राष्ट्रीय

भारत में प्रशिक्षणरत् अफगानी सैन्य अधिकारियों का भविष्य अधर में

  –जयसिंह रावत

अफगानिस्तान पर तालिबान के बलात् कब्जे और वहां की सरकारी सेना के ध्वस्त हो जाने के बाद भारत में सैन्य प्रशिक्षण पा रहे डेढ सौ से अधिक अफगान अधिकारियों और जवानों का भविष्य अधर में लटक गया है। इनमें से सर्वाधिक युवा देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी से प्रशिक्षण ले रहे हैं। इस अकादमी से हर छह महीने में लगभग 40 अफगानी युवा अधिकारी पास आउट हो कर अपनी सेना का नेतृत्व करते हैं। चूंकि अमेरिका के साथ ही भारत भी एक सशक्त और अपने बलबूते पर हर चुनौती का मुकाबला करने में सक्षम अफगानी सेना को तैयार करने में जुटे हैं। लेकिन जब राजनीतिक नेतृत्व ही भगोड़ा हो गया हो तो फिर मजबूत से मजबूत सेना भी तास के पत्तों की तरह बिखर जाती है।

भारत से 18 देशों को मिलता है सैन्य नेतृत्व

अफगानिस्तान को एक विकसित और प्रगतिशील राष्ट्र बनाने के विभिन्न प्रयासों के साथ ही वहां की सेना को मजबूत और आत्मनिर्भर बनाने के उद्ेश्य से भारत अपने यहां भारतीय सैन्य अकादमी (आइएमए) देहरादून, ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकादमी (ओटीए) चेन्नई, नेशनल डिफेंस अकादमी, खड़कवासला (पुणे) आदि में प्रशिक्षण सुविधाएं उपलब्ध कराता है। अफगानिस्तान के अलावा भी भारत दशकों से भूटान, श्रीलंका, तजाकिस्तान, मालदीव, नेपाल एवं वियतनाम आदि 18 मित्र देशों की सेनाओं के युवा अधिकारियों को प्रशिक्षण सुविधाएं उपलब्ध कराता है। बेसिक मिलिट्री ट्रेनिंग के अलावा भारत अफगानिस्तान के सैन्य अधिकारियों को समय-समय पर विभिन्न स्थानों पर विशिष्ट सैन्य प्रशिक्षण भी कराता है ताकि उनका प्रोफेशनल स्तर ऊंचा उठ सके।

आइएमए देहरादून से मिलता है अफगान सेना को नेतृत्व

अफगानिस्तान समेत विभिन्न मित्र देशों के लिये सबसे बड़ी सैन्य प्रशिक्षण सुविधा देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी में उपलब्ध है। यहां देशी और विदेशी, सभी जैटलमैन कैडेट एक साथ प्रशिक्षण लेने के साथ ही एक साथ ही ग्रीष्म और शीतकालीन, दो दीक्षांत परेडों में पासआउट होेते हैं। यहां एनडीए से आने वाले कैडेटों के लिय एक साल और सीधे प्रवेश करने वालों के लिये 18 महीने का कठोर प्रशिक्षण दिया जाता है। यद्यपि आइएमए की सभी पासिंग आउट या दीक्षान्त परेडों का रिकार्ड फिलहाल उपलब्ध नहीं हो सका फिर भी अकादमी द्वारा जारी पिछली परेडों की कुछ विज्ञप्तियों के अनुसार दिसम्बर 2014 की शीतकालीन परेड में अफगानिस्तान के 44 जैंटलमैन कैडेट अकादमी से प्रशिक्षित हो कर पासआउट हुये। इसी प्रकार जून 2015 की ग्रीष्मकालीन परेड में भी 44, दिसम्बर 2018 में 49, दिसम्बर 2020 में 41 और जून 2021 की दीक्षान्त परेड में 43 युवा अफगानी अधिकारी अकादमी से पास आउट हुये। इस प्रकार देखा जाय तो इस अकादमी से हरेक 6 महीने में औसतन 40 युवा अफगानी सैन्य अधिकारी कठोर प्रशिक्षण प्राप्त कर पास आउट होते हैं। आइएमएम के अलावा भारत की इलीट सैन्य प्रशिक्षण अकादमी एनडीए खड़कवासला से भी अफगानी युवा सैन्य प्रशिक्षण के साथ ही ग्रेजुएशन प्राप्त करते हैं।

अपने परिवारों के लिये चिन्तित है अफगानी सैनिक

भारत में सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे इन युवा सैन्य अधिकारियों का भविष्य तो अधर में लटक ही गया, लेकिन अफगानिस्तान में उनके परिवारों की खैरियत को लेकर उनकी बेचैनी भी बढ़ा दी है। उनकी चिन्ता का सबसे बड़ा कारण तालिबान का अफगानिस्तान की सरकारी सेना के प्रति नफरत और उनका क्रूरतम व्यवहार है। अब इनका भविष्य भारत सरकार के अगले कदम पर निर्भर है। अगर उनका प्रशिक्षण जारी रखा जाता है तो प्रशिक्षण पूरा होने पर भी उनका भविष्य अधर में है।

 

अफगानियों का आतंकवादी विरोधी प्रशिक्षण भी भारत में

भारत ने अफगानिस्तान की सेना को सशक्त बनाने के लिये 4 एमआइ-25 सशस्त्र हेलीकाप्टर एवं 3 चीता हेलीकाप्टर सहित काफी आधुनिक सैन्य साजो सामान दिया है। विगत कई वर्षों से भारत अफगानिस्तान के सशस्त्र बलों को आतंकवाद विरोधी प्रशिक्षण भी देता रहा हैै। अफगानी युवा अधिकारियों को इन्फेंट्री स्कूल में ‘यंग आफिसर्स कोर्स और मीजोरम के वैरेंग्टे स्थित संस्थान में जंगल वारफेयर और आतंकवाद विरोधी प्रशिक्षण भी देता रहा है। ऐसे विशिष्ट संस्थानों में प्रति वर्ष लगभग 700 से लेकर 800 तक अफगानी सैन्यकर्मी प्रशिक्षण पाते रहे हैं। पिछले ही महीने अफगानिस्तान के सेना प्रमुख जनरल वली मोहम्मद अहमदजई का भारत के साथ और अधिक सैन्य सहयोग बढ़ाने के इरादे से भारत आने का कार्यक्रम था, लेकिन तालिबानियों के बढ़ते खतरे को देखते हुए उन्हें अपना दौरा स्थगित करना पड़ा।

अफगानिस्तान की सुरक्षा पर अमेरिका ने खर्चे 83 अरब डॉलर

भारत के साथ ही अमेरिका ने भी अफगानी सेना का मजबूत, आत्मनिर्भर और किसी भी चुनौती का सामना करने के लिये तैयार करने पर अरबों डालर खर्च कर रखे हैं। न्यूयार्क टाइम्स में 13 अगस्त को छपी थॉमस जिब्बन, फहीम अबेद और शैरिफ हसन की साझा रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका ने पिछले दो दशकों में अफगानिस्तान की सुरक्षा के लिये हथियारों, अत्याधुनिक उपकरणों और प्रशिक्षण पर 83 अरब डॉलर से अधिक राशि खर्च कर डाली। लेकिन वहां के राजनीतिक नेतृत्व की कमजोरी के कारण अफगानी सैनिकों ने तालिबानियों के आगे हथिययार डाल दिये जिस कारण अरबों डालर मूल्य के अत्याधुनिक हथियार भी तालिबान के हाथ लग गये। वहां लगभग 3 लाख की सरकारी सेना लड़ती भी तो किसके लिये? वहां सन् 2001 से लेकर अब तक 60 हजार से अधिक अफगानी सैनिक तालिबान से लड़ते हुये मारे गये। अफगानी राजनीतिक नेतृत्व की कमजोरी के कारण भारत के प्रयास भी बेकार गये।

भारत में अफगानी छात्रों का भविष्य भी अधर में

सैन्य प्रशिक्षुओं की भांति भारत में स्कॉलरशिप के आधार पर पढ़ रहे छात्रों के समक्ष भी गंभीर संकट उत्पन्न हो गया है। भारत में इस तरह के लगभग 2200 छात्र बताये जा रहे हैं। हालांकि उनकी देखभाल की जिम्मेदारी इंडियन कांउसिल फॉर कल्चरल रिलेसन्श की है, फिर भी उनके देश में मची भगदड़ के कारण उनका भी अपने परिजनों को लेकर चिन्तित होना स्वाभाविक ही है। इनमें से कई छात्रों की शिक्षा की अवधि पूर्ण होने वाली है। ऐसे छात्रों को वजीफा नहीं मिलना है। कई छात्रों की वीजा की अवधि भी पूरी होने वाली है। इसलिये वे भी भारत सरकार के अगले कदम पर निर्भर है। छात्रों के अलावा विभिन्न अन्य क्षेत्रों में आपसी सहयोग के अन्तर्गत कार्यरत् या प्रशिणरत् अफगानी विशेषज्ञों का भविष्य भी अधर में लटका हुआ है।

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