केदारनाथ आपदा 2013 की भयावह यादें
The article of Jay Singh Rawat on Kedarnath deluge was published in June 2013. Being used by portal only for the record.
-जयसिंह रावत
कल जहां बसती थी खुशियां आज है मातम वहां…. वास्तव में चार धाम यात्रा सीजन में जिस उत्तराखण्ड में इन दिनों कभी रौनक ही रौनक बिखरी रहती थी उसी उत्तराखण्ड में तबाही और मातम ही मातम नजर आ रहा है। गढ़वाल की आर्थिकी का एक मुख्य केन्द्र रही केदार घाटी में जहां तहां लाशें ही लाशें बिखरी पड़ी हैं। चप्पे-चप्पे पर बने मन्दिरों की धूप की खुशबू से महकने वाली केदार घाटी अब चील कौवे और कीड़े चिपके हुये मानव शवों की सड़ान्ध से दमघोटू हो गयी है। फौज और पैरा मिलिट्री की मदद से सरकारने एक लाख से अधिक तीर्थ यात्रियों को विषम परिस्थितियों में भी सुरक्षित निकाल लिया है, मगर हजारों तीर्थ यात्रियों और स्थानीय लापता लोगों के परिजन की डबडबाई आखें अब पथराने लगी हैं। कानूनी दायरे में बंधी राज्य सरकार अब तक हजार यात्रियों के मरने की भी पुष्टि नहीं कर पा रही है। लेकिन विधानसभा अध्यक्ष गोविन्द सिंह कुजवाल भी इस महात्रासदी में कम से कम 10 हजार लोगों के मारे जाने की बात कर रहे हैं। सुयुक्त राष्ट्र दल की ताजा रिपोर्ट में तो लापता लागों की संख्या 11 हजार तक बतायी गयी है।
देश भर के एक लाख से अधिक तीर्थ यात्री भयंकर परिस्थितियों से निकल कर अपने घरों को लौट गये हैं, मगर सड़ान्ध और तबाही उत्तराखण्ड में ही छूट गयी है। कुछ गांव तो ऐसे भी हैं जहां अब मर्द नहीं रह गये। बड़ासू जैसे गांव का किशोरपन ही गायब हो जाने से एक पीढ़ी ही समाप्त हो गयी है। मर्द लोग रोजगार के लिये केदारनाथ और उसके आसपास दुकाने चलाने, घोड़े-खच्चर चलाने, होटलों में काम करने आदि के लिये गये थे, मगर उनमें से अधिकांश को या तो रौद्ररूपी मन्दाकिनी लील गयी या लाखों टन मलवा जमींदोज कर गया। कुछ के खच्चर- घोड़े अपने मालिकों की लाशों के आसपास भूखे प्यासे मंडराते देखे गये।
रुद्रप्रयाग से लेकर केदारनाथ तक ऐसी अकल्पनीय तबाही का मंजर नजर आ रहा है जिसकी कल्पना आदमी की रूह कांप जाती है। त्रासदी के दो हफ्ते बाद भी लांशें नहीं उठ पाईं। एक-दो या दस-बीस लाशें हों तो काई भी उठा ले। लेकिन जब चारों तरफ लांशें हों तो कोई कितनी लाशें उठायेगा। और अगर उठायेगा भी तो उन लाशों को कैसे ठिनाने लगाया जा सकेगा? हालात यह हैं कि त्रासदी के दो हफ्ते बाद भी तबाह रामबाड़ा जैसे क्षेत्रों में कोई जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया था। कई दिनों बाद पुलिस ने केदारनाथ धाम में मलवे के ऊपर या ध्वस्त मकानों के अन्दर पड़े शव निकाल कर उनका सामूहिक दाह संस्कार किया। लेकिन जो अधिकांश तीर्थ यात्री और पण्डे-पुजारी मलवे के नीचे दबे हैं उन्हें बुल्डोजर की मदद से ही निकाला जा सकता है और फिलहाल वहां बुल्डोजर पहुंचने की सम्भावना नहीं है। दाह संस्कार के लिये लकड़ियां ढोने वाले वायु सेना के एमआइ-17 की दुर्घटना के बाद केदारनाथ में हैलीकाप्टर से बुल्डोजर या जेसीबी मशीन ड्राप करने में असमंजस की स्थिति है। राज्य के 1640 पटवारी, 152 कानूनगो, 95 नायब तहसीलदार, 79 तहसीलदार भी अपने-अपने क्षेत्रों में राहत एवं बचाव कार्यों में लगे हैं।
करोड़ों हिन्दुओं की आस्था के केन्द्र और भगवान शिव के बारह ज्योर्तिलिंगों में से एक केदारनाथ धाम पर इस विनाशकारी मानसून ने सबसे अधिक कहर ढाया है। भगवान शिव के इस धाम पर प्रकृति ने ऐसा ताण्डव किया कि वहां मदिर के अलावा कुछ भी सलामत नहीं हैं। यात्रियों की भीड़ के चलते वहीं सबसे अधिक जानें भी गयीं हैं। वहां चारों ओर ढही इमारतें, मलबा और लाशें बिखरी थीं। मंदिर चारों ओर से मलबे से घिरा है। मंदिर परिसर में गर्भगृह को भी नुकसान पहुंचा है, जबकि शंकराचार्य समाधि स्थल मलबे में दब चुका है। वहां बिजली, पानी व संचार व्यवस्था 16 जून से ही पूरी तरह से चौपट है।
रामबाड़ा का नामोनिशां मिटा
गौरीकुंड-केदारनाथ पैदल मार्ग पर गौरीकुंड से सात किलोमीटर दूर रामबाड़ा कभी एक जीवन से भरपूर खुशहाल कस्बा था जिसका का वजूद समाप्त हो गया है। लगभग डेढ सौ दुकानों वाले रामबाड़ा बाजार में यात्रा काल में सेकड़ों लोग हमेशा मौजूद रहते थे। त्रासदी में यहां कितने लोग हताहत हुए हैं, इसका पता नहीं चल पाया। क्यांेकि आपदा के 16 दिन बाद भी वहां कोई सरकारी अमला नहीं पहुंच पाया था। वहां जाने के सारे रास्ते ध्वस्त हैं। रामबाड़ा में पुलिस पिकेट और पीएसी की टुकड़ी का भी अता-पता नहीं है। यात्रा मार्गों पर कई जगह सड़कें ध्वस्त होने से कई स्थानों पर पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र समेत विभिन्न राज्यों के हजारों की तादाद में यात्री फंसे रहे।
आपदाग्रस्त क्षेत्र में टेलीफोन भी मरे
हर बार की तरह आपदा आते ही बीसएनएल संचार सेवा इस बार भी ध्वस्त हो गयी थी। एक तो कुदरत का कहर और उस पर संचार सेवाएं ठप। ऐसे में आपदा में फंसे लोग न तो अपने नाते-रिश्तेदारों तक कुशलक्षेम पहुंचा पाये और न नाते-रिश्तेदार ही उन

से संपर्क कर पाये। संचार सेवा के ठप्प होने के कारण केदारनाथ की भयावह तबाही का तीन दिनों तक पता नहीं चल सका। जिन जीवित यात्रियों के पास बीएसएनएल के अलावा दूसरी कम्पनियों के मोबाइल भी थे उन्हें रिचार्ज करने के लिये बिजली तो रही दूर जिली का स्विच तक नहीं था। आपदा से सर्वाधिक प्रभावित रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, चमोली व टिहरी जनपदों में चारधाम यात्र मार्गों पर संचार सेवाएं भी 16 जून को ही छिन्न-भिन्न हो गई थीं जो कई दिन बाद भी बहाल नहीं हो पाई हैं। ऐसी स्थिति में बचाव और राहत कार्य भी कैसे हो सकता था। बावजूद इसके संचार सेवाओं को दुरुस्त कराने की ओर न संचार कपंनियां ध्यान दे रहीं और न सरकार ही इसे गंभीरता से ले रही है।
तबाही के 36 घंटे बाद शुरू हुआ बचाव अभियान
उत्तराखंड में 16 जून रविवार रात कई जगह बादल फटने से हुई तबाही के करीब 36घंटे बाद मंगलवार सुबह मौसम साफ होने पर बचाव व राहत कार्य शुरू हो सका। रेस्क्यू में वायु सेना ने अपने 40 से अधिक आधुनिक हैलीकाप्टर झोंक दिये थे। इसी प्रकार थल सेना ने अपने 10 हजार सैनिकों को आपदा के मोर्चे पर झौंकने के साथ ही अपने हैलीकाप्टर भी बचाव कार्य में लगाये। इसी तरह आई.टी.बी.पी के जवानों ने सीधे भी और आपदा प्रबन्धन बटालियन (एनडीआरएफ) की ओर से भी आपदा में मोर्चा सम्भाला। स्वयं थल सेनाध्यक्ष जनरल विक्रमसिंह और वायु सेनाध्यक्ष एनएके ब्राउन ने आपदा के मार्चे पर पहंुच कर अपने साथियों का हौसला बढ़ाया जबकि मध्य कमान के सेनापति (जीओसी इन सी) ले.जनरल अनिल चैत और उनके सहयोगी जनरल बावा स्वयं भी संकट में फंसे यात्रियों को निकालते रहे। इस संकट की घड़ी में भारत की सेना ने एक बार फिर साबित किया कि उसके मजबूत हाथों और फौलादी हौसले के भरोसे यह देश हर संकट में सुरक्षित है। इस आपदा में सेनिक देवदूत बन कर संकट में फंसे लोगों के बीच आसमान से कूद कर पहुंचे।
ऊखीमठ के 67 गांवों के 482 लोग लापता
केदारघाटी में आई अकल्पनीय आपदा की मार ऊखीमठ ब्लाक के लोगों पर सर्वाधिक पड़ी है। हालांकि अभी तक त्रासदी में काल के ग्रास बने लोगों की संख्या का आंकलन नहीं हो पाया है, लेकिन प्रशासन के अनुसार ब्लाक के विभिन्न गांवों से 482 लोग लापता चल रहे हैं। हर वर्ष केदारनाथ यात्रा शुरू होने पर ऊखीमठ ब्लाक के फाटा, गुप्तकाशी, लमगौंडी, पठालीधार, कालीमठ, ऊखीमठ, दैड़ा, परकंडी आदि न्याय पंचायतों के लगभग 70 गांवों से स्थानीय लोग रोजगार के लिए गौरीकुंड, केदारनाथ जाते हैं। ये लोग यहां ढाबे, घोड़े-खच्चर और अन्य व्यवसाय करते थे। इस वर्ष भी हजारों की संख्या में स्थानीय लोग केदारनाथ यात्रा शुरू होने पर रोजगार के लिए गौरीकुंड, रामबाड़ा, जंगल चट्टी, धिनुरपाणी, भीमबली और केदारनाथ गए थे। जून में विद्यालयों में अवकाश होने के कारण स्कूली बच्चेे भी परिजनों का हाथ बटाने के लिए जाते हैं, लेकिन 16-17 जून को केदार धाम में हुए हादसे ने परिजनों के साथ-साथ मासूम बच्चों को भी काल का ग्रास बना दिया। जिससे क्षेत्र में मातम छाया हुआ है।
बड़ासू की एक पूरी पीढ़ी जमींदाज
मयाली-गुप्तकाशी मार्ग पर सड़क से लगे लगभग 2000 की आबादी वाले बड़ासू गांव की एक पूरी पीढ़ी समाप्त हो गयी है। गांव से रोजगार के सिलसिले में केदारनाथ गए 23 लड़कों समेत 24 लोगों को आपदा ने उनसे हमेशा के लिए छीन लिया। इनमें सात परिवार ऐसे हैं, जिनके घर के चिराग तक बुझ गए। अब चिंता इस बात की है कि जिन्होंने साथ छोड़ा, उनके शवों को अंतिम दर्शनों के लिए कैसे लाया जाए। आपदा से पहले तक इस गांव के बाजार में खासी रौनक रहा करती थी, लेकिन आज चारों ओर शमशान सी वीरानी है। ये सब लापता थे लेकिन हेलीकॉप्टर से गांव के कुछ लोग अपनों की खोज में केदारनाथ पहुंचे तो अलग-अलग स्थानों पर गांव के इन 24 लोगों के शव नजर आए। इस गांव के सात परिवार ऐसे हैं, जिनके घरों के चिराग कपूरी तरह बुझ गये।
आजीविका के लिये किशोर भी मारे गये
केदारघाटी में मची तबाही से दर्जनों गांवों के परिवारों के लड़के किशोरवय में ही काल के मुंह में चले गये। सारी निवासी 12वर्षीय हरीश पांच बहनों में सबसे छोटा था और उनके पिता दलेब सिंह का एक साल पहले देहान्त हो गया था। हरीश के केदारधाम में आपदा की चपेट में आने से घर का इकलौता चिराग बुझ गया है। 16 वर्षीय पैंज निवासी राहुल सिंह के भी काल के ग्रास में समाने से घर का दीपक बुझ गया है। 17वर्षीय कौशल सिंह के भी अकाल मौत होने से घर वालों के रो-रोकर बुरा हाल हैं। किमाणा निवासी 13 वर्षीय नवीन कुमार घर का चिराग था। नवीन के केदारघाटी में आई आपदा की चपेट में आने से घर से मातम पसरा हुआ है। 21 वर्षीय अनूप कुमार, 17 वर्षीय अजय कुमार, विपिन चन्द्र और हिमांशु भी हमेशा के लिए परिजनों से बिछुड गये। गौंडार निवासी 35 वर्षीय गजपाल सिंह पंवार व उनके बेटे 15 वर्षीय सतीश पंवार भी लापता लोगों में शामिल हो गया।
आजीविका का केन्द्र भी था केदारनाथ
केदारनाथ धाम महज आस्था का केंद्र नहीं था। यह केदार घाटी, बल्कि यूं समझ लीजिए कि पूरे रुद्रप्रयाग सहित आसपास के जिलों की आर्थिकी का स्त्रोत भी था। खासकर केदार घाटी के उन 172 गांवों के लिए तो बाबा केदार ही सब-कुछ हैं, जो जलप्रलय में बरबाद हो गए अथवा थोड़ा-बहुत बचे हैं। शीतकालीन प्रवास के बाद जब केदारनाथ धाम के कपाट खुलते हैं तो हजारों चेहरों पर आजीविका की आस में रौनक लौटने लगती है। किशोवय लड़कों से लेकर 60 साल के उम्रदराज मर्द तक आजीविका के लिये केदारघाटी के पड़ावों में पहुंच जाते हैं। कोई यात्रियों को केदारनाथ धाम तक पहुंचाने के लिए खच्चरों का जिम्मा संभालता तो कोई पूजा-पाठ की सामग्री बेचने में लग जाता है। जिनके कंधे मजबूत हैं, वे डांडी (पालकी) संभालते हैं। पहाड़ की खेती से तो कुछ महीनों का राशन भी नहीं निकल पाता, लेकिन यात्रा की बदौलत अगले छह महीने के लिए आजीविका का इन्तजाम हो जाता था। अब तो इस तबाही में कुछ नहीं बचा। इस जल प्रलय के बाद सड़कों का नामोनिशान तक मिट गया। रामबाड़ा तो रहा नहीं लेकिन गौरीकुंड, सोनप्रयाग, सीतापुर, रामपुर, सेरसी, फाटा जैसे कस्बों के सैकड़ों होटल और दुकानें या तो बह गयीं या क्षतिग्रस्त हो गयी हैं। चारों ओर मलबा और सड़ान्ध ही सड़ान्ध है।
एसएसबी अकादमी में मची तबाही
17 जून को आई बाढ़ में श्रीनगर गढ़वाल स्थित सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) अकादमी तथा अन्य तटवर्ती क्षेत्रों में भारी तबाही मची। एसएसबी अकादमी के निदेशक एस बंदोपाध्याय के अनुसार अकादमी में लगभग 75 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है। करोड़ों की लागत से अकादमी का प्रशासनिक ब्लाक हाल ही में बन कर तैयार हुआ था। श्रीनगर शहर की ओर लम्बे अर्से बाद अलकनन्दा का पानी इस तरह लपका।
चमोली में भी कई मरे
चमोली जिले में आपदा से मरने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। आपदा से नौ ग्रामीणों सहित तीन यात्रियों की मौत हुई है। इसी के साथ मरने वालों की संख्या 13 हो गई है। उर्गम के ग्रामीण कीड़ाजड़ी संग्रह के लिए मनपई बुग्याल गए थे। केदारनाथ जल प्रलय के कई दिनों के बाद भी चमोली जिले के कई युवा लापता है। गौरीकुंड से जान किसी तरह जान बचाकर लौटे घाट क्षेत्र के मदन ने बताया कि वह और उसके छह साथी गौरीकुंड से केदारनाथ तक खच्चरों का संचालन करते थे। 17 जून की सुबह मौसम खराब होते देख वह एक गुफा में बैठ गए, लेकिन अचानक केदारनाथ की ओर से आए सैलाब से मैं तो पहाड़ी से लगकर बच गया, पर उसके छह साथियों का पता नहीं है कि वे कहां गए। पोखरी क्षेत्र के 20 युवा अभी भी लापता हैं। जिले के दशोली, निजमुला, लुहां, बछेर, सोनला, देवलधार, बैरासकुंड आदि क्षेत्रों के कई युवा गौरीकुंड, रामबाड़ा और केदारनाथ से लापता चल रहे हैं। जिले में निजमुला के 3, पोखरी के 20, घाट के 12 और दशोली के 5युवा अभी भी लापता हैं।
पिंडर घाटी भी संकटग्रस्त
दैवीय आपद के कारण बुरी तरह तबाह हुई पिंडर घाटी के हालात बेकाबू होते जा रहे हैं। पिंडर घाटी में सड़क नेटवर्क समाप्त होने और झूला पुलों के पिंडर की आगोश में समा जाने से क्षेत्र में अकाल के हालात पैदा होने लगे हैं। इससे यहां के लोगों का जीवन मुश्किलों में घिर गया है। घाटी के नारायणबगड़ और थराली ब्लाक मुख्यालयों के तहस-नहस हो जाने और पिंडर की चपेट में आने के कारण तमाम सड़क और पैदल पुलों के बाढ़ की भेंट चढ़ जाने के कारण हालात बेकाबू होते जा रहे हैं। ज्यादातर पैदल मार्गों के भी ध्वस्त होने से स्थिति चिंताजनक है। पिंडर घाटी के नलगांव में सड़क के क्षतिग्रस्त होने से आवाजाही मुश्किलों में घिर गई है। नारायणबगड़ विकासखंड के अंतरवर्ती मार्ग खुल तो गए हैं लेकिन नारायणबगड़ से कुलसारी के बीच जगह-जगह सड़क ध्वस्त होने से मींग गधेरा, हरमनी, मलतूरा और कुलसारी के समीपवर्ती दर्जनों गांवों में खाद्यान्न का संकट पैदा हो गई है। लोग अब दाने-दाने को मोहताज होने लगे हैं। हरमनी से पैनगढ़ जाने वाले पुल के ढहने से सिलोड़ी, पैनगढ़, कोठा, चिडंगा आदि गांवों का संपर्क समाप्त होने से जरूरी चीजों की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। इसी तरह कुलसारी से आगे थराली में भी यह संकट विकराल रूप लेने लगा है। सोल पट्टी के दर्जनों गांव खाद्यान्न संकट के बुरे दौर से गुजरने लगे हैं। तहसील मुख्यालय थराली में भी अब जरूरी चीजों का अकाल गहराने से लोगों की मुश्किलें ही मुश्किलें बढ़ गई हैं।
आपदा के दो सप्ताह बाद भी थराली तहसील के सोलपट्टी के 16 गांवों में आपदा राहत सामग्री तो दूर, यहां ग्रामीणों की सुध लेने के लिए भी कोई अधिकारी-कर्मचारी नहीं पहुंचा था। क्षेत्र को जोड़ने वाला एकमात्र थराली-घाट मोटर मार्ग शुरूआत से ही अवरुद्ध है। सोलपट्टी के केराबगड़, मेन, रतगांव, बूंगा, बुरसोल, गुमड़, कुनी, पार्था, रुईसांण, हरिनगर लिटाल, कुराड़, डुगरी, रुईसाण, कलचुना, रतगांव आदि गांवों में खाद्यान्न सहित अन्य जरूरी वस्तुओं का भारी संकट बना हुआ है।
बचाने वालों ने भी गंवाई जानें
उत्तराखंड त्रासदी में जब सड़क संपर्क पूरी तरह टूट गया और हजारों लोग उफनती नदियों के किनारे या ऊंचे पहाड़ों पर फंस गए, तब उनके लिए हेलीकॉप्टर ही देवदूत बन कर उन तक पहुंचे। इस त्रासदी में थल और वायुसेना ने कई किस्म के हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल किया जो इस पहाड़ी क्षेत्र में अफरातफरी में बनाए गए अस्थायी और खतरनाक हेलीपैडों पर उतरने के लिए मजबूर थे। उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदा के बाद राहत कार्य में जुटा वायुसेना का एमआइ 17- वी 5 हेलीकॉप्टर के दुर्घटनाग्रस्त होने से देश ने वायु सेना, आइटीबीपी और एनडीआरएफ के 20 जांबाज सैनिक गंवा दिये। यह हेलीकॉप्टर राहत सामग्री और अंतिम संस्कार का सामान लेकर गौचर से केदारनाथ के लिए उड़ा था। केदारनाथ से वापसी के दौरान यह गौरीकुंड के तोशी गांव के नजदीक दुर्घटनाग्रस्त हो गया। उनके अलावा उत्तराखण्ड के दर्जनों पुलिसकर्मियों का अब तक पता नहीं चल पाया। राहत अभियान के सिलसिले में यह चौथा हेलीकॉप्टर था जो हादसे का शिकार बना। उत्तराखंड सरकार ने शहीद जवानों के सम्मान में एक दिन का राजकीय शोक घोषित करने के साथ ही इन बहादुरों के वारिशों को 10-10 लाख की राशि देने की घोषाणा की है। यह एमआइ 17 वी 5 हेलीकॉप्टर पहाड़ों में फंसे लोगों को निकालने के लिए आठ दिनों से राहत कार्य में जुटा था। शहीद वायुसेना कर्मियों में विंग कमांडर डेरेल केस्टेलीनो, फ्लाइट लेफ्टिनेंट प्रवीण, फ्लाइट लेफ्टिनेंट पी कपूर, जूनियर वारंट ऑफीसर एके सिंह एवं सार्जेट सुधाकर शामिल थे। सोवियत यूनियन द्वारा निर्मित एमआइ-17 मूल रूप से एक मालवाहक हेलीकॅाप्टर है। इसने 1975 में पहली उड़ान भरी। 1977 में यह एमआइ-8 एमटी के नाम से रूस की सेना में शामिल हुआ। अन्य देशों में इसे एमआइ-17 के नाम से जाना जाता है। एमआइ-17 दुनिया के कई देशों में बड़े ऑपरेशनों का हिस्सा रहा है। श्रीलंका और लीबिया से लेकर मलेशिया में यह अपनी क्षमता का लोहा मनवा चुका है। भारत में 1999 में कारगिल में इस हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल किया गया था।
मृतकों को लेकर केवल बयानबाजी
ज्यादातर लाशों के बह जाने और मलबे में दब जाने के कारण सरकारी मशीनरी को लगभग 900 से अधिक लाशें नहीं दिखाई दे रही हैं। वहीं विधानसभाध्यक्ष ने मृतकों की संख्या 10 हजार से अधिक बता कर खलबजी मचा दी। स्वयं आपदा प्रबन्धन मंत्री यशपाल आर्य और बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष गणेश गोदियाल को लगभग 5 हजार लोगों के मरने का अन्देशा है। कुल मिला कर मृतकों को लेकर कयासबाजी ही चल रही है। इस हाल में मृतकों की सही संख्या का आंकड़ा भी लाखों टन मलबे में दब गया या मन्दाकिनी में बह गया। लेकिन मुख्य मंत्री ने लगभग 3 हजार 68 लोगों के लापता होने की पुष्टि की है। मुख्यमंत्री का कहना है कि जब तक लाशें गिनी नहीं जाती तब तक कानूनन मृतकों की सख्या नहीं बतायी जा सकती। जबकि संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में 11 हजार 700 लोगों के गुम होने की बात कही गयी है। रुद्रप्रयाग जिले के केदारघाटी क्षेत्र के अस्सी से अधिक गांव के करीब दो हजार लोग त्रासदी के बाद से लापता हैं। केबल केदारनाथ, रामबाड़ा, गौरीकुण्ड से लापता हुए स्थानीय लोगों का आंकड़ा दो हजार से अधिक है। अब तक त्रिजुगीनाराण, लमगौड़ी, ल्वारा, डुंगर, सेमला से ही पांच सौ से अधिक लोग लापता बताये जा रहे हैं। इसके अलावा ऊखीमठ व अगस्त्यमुनि ब्लाक के साथ ही चमोली, टिहरी, पौड़ी जिले से भी कई लोग यहां व्यापार करते आते हैं। जिले के सत्तर से अधिक गांव में लापता लोगों की संख्या दो हजार से अधिक बताई जा रही है। उस दिन केदारनाथ के दर्शन करने पहुंचे यात्रियों लगभग दस हजार बतायी जा रही है।
अपनों का अन्तहीन इंतजार
इस जल प्रलय के तत्काल बाद अपने परिजनों को ढूंढने देहरादून, हरिद्वार, ऋषिकेश, गोपेश्वर, गुप्तकाशी व हर्षिल तक पहुंचे रिश्तेदार अपने परिजनों की तलाश में दर-दर भटक रहे, लेकिन सरकार की सूची में लापता लोगों की तलाश में अस्पातालों, बस अड्डों और धर्मशालाओं के चक्कर काटते रहे। कुछ को तो अपने परिजन मिल गये मगर अधिकांश लोग निराश ही लौट गये। 3068 लोगों के लापता होने की बात भी सब जुबानी जमा खर्च ही है। मुख्यमंत्री का कहना है कि राज्य सरकार को केवल इतनी ही गुमशुदगी की शिकायतें मिलीं हैं। अब सरकार ने मुआवजा देने के लिये एक महीने तक लापता रहने वालों को मृतकों की सूची में शामिल करने की घोषणा की है। पूरे 30 दिन के अन्तराल के बाद दूसरे प्रदेशों के लापता यात्रियों को उनकी सरकारों द्वारा सत्यापित किये जाने के बाद ही मुआवजा दिया जायेगा।
पहाड़ के लोगों ने पेश की मिसाल
केदारघाटी के 40 परिवारों वाले गौरी गांव ने विपदा की घड़ी में जो मिसाल कायम की वह सारी दुनियां के लिये अनुकरणीय है। ग्रामीणों ने खुद कठिनाइयां झेलते हुए गांव में न केवल करीब पांच हजार यात्रियों को शरण दी, बल्कि भूखे-प्यासे रहकर जो बन पाया, उन्हें खिलाया भी। इस दरियादिली के कारण गांव वालों के घरों में जितना राशन था, वह अब खत्म हो गया। आजीविका का केन्द्र गौरीकुंड कस्बा तबाह हो चुका है और दूसरे स्थानों को जाने के रास्ते बंद हैं। ऐसे में अब उनके सामने दो-जून की रोटी का संकट खड़ा हो गया है। गत 16-17 जून को केदारघाटी में जल प्रलय के बाद गौरीकुंड में फंसे पांच हजार से ज्यादा यात्रियों ने गौरी गांव में शरण ली। ग्रामीणों ने विपदा की इस घड़ी में उन्हें सिर आंखों पर बैठाया। खुद एक कमरे में रहे तो बाकी यात्रियों के लिए घर खोल दिए। कुछ घर तो ऐसे भी थे जहां दो-तीन दिन में ही राशन खत्म हो गया। जोशीमठ और बद्रीनाथ के बीच स्थित भगवान बद्रीनाथ के शीतकालीन पूजास्थल पाण्डुकेश्वर के लगभग 20 परिवारों ने स्वयं भुखमरी को दावत देकर वहां फंसे लगभग 2000 तीर्थ यात्रियों को अपने मुंह के निवाले से कई दिनों तक पाले रखा।
नेपालियों और ढोंगी साधुओं ने लूटा मरे हुये लोगों को
इस संकट की घड़ी में जहां उत्तराखण्ड वासियों ने इंसानियत की मिसालें पेश कीं वहीं इंसानियत को शर्मसार करने वाले कथित साधुओं ने भारी तबाही के बीच जनता के विश्वास को भी ठगा। इसी तरह नेपालियों ने जिन्दा तो जिन्दा, मगर मुर्दा तीर्थ यात्रियों को भी लूटा। केदारनाथ धाम में 17 जून की सुबह हुई भयंकर तबाही के बाद स्टेट बैंक भी तहस नहस हो गया था। लोग बदहवास इधर उधर भाग रहे थे और साधु के वेश में छिपे एक दर्जन बहुरूपिए लूट और चोरी की फिराक में भटक रहे थे। बीते 20जून को केदारनाथ में एक साधु के पास बड़ा भारी बैग देखकर शक हुआ तो उसकी तलाशी लेने पर उसके बैग में नोटों के बंडल निकले। इन साधुओं की जटाओं और पगड़ी के अंदर से लगभग 20 लाख रुपये बरामद हुए। कुल 83 लाख रुपये इन साधुओं से बरामद हुए थे। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार कुछ नेपालियों ने मुर्दों की उंगलियां काट कर अंगूठियां निकाली। कुछ ने चाकू की नोक पर यात्रियों को लूट और दुष्कर्म का प्रयास तक किया। इस घटना के बाद उत्तराखण्ड की लगभग सभी नदी घाटियों में फैले नेपालियों से जनजीवन को खतरे के संकेत मिल गये हैं।
सड़क संचार ध्वस्त
आपदा ने उत्तराखंड की सड़कों का जाल ध्वस्त कर दिया है। मुख्य मार्गों पर ही कम से कम 110 स्थानों पर भूस्खलन और जमीन धंसने से सड़कें क्षतिग्रस्त हो गयी हैं। कुल मिला कर लगभग 13 किमी लम्बी सड़कें बह गयीं, धंस गयीं या मलबे में दब गयीं। कुल मिला कर लगभग 1400 ग्रामीण सड़कों के क्षतिग्रस्त होने से समूचे पहाड़ के गांव एक दूसरे से कटे हुये हैं। अभी तो बरसात शुरू ही हुयी है। अगो क्या होगा, यह सवाल लोगों को सता रहा है। पहाड़ों से लगातार मलबा सड़क पर गिर रहा है। ऐसे में सड़क मार्ग से पीड़ितों की मदद करने जाने वाले लोगों से समेत सरकार की विभिन्न एजेंसियों को भारी परेशानी से गुजरना पड़ रहा है। ऋषिकेश से बदरीनाथ तक राष्ट्रीय राजमार्ग कई जगहों पर टूट हुआ है और उन स्थानों पर बार-बार यातायात अवरुद्ध हो जाता है। केदार घाटी में तो स्थिति अकल्पनीय है। अनुमान लगाया जा सकता है कि वहां आपदा के दो सप्ताह बाद तक सरकारी अमला नहीं पहुंच पाया था। वहां हैलीकप्टर से भी नहीं पहंचा जा सकता। सड़क सम्पर्क ध्वस्त होने से प्रभावित गावों तक राहत सामग्री सही ढंग से नहीं पहुंच पा रही है। इस स्थिति में आपदाकर्मी पटवारियों द्वारा कई गावों के लोगों को एक ही स्थान पर बुलाया जा रहा है।
आपदा प्रभावित रूद्रप्रयाग जिले के अधिकांश गावों के घरों में राशन खत्म हो चुका है और गांवों को जोड़ने वाले रास्ते बंद हैं। बाहरी क्षेत्रों से बड़ी संख्या में राहत सामग्री तो आ रही, लेकिन सड़कें बंद होने से यह पीड़ितों तक आगे नहीं पहुंच पा रही है। इनमें सेकड़ों ऐसे गांव हैं, जहां के पैदल मार्ग भी ध्वस्त हैं। इससे इन क्षेत्रों में राशन समेत आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई पूरी तरह से ठप पड़ी है। ऐसे क्षेत्र में स्थित कस्बों में दुकानें भी बंद हो गई हैं। आपदा से जिले का ऊखीमठ ब्लाक पूरी तरह प्रभावित हुआ है। साथ ही अगस्त्यमुनि ब्लाक का साठ फीसदी क्षेत्र प्रभावित है। कालीमठ घाटी के दो दर्जन ग्राम पंचायतों में तो पैदल भी आवाजाही संभव नहीं हो पा रही है। घोड़े-खच्चरों से भी वहां राशन पहुंचना संभव नहीं है।
राहत न मिलने से विधायक भी आहत
जनता के गुस्से से खौफजदा विधायक सरकारी मशीनरी में खामियों से खफा हैं। आपदा प्रभावितों का विरोध झेल चुके कांग्रेस के बदरीनाथ विधायक राजेंद्र भंडारी, केदारनाथ विधायक शैलारानी रावत के बाद बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति अध्यक्ष और श्रीनगर विधायक गणेश गोदियाल खासे खफा हैं। 1 जुलाइ को देहरादून सचिवालय में मंत्रिमण्डल की बैठक के स्थान के बाहर नाराज शैला रानी रावत ने न केवल धरना दिया बल्कि इस्तीफे की धमकी तक दे डाली। प्रभावितों में रोष कम नहीं होने पर पार्टी के भीतर भी असंतोष बढ़ रहा है। सरकारी मशीनरी अभी सिर्फ यात्रियों को ही पूरी तरह सुरक्षित स्थानों पर नहीं पहुंचा सकी है। गढ़वाल के सांसद सतपाल महाराज के नेतृत्व में गढ़वाल के विधायकों ने मुख्यमंत्री के बजाय राज्यपाल से भेंट कर अपना दुख प्रकट कर दिया है। आपदा के प्रकोप का दंश सबसे ज्यादा झेलने वाले रुद्रप्रयाग जिले की केदार घाटी में फंसे पड़े यात्रियों के साथ स्थानीय लोग भी जनप्रतिनिधियों को आड़े हाथों ले चुके हैं। स्वयं मुख्यमंत्री आपदा पीड़ित लोगों का गुस्सा जोशीमठ और उत्तरकाशी में झेल चुके हैं।
पिथौरागढ़ में भी तबाही
कुमाऊं के पिथौरागढ़ के छिपला केदार में बादल फटने से आए मलबे में दबकर कम से कम दस लोगों की मौत हो गई। मृतकों में एक ही परिवार के पांच सदस्य हैं। उधर अल्मोड़ा के सोमेश्वर में मकान गिरने से एक बच्चे की मलबे में दबकर मौत हो गई, जबकि कोसी नदी में बहने से एक सेल्समैन की मौत हो गई। नैनीताल के ओखलकांडा ब्लाक में गौला में बहने से एक डाकिए की मौत हो गई, जबकि उसका साथी लापता है। पिथौरागढ़ के छिपला केदार में मंगलवार दोपहर बादल फटने से कई गांवों में मलबा घुस गया। मलबे में दबकर भीमराम व उसके परिवार के पांच सदस्यों, लक्ष्मण व उसकी पत्नी चंपा, केदार व उसकी पत्नी मंजू तथा एक श्रमिक की मौत हो गई। सभी के शव बरामद कर लिए गए हैं।धारचूला क्षेत्र में दारमा, ब्यास, चौंदास और मुनस्यारी के मल्ला जोहार क्षेत्र के 14 गांवों में खाद्यान्न संकट गहराने लगा है। यहां आयी प्राकृतिक आपदा से उबरने में लोगों को वर्षाे लग जायेंगे। हालांकि आईटीबीपी ने मल्ला जोहार क्षेत्र में खराब रास्तों को खोल दिया है। आसमान के गरजते ही वहां लोगों की रूह कांप जाती है।
सेकड़ों गांवों तक नहीं पहुंची राहत
खराब मौसम और ग्रामीण सड़कों के क्षतिग्रस्त हो जाने के कारण अभी सेकड़ों आपदाग्रस्त गांव अब भी सरकार की राहत सामग्री का इन्तजार कर रहे हैं। केन्द्रीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री जयराम रमेश ने सोमवार को स्वीकार किया कि प्रदेश के लगभग 1400 गांव संपर्क मार्ग से कटे हुए हैं। हाल यह है कि बदरीनाथ रूट पर ही लामबगड़ के सामने का गांव पटोड़ी राहत का इंतजार कर रहा है। इसी तरह अगासी, बिनौला में भी राहत नहीं पहुंच पाई है। वहीं चमोली जिले के ही खीरों गांव भी पूरी तरह से कटा हुआ है। इसी तरह नीति घाटी में गमसाली, बंपा, नीति, दोनागिरी जैसे गांव सड़क टूटने के कारण दाने-दाने को मोहताज हो रहे हैं। सीमान्त नीती घाटी में धौली गंगा में बाढ़ के कारण इन गावों का सम्पर्क शेष दुनियां से कट हुआ है। चमोली जिले की उर्गम घाटी में ही देवग्राम, भरकी, कपिनखी, अरूसी, मरला जैसे गांव के हालात अभी तक पूरी तरह से सामने नहीं आ पाए हैं। यही हाल मंदाकिनी में आए उफान के कारण संपर्क से कटे हुए गांवों का है।
आदमखोरों का भी खतरा
जहां -तहां लाशें बिखरी होने के कारण उन पर कुत्ते, चील और कौवे ही नहीं बल्कि उन्हें गुलदार भी नोच रहे हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि बाघों को आसान शिकार मिलने के बाद उनके मुंह मानव गोस्त और रक्त का स्वाद चढ़ सकता है। वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि इंसानों का मांस खाने के बाद केदारनाथ वन्यजीव विहार के बहुत से बाघ या गुलदार आदमखोर बन कर आस-पास के ग्रामीणों पर हमले करना शुरू कर सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो इस क्षेत्र में एक नई समस्या खड़ी हो जाएगी। कस्तूरी मृगों के संरक्षण के लिए स्थापित केदारनाथ वन्यजीव विहार पश्चिमी हिमालय में 975 वर्ग किमी में फैला सबसे बड़ा अभ्यारण्य है। गौरीकुंड से केदारनाथ मंदिर का 14 किलोमीटर का ट्रैक इसी वन्यजीव विहार में स्थित है। इसी अभयारण्य के कारण केदारनाथ तक मोटर मार्ग नहीं बन पाया। चमोली और रुद्रप्रयाग जिलों में फैले इस वन्यजीव विहार में ग्लेशियरों के कारण उत्तर से दक्षिण की दिशा में वी आकार की नदी घाटियां हैं। इसमें सियार, हिमालयी काला भालू, तेंदुए, हिम तेंदुए, लोमड़ी, जंगली सूअर जैसे वन्यजीव मौजूद हैं। 21 जनवरी 1972 को इसे वन्यजीव विहार घोषित किया गया था। देहरादून स्थित भारतीय वन्यजीव संस्थान के विशेषज्ञ डॉ.यादवेंद्र देव झाला और के. शंकर भी मानते हैं कि अगर शवों को निकाला नहीं गया तो उन्हें जंगली जानवरों द्वारा खाये जाने की आशंका है। उनका कहना है कि अभी यह देखना भी शेष है कि इन आपदा से कहीं इन परभक्षी जानवरों के प्रिय शिकारों की संख्या में कमी तो नहीं आई। अगर ऐसा हुआ तो भोजन की कमी से ये वन्यजीव पहले शवों को खा सकते हैं फिर बाद में गांवों का रुख भी कर सकते हैं।
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-जयसिंह रावत
पत्रकार
ई- 11फ्रेण्ड्स एन्क्लेव, शाहनगर,
डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून।
मोबाइल- 09412324999
June 2013