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यात्रा सीजन शुरू होते ही उत्तराखंड में स्थानीय लोगों का अवागमन हुआ मुश्किल

-रिखणीखाल से प्रभुपाल रावत –

हर वर्ष की तरह  यात्रा सीजन शुरू  होते ही पहाड़ी क्षेत्रों में यातायात असुविधाओं  का गंभीर संकट शुरू हो गया है। यात्रियों की भारी भीड़  को ढोने के लिए निजी कम्पनियों की अधिकांश बसें, जीप एवम् टैक्सी आदि साधन यात्रा मार्गों पर व्यस्त हो गये हैं जिस कारण स्थानीय लोगों का एक स्थान से दूसरे स्थान पहुंचना मुश्किल  हो गया है।यात्रा सीजन में आम जनमानस व निचला तबका यातायात सुविधाओं से दूर व वंचित होता जा रहा है एवं उनसे  मनमाना किराया वसूला जा रहा है ।

 


प्रायः देखा जा रहा है कि यात्रा सीजन आरम्भ होते ही पर्वतीय क्षेत्रों में आने जाने के लिए उत्तराखंड परिवहन निगम, गढ़वाल मोटर्स ऑनर्स यूनियन लिमिटेड, प्राइवेट टैक्सी वाहनों आदि की भारी कमी हो जाती है।प्रदेश के अधिकांश वाहन सेवायें यात्रा सीजन, शादी-विवाह, तीर्थ स्नान पितृ कार्यों में आरक्षित हो जाते हैं। जिसके अभाव में आम जनमानस व निचला व गरीब गुरबा तबका आवागमन के लिए मनमाना व बेहताशा किराया देने को मजबूर हो जाता है।

यदि कोई यात्री दिल्ली, देहरादून आदि जगहों से इस गर्मियों के सीजन में अपना घर गाँव किसी शादी-विवाह आदि कार्य के लिए अपने गाँव बसों द्वारा 500-600 रुपये में पहुंच भी जाता है तो उसे अपने निकटतम मुख्य मार्ग से अपने गाँव तक जाने के लिए सम्पर्क मार्ग का 500रुपये मनमाना किराया चुकाना पड़ता है।जो कि उसे बहुत अखरता व चुभता है। लेकिन मन मसोटकर देना ही पडता है।गाँव में आने जाने के साधन तो लगभग हुए हैं लेकिन इन सम्पर्क मार्गों पर सफर करना दुर्लभ व कठिन हो गया है।लोग कहते सुने जा सकते हैं कि दिल्ली से मुख्य सड़क तक भी उतना ही किराया है जितना इस 5 किलोमीटर के देने पड रहे हैं। सम्पर्क मार्गों पर सब जगह न्यूनतम किराया वाहन चालकों ने फिक्स किया है,चाहे जाओ या न जाओ।जो कि एक न्यूनतम वेतन व ध्याडी मजदूरी वाले के लिए पहाड़ के समान व टेढ़ी खीर है।आजकल बसों में भी खचाखच सवारियां भरी रहती हैं। सामान्य जनमानस के लिए मनमाने किराये की टैक्सी आदि वाहन सफर से दूर होते जा रहे हैं।

उत्तराखण्ड सरकार,परिवहन विभाग को पहाड़ी गांवों में यातायात की सुविधाओं व सम्पर्क मार्गों का भी किराये की सूची निर्धारित कर उपलब्ध करनी चाहिए ताकि निचला तबका भी परिवहन सेवाओं से दूर न रहकर समाज से जुड़ा रहे।उसका भी समाज में जीने का मनोबल बना रहे।यही सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास सबका प्रयास के स्लोगन को फलीभूत करेगा,वरन सब व्यर्थ है।

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