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कब और कैसे हुई कुंभ की शुरुआत, इस भव्य मेले का इतिहास जानते हैं आप?

इससे पहले महाशिवरात्रि के बड़ी तादाद में श्रद्धालुओं ने शाही स्नान किया। इस बार का कुंभ कोरोना के लिहाज से कई मायनों में काफी अलग है। इस बार कोरोना की वजह से कुंभ सीमित रहेगा। साथ ही यहां आने वाले हर किसी को कोरोना गाइडलाइंस का पालन करना होगा। कुंभ की शुरुआत होत ही ये चर्चा भी तेज हो जाती है कि इसकी शुरुआत कब और कैसे हुई। आज हम आपको कुंभ के इतिहास के बारे में बताते हैं।

कुंभ की शुरुआत कब हुई ये बता पाना किसी के लिए बहुत मुश्किल है। हालांकि विद्वानों की माने तो सातवीं शताब्दी में हर्षवर्धन के समय इस आयोजन की शुरुआत हुई थी और आठवीं शताब्दी के आखिर तक आदि शंकराचार्य ने इसका फलक व्यापक कर दिया। महाकुंभ में तभी से स्नान ध्यान, पूजा-पाठ आदि की परम्परा है। शाही स्नान भी बाद में इसका हिस्सा रहे। जहां एक ओर शाही स्नान वैभव का प्रतीक रहे हैं, वहीं कई बार अखाड़ों के आपसी संघर्ष ने इसे रक्तरंजित भी किया है। बताया जाता है कि शाही स्नान की शुरुआत 14वीं-16वीं शताब्दी के मध्य में हुई। ये वह दौर है जब विदेशी अक्रांताओं की बुरी नजर भारत पर लगी हुई थी। यहां किसी केंद्रीय सत्ता का अभाव था। देश राज्यों में बंटा था। असुरक्षित हो चला था।

इतिहासकारों के मुताबिक इस दौर में हिंदु राजाओं के लिए धर्मसत्ता सर्वोपरि थी। इसी वजह से साधु-संतों से रक्षा की गुहार लगाई गयी। कालान्तर में राजा और धर्म प्रतिनिधि में संधि होने लगी। बदले में संतों ने राष्ट्र की रक्षा का वचन दिया। राजाओं ने बदले में जो तोहफे वगैरह दिए वो संतों के लिए उपयोग के नहीं थे, लेकिन संत इन सोने, चांदी के सामान, हाथी, घोड़े वगैरह का इस्तेमाल किसी खास मेले वैगरह में करते थे। यहीं से शाही स्नान परम्परा शुरू हो गई।

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