखंड विधान सभा की मंगलौर सीट के लिए आगामी दस जुलाई को होने वाले उप चुनाव में भाजपा और कांग्रेस ने प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं। कांग्रेस ने इस सीट से काजी निजामुद्दीन को प्रत्याशी बनाया है जबकि भाजपा ने हरियाणा के गुर्जर नेता करतार सिंह भड़ाना को मैदान में उतारा है। इसके अलावा बसपा ने यहां के दिवंगत विधायक अंसारी के पुत्र उदेबुर्रहमान को प्रत्याशी बनाया है। इस तरह यहां त्रिकोणीय मुकाबला तय हो गया है।
अतीत में झांकें तो इस सीट पर हमेशा से मुस्लिम प्रत्याशी ही जीतता रहा है।
उत्तराखंड की स्थापना के बाद से वर्ष 2022 में हुए पांचवीं विधानसभा के चुनाव में भाजपा कभी भी यहां से जीत का परचम नहीं लहरा पाई। उसके लिए यह सीट हमेशा अंगूर खट्टे वाली सिद्ध होती रही है। इसी सूखे को खत्म करने के लिए इस बार भाजपा हरियाणा से हैवीवेट प्रत्याशी को ले आई है। इस लिहाज से कहा जा सकता है कि भाजपा दूर की कौड़ी ले आई है।
करतार सिंह भड़ाना हरियाणा में सहकारिता मंत्री रह चुके हैं और वहां के बड़े कारोबारी नेता हैं। उनके छोटे भाई अवतार सिंह भड़ाना फरीदाबाद और मेरठ से सांसद रह चुके हैं। एक बार तो वह उत्तर प्रदेश में विधायक भी रहे हैं। यही नहीं हरियाणा में लोकदल की सरकार में तो वह बिना विधायक चुने छह माह तक कैबिनेट मंत्री तक रहे हैं। उनके राजनीतिक कौशल को इतने भर से आंका जा सकता है। यानी राजनीतिक रूप से उनका परिवार राजनीति में खूब रचा बसा हुआ है।
अभी हाल में लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा प्रत्याशियों के पक्ष में हरियाणा में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की जनसभाएं आयोजित करवाने में उनका बड़ा योगदान रहा था और शायद तभी उन्होंने धामी का मन भी जीत लिया था।
वैसे भड़ाना ने 2007 में भी मंगलौर सीट से चुनाव मैदान में उतरने का प्रयास किया था लेकिन तब प्रशासन ने उनका काफिला आदर्श चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के आरोप में रोक दिया था और वे अपना नामांकन ही दाखिल नहीं कर पाए थे किंतु हरियाणा से उत्तराखंड की राजनीति में छलांग लगाने की हसरत उन्होंने नहीं छोड़ी और अंततः इस बार भाजपा ने उन्हें टिकट देकर पार्टी के लिए सूखा खत्म करने की कोशिश कर ली है। चुनाव का नतीजा क्या रहेगा, यह फैसला तो दस जुलाई को होगा किंतु भाजपा ने रेगिस्तान में कमल खिलाने के लिए जमीन हरी भरी करने का इंतजाम जरूर कर दिया है।
पृथक उत्तराखंड राज्य गठन के बाद अस्तित्व में आई मंगलौर पहले लक्सर विधानसभा सीट का हिस्सा हुआ करती थी। उत्तराखंड की स्थापना के बाद वर्ष 2002 और 2007 में हुए विधानसभा चुनावों में बसपा से काजी निजामुद्दीन ने लगातार दो बार इस सीट से जीत दर्ज की थी। पहली बार उन्होंने अजीत सिंह के नेतृत्व वाले लोकदल के प्रत्याशी और दूसरी बार कांग्रेस के हाजी सरवत करीम अंसारी को हराया था। दोनों बार भारतीय जनता पार्टी को यहां चौथे स्थान से संतोष करना पड़ा था। इसके बाद आया वर्ष 2012 का विधानसभा चुनाव। उस समय स्थिति इस कदर बदली कि काजी और हाजी दोनों नेताओं ने पाला बदल लिया था। बसपा के टिकट पर दो बार विधायक चुने गए काजी निजामुद्दीन ने कांग्रेस का दामन थामा तो हाजी सरवत करीम अंसारी ने बसपा का दामन थाम लिया था।
अभी तक का अनुभव यही दर्शाता है कि किसी भी लिहाज से इस सीट का समीकरण भाजपा के अनुकूल नहीं रहा है। वस्तुत यह सीट पूरी तरह मुस्लिम बहुल है और भाजपा के पास इस सीट पर हमेशा जिताऊ उम्मीदवार का टोटा रहा है। इस कारण किसी भी चुनाव में यहां खाता नहीं खोल पाई है किंतु इस उपचुनाव में भाजपा ने बड़ा दांव खेलते हुए कांग्रेस और बसपा दोनों के सामने भड़ाना को लाकर बड़ी चुनौती पेश करने की कोशिश की है।
वैसे आंकड़े अभी तक भाजपा के पक्ष में नहीं रहे हैं। विगत 19 अप्रैल को संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने इस सीट पर 23001 मतों की बढ़त हासिल की थी। भाजपा के त्रिवेंद्र रावत को यहां मात्र 21100 वोट मिले जबकि कांग्रेस प्रत्याशी वीरेंद्र रावत को 44101 वोट मिले यानी भाजपा को मिले वोट से दूने से अधिक कांग्रेस को मिले।
मंगलौर विधान सभा सीट पर कुल पंजीकृत मतदाताओं की संख्या 1,19,930 है। इनमें 63,287 पुरुष तथा 56,616 महिला और 26 थर्ड जेंडर मतदाता हैं। इनमें 255 सर्विस मतदाता है। यहां दिव्यांग मतदाताओं की संख्या 922 और सीनियर सिटीजन की संख्या 933 है। देखना यह है कि इस उपचुनाव में करतार सिंह भड़ाना भाजपा का सूखा खत्म कर पाते हैं या नहीं। यह देखना निसंदेह दिलचस्प होगा।
(नोट: -लेखक/समीक्षक वरिष्ठ पत्रकार और उत्तराखंड हिमालय न्यूज़ पोर्टल के वरिष्ठ सम्पादकीय सहयोगी हैं — एडमिन)