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क्या सचमुच 6 माह के अंदर उत्तराखंड सरकार निकाय चुनाव करा देगी ?

-By Usha Rawat

देहरादून,  11  जनवरी।  उत्तराखंड सरकार ने नैनीताल हाई कोर्ट से  6 माह के अंदर नगर निकायों के चुनाव कराने  का वायदा तो कर दिया है मगर हालात इस वायदे को निभाने के अनुकूल नजर नहीं आ रहे हैं. क्योंकि सरकारी मशीनरी इन दिनों लोक सभा चुनाव की तैयारियों में व्यस्त है. निकाय चुनाव् 6 माह के अंदर न हो सकने का दूसरा कारण भी लोक सभा चुनाव ही है.

माना  जा रहा है की राज्य सरकार लोक सभा चुनाव से ठीक पहले कोई जोखिम मोल लेना नहीं चाहती है. अगर किसी कारण निकाय चुनावों के परिणाम अनुकूल नहीं आये तो उसका प्रभाव लोक सभा चुनाव पर भी पद सकता है. राज्य सर्कार के लिए निकाय चुनावों से कहीं महत्वपूर्ण लोक सभा चुआव हैं.

उत्तराखंड सरकार अगले छह माह में राज्य में नगर निकाय चुनाव करा लेगी। यह बात मंगलवार को उत्तराखंड हाईकोर्ट में निकाय चुनाव संबंधी दो याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान अपर सचिव शहरी विकास नितिन भदौरिया ने कही। उन्होंने सरकार की ओर से कोर्ट को बताया कि निकायों के चुनाव कराने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। आरक्षण तय करने के लिए एक सदस्यीय न्यायिक कमीशन का गठन भी किया है। कोर्ट ने अपर सचिव के बयान रिकॉर्ड करने के बाद दोनों याचिकाओं को लंबित रखते हुए मामले की अगली सुनवाई के लिए 16 अप्रैल की तिथि नियत की है।

मामले की सुनवाई कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनोज कुमार तिवारी व न्यायमूर्ति विवेक भारती शर्मा की खंडपीठ में हुई। मामले के अनुसार जसपुर निवासी मो. अनीश व अन्य ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर कहा है कि नगर पालिकाओं व नगर निकायों का कार्यकाल बीते दिसम्बर माह में समाप्त हो गया है, लेकिन कार्यकाल समाप्ति के एक माह बाद भी सरकार ने चुनाव कराने का कार्यक्रम घोषित नहीं किया बल्कि निकायों में प्रशासक नियुक्त कर दिए। जबकि निकायों के चुनाव की सरकार को याद दिलाने के लिए पूर्व से ही एक जनहित याचिका कोर्ट में विचाराधीन है। निकायों में प्रशासक नियुक्त होने से आमजन को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

 जनहित याचिका में कहा है कि सरकार को कोई अधिकार नहीं है कि वह निकायों का कार्यकाल समाप्त होने के बाद प्रशासक नियुक्त करे। प्रशासक तब नियुक्त किया जाता है जब किसी निकाय को भंग किया जाता है। उस स्थिति में भी सरकार को छह माह के भीतर चुनाव कराना आवश्यक होता है। इस समय प्रशासक नियुक्त किया जाना संविधान के विरुद्ध है।

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