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सीबीआई ने खोली खटीमा और मसूरी गोली काण्डों की हकीकत

-जयसिंह रावत

उत्तराखण्ड की सत्ता का सुख भोगने वाले भले ही नब्बे के दशक के प्रचण्ड आन्दोलन और पुलिस दमन को भूल गये, मगर राज्यवासी शायद ही कभी उस पुलिस दमन को भूल पायेंगे। इलाहाबाद हाइकोर्ट ने भी एक लोकतांत्रिक आन्दोलन को दबाने के बर्बर तौर तरीके को ‘सरकारी आतंकवाद’ कहा था। यह सरकारी आतंकवाद ही था कि पुलिस ने खटीमा गोलीकाण्ड में मारे गये 4 आन्दोलनकारियों के शव ही गायब कर दिये थे और तीन शवों को गुपचुप तरीके से बहुत दूर जला दिया था। इसी प्रकार मसूरी में साजिशन

गोलीकाण्ड कराया गया था जिसमें पुलिस का डीएसपी अपनी ही फोर्स की गोली से घायल हुआ था और उस घायल को बचाने के बजाय अत्यंत आक्रेशित भीड़ के हवाले कर दिया गया था। थानेदार भी रातोंरात बदल दिया था। इन पंक्तियों के लेखक जयसिंह रावत ने मसूरी जाकर स्वयं गोलीकाण्ड की रिपोर्टिंग की थी। बाद में जब इलाहाबाद हाइकोर्ट के आदेश पर सीबीआइ जांच हुयी जो इन पंक्तियों के लेखक से सीबीआइ ने उनकी रिपोर्ट, फोटो कवरेज हासिल करने के साथ ही उनके बयान भी लिये थे।

इन गोलीकाण्डों पर इलाहाबाद हाइकोर्ट में दायर सीबीआइ की जांच रिपोर्ट के अंश ‘‘उत्तराखण्ड हिमालय’’ पोर्टल के पाठकों की जानकारी के लिये पेश किये जा रहे हैं।

खटीमा गोलीकाण्ड-मृतक एवं घायल

अधिकारिक अनुमान के अनुसार 1 सितम्बर 1994 को पूर्वाहन लगभग 11.10 बजे खटीमा पुलिस  स्टेशन के सामने 10 से 15 हजार के करीब भीड़ एकत्र होकर पुलिस और प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी करने लगी। इस विरोध प्रदर्शन का कारण यह बताया गया कि सप्ताह पहले पुलिस द्वारा घर-घर तलाशी अभियान चलाया गया और पुरुषों को उठा कर पूछताछ के लिये थाने पर लाया गया। यह विवरण 1994 की रिट पीटिशन संख्या 40216 मोहनचन्द बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एवं अन्य में दिया गया है। 1 सितम्बर का प्रदर्शन शायद लोगों को बड़ी संख्या में थाने ला कर अनापशनाप पूछताछ कर अनावश्यक रूप से लोगों को परेशान किये जाने का नतीजा था। सीबीआइ ने अपनी दूसरी जांच रिपोर्ट के पृष्ठ 14 पर कुछ इस तरह विवरण दिया है:–

  1. 26(S)/95/Lko. Dtd. 27-01-95 under Sections 147,148,149, 307, 332, 333, 336, 436, 427, 504, 323 and 324-IPC, Khatima, distt. Nainital.

‘‘मौखिक एवं दस्तावेजी प्रमाणों के अनुसार 1-09-1994 को 10 से लेकर 15 हजार के बीच लोगों ने एक शांतिपूर्ण जुलूस निकाला जिस पर पुलिस ने अकारण बिना किसी उत्तेजना के गोलीबारी कर दी जिसमें 3 लोग मौके पर ही मारे गये और चार अन्य लापता हो गये। लापता बताये गये लोगों में श्री धर्मानन्द भट्ट, गोपीचन्द, परमजीत सिंह, एवं रामलाल शामिल हैं। इस मामले में 47 लोगों को अभियुक्त बनाया गया है। इनमें से कुछ से पूछताछ होनी है। इस फायरिंग में प्रयुक्त हथियारों की सैंट्रल फौरेंसिक लैब के विशेषज्ञों द्वारा जांच की जानी है। इस केस में जांच जारी है।’’

Mussoori police firing scene 2 Sept 1994

इस प्रकार प्रारंभिक तौर पर यह बात स्पष्ट होती है कि प्रदर्शन कर रहे लोग बहुत भारी संख्या में अवश्य थे, मगर वे पूरी तरह शांतिपूर्ण थे और पुलिस ने अकारण गोलीबारी का प्रयोग किया। शुरू में बताया कि कि फायरिंग में केवल तीन लोग मारे गये और 4 लापता हो गये। बाद में पता चला कि लापता बताये गये लोग वास्तव में गायब नहीं हुये बल्कि वे मारे गये थे। घटना की विवेचना जारी है। यह विवरण सीबीआइ की तीसरी रिपोर्ट के पृष्ठ 5 पर दिया गया है।

‘‘1994 की रिट पिटिशन संख्या 40216

यह रिट पिटिशन खटीमा गोलीकाण्ड के बारे में है। इसमें एसडीएम डी.के. त्रिपाठी के आदेश से प्रदर्शनकारियों पर फायरिंग का विवरण दिया गया है। इस गोलीबारी के समय डी.एम., एस.डी.एम. एवं अन्य अधिकारियों के उपस्थित होने का दावा किया गया है। इस घटना के समय कुछ मीडियाकर्मियों से उनके कैमरे छीने जाने का भी आरोप लगाया गया है। पुलिस द्वारा इस फायरिंग में स्टेनगन, एस.एल.आर और अन्य आधुनिक हथियारों का प्रयोग किया गया। रिट में कहा गया है कि इस पुलिस कार्यवाही में 6 लोग मारे गये और महिलाओं तथा बच्चों पर भी हमला किया गया। घायलों में स्वाधीनता सेनानी कैप्टन करम चन्द का भी नाम लिया गया है।  आरोप है कि इस पुलिस कार्यवाही में 250 लोग घायल हुये। पुलिस ने 3 लोगों के मारे जाने की बात तो कही मगर उनके शव उनके परिजनों के सुपुर्द नहीं किये गये। यह भी आरोप है कि प्रशासन ने घायलों के इलाज के लिये मेडिकल सहायता तक उपलब्ध नहीं कराई। पुलिस ने इस आरोप को गलत बताया कि पुलिस ने झूठी रिपोर्ट दर्ज की और प्रर्दशनकारियों की रिपोर्ट स्वीकार नहीं की। एक अन्य शिकायतकर्ता पूर्व कैप्टन शेरसिंह को गिरफ्तार कर बराणसी जेल भेजा गया। एक लिखित शिकायत श्रीमती लीला देवी ने दी है जिसमें उसने अपने पति के लापता होने की बात कही है। इस रिट पिटिशन पर सीबीआइ ने:-

RC 26 (S)/95/SIC.IV/Lucknow on 27-01-95 under Sections 147, 148, 149, 307, 332, 333, 336, 436, 427, 504, 324 and 323, IPC.” के तहत केस दर्ज किया।’’

इस प्रकार सीबीआइ इस नतीजे पर पहुंची कि पुलिस द्वारा फायरिंग में स्टेनगन और अन्य आधुनिक हथियारों का प्रयोग किया गया। महिलाओं और बच्चों पर भी हमला किया गया। उन तीन व्यक्तियों, जिनकी मौतों को प्रशासन ने बाद में स्वीकार किया, के शव उनके परजिनों को नहीं सौंपे गये। अपनी छटी रिपोर्ट में सीबीआइ ने कुछ और तथ्य जुटाये हैं जिनका विवरण रिपार्ट की पृष्ठ संख्या 10 में दिया गया है।

“RC 26(S)/95, Lko. Dtd. 27-1-95 under Sections 147,149, 307, 332, 333, 336, 436, 427, 504, 324, 323, IPC (PS Khatima, distt Nainital)

‘‘इस केस में 3 लोगों के मारे जाने और 4 के लापता होने के इस मामले को हमारे द्वारा राज्य पुलिस से जांच के लिये लिया गया। जांच के दौरान जिन 74 लोगों को राज्य पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया था उनमें से 69 से सीबीआइ ने पूछताछ की। सबूतों से पता चलता है कि इन गिरफ्तार लोगों में से 4 लोग घटनास्थल पर ही नहीं थे और उन्हें पुलिस द्वारा उनके घर से बाद में गिरफ्तार किया गया था। अन्य लोगों के बारे में जांच चल रही है। और फारेंसिक जांच रिपोर्ट की प्रतीक्षा है। जिन 3 लोगों के फायरिंग में मारे जाने की बात पुलिस ने स्वीकारी उनके शव का खटीमा से 10-15 किमी दूर मझोला में 4 स्थानीय गवाहों के समक्ष अंतिम संस्कार किया गया। हमारी जांच के दौरान स्थानीय पुलिस ने बताया कि पुलिस फायरिंग के बाद खटीमा में कर्फ्यू लग जाने से इन शवों को लेने कोई नहीं आया जिस कारण इनमें से दो हिन्दुओं के शव जलाये गये और एक मुस्लिम मृतक का शव दफनाया गया। लेकिन मृतकों के परिजनों ने दावा किया कि पीलीभीत में जहां शवों के पोस्टमार्टम हुये वहां पुलिस से शव मांगे गये मगर पुलिस ने उन्हें शव नहीं दिये। इस मामले में जांच जारी है।’’

सीबीआइ इस मामले में इस निष्कर्स पर पहुंची कि लोकल पुलिस द्वारा जिन तीन लोगों के पुलिस फायरिंग में मारे जाने की बात कही उनके शव का अंतिम संस्कार खटीमा से 10-15 किमी दूर मझोला में किया गया और शव मांगने पर भी उनके वारिशों को नहीं दिये गये।

सीबीआइ की सातवीं रिपोर्ट के पृष्ठ 13 पर उन 4 व्यक्तियों का उल्लेख है जिन्हें लापता बताया गया था। सीबीआइ के अनुसार-’’ जांच से सरसरी तौर पर पता चला है कि पुलिस फायरिंग में वे भी मारे गये और उनके शवों का उनके वारिशों को बताये बिना निस्तारण कर दिया गया।’’

माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 17-07-1995 को सीबीआइ को खटीमा गोली काण्ड की प्रथम दृष्टया रिपोर्ट 24-07-1995 तक दाखिल करने को निदेर्शित किया था। उसके अनुपालन में ऐजेंसी द्वारा दी गयी रिपोर्ट इस प्रकार थीः-

‘‘खटीमा में पुलिस फायरिंग में 3 लोग मारे गये जिनके नाम पुलिस ने भगवान सिंह सिरोला, प्रताप सिंह एवं सलीम बताये। जबकि  माननीय हाइकोर्ट में दाखिल रिट पिटिशन संख्या 40216 वर्ष 1994 में याचिकाकर्ता ने धर्मानन्द पुत्र मोती राम, भट्ट, निवासी उमरकला थाना खटीमा जिला नैनीताल, गोपीचन्द पुत्र श्री प्रताप चन्द निवासी रतनपुर चन्द कालोनी झंकट खटीमा जिला नैनीताल, परमजीत सिंह पुत्र श्री हरि नन्दन सिंह निवासी राजीव नगर थाना खटीमा जिला नैनीताल, एवं रामपाल पुत्र श्री बाबूराम, थाना नवाबगंज जिला बरेली को लापता/अवैध रूप से हिरासत में रखे जाने का उल्लेख किया गया है। सीबीआइ द्वारा अब तक की गयी जांच में यह बात सामने आयी कि वास्तव में 1-09-1994 को खटीमा में हुयी पुलिस फायरिंग में ये चारों भी मारे गये थे। सीबीआइ का मानना है कि एसडीएम द्वारा फायरिंग का आदेश दिये जाने पर हुयी कार्यवाही में ये चारों मारे गये थे। यह भी पता चला है कि कुछ उच्च पुलिस अधिकारियों के कहने पर इनके शव ठिकाने लगा दिये गये थे। जंाच अधिकारी जिम्मेदार जन सेवकों के खिलाफ पर्याप्त सबूत मिलने पर बाद में सीआरपीसी की धारा 173 के तहत रिपोर्ट दाखिल करेगा।’’

इस प्रकार अब यह स्पष्ट है कि खटीमा पुलिस फायरिंग में 3 नहीं बल्कि 7 लोग मारे गये थे। पुलिस ने गलत ढंग से 4 लोगों के लापता होने की बात कही जबकि उनके शव अधिकारियों के कहने से ठिकाने लगा दिये गये थे।

मसूरी काण्ड पर सीबीआइ रिपोर्ट

2 सितम्बर 1994 को मसूरी के झूलाघर पर उत्तराखण्ड राज्य की मांग को लेकर आन्दोलन कर रहे स्थानीय लोगों और पुलिस के बीच झड़प हुयी। इस घटना में कुछ लोगों की मौतें हुयीं जिनमें एक पुलिस अधिकारी भी था। इस पुलिस कार्यवाही में कई लोग घायल भी हुये मगर सैंट मैरी अस्पताल के रिकार्ड के अनुसार कुल 24 घायलों का वहां उचपार किया गया तथा 14 घायलों का लण्ढौर अस्पताल में भी उपचार किया गया। इस कार्यवाही में जनता के 6 लोग और एक पुलिस उपाधीक्षक की मौत हुयी। जनता के लोगों में से जिनकी मौत हुयी उनमें दो महिलाएं भी शामिल थीं। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि पुलिस उपाधीक्षक की मौत पुलिस एवं पीएसी द्वारा थ्रीनॉट थ्री रायफल की गोली से हुयी। सीबीआइ ने मसूरी की जांच का विवरण अपनी दूसरी रिपोर्ट के पृष्ठ 40 एवं 41 पर दिया और तीसरी रिपोर्ट में इस घटना का जांच विवरण पृष्ठ 7, 8, 9 एवं 10 में दिया। सीबीआइ की जांच के अनुसार 1 सितम्बर 1994 को नैनीताल जिले के खटीमा गोलीकाण्ड की प्रतिक्रिया स्वरूप मसूरी में आक्रोश फैला जिसका नतीजा यह काण्ड रहा। मसूरी में पुलिस फायरिंग 2 सितम्बर 1994 को हुयी। सीबीआइ की रिपोर्ट इस प्रकार रहीः-

’’मसूरी की घटना का उल्लेख याचिका संख्या 29843/94 एवं 39921/94 में किया गया है जिसमें 2 सितम्बर 1994 को हुयी हिंसा में 7 लोगों के मारे जाने का उल्लेख किया गया है। इस मामले में जिला देहरादून की पुलिस ने जांच पूरी करने के बाद 14 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की है। मा0 उच्च न्यायालय के दिनांक 12 जनवरी 1994 के आदेशानुसार सीबीआइ ने इस मामले की जांच अपने हाथ में ली। अब तक की जांच में यह बात सामने आयी है कि दिनांक 1 सितम्बर 1994 की खटीमा में हुये

 

The CBI procured reporting material and photo film from Jay Singh Rawat in connection with Mussoorie police firing. Jay Singh Rawat covered this incident as a senior journalist. 

गोलीकाण्ड के कारण मसूरी में माहौल काफी तनावपूर्ण था। आन्दोलनकारियों द्वारा नगरपालिका के स्वामित्व वाले झूलाघर के हॉल पर 23-8-1994 को जबरन कब्जा कर उसमें छोटे-छोटे समूहों में क्रमिक अनशन चलाया जा रहा था। 30-8-1994 को स्थानीय प्रशासन ने मसूरी के एसडीएम के कार्यालय को खुलवाने का प्रयास किया जिस पर आन्दोलनकारियों ने पूर्व में जबरन तालाबंदी कर दी थी। 2 सितम्बर की प्रातः मसूरी के नये थाना प्रभारी ने झूलाघर के हॉल से 5 आन्दोलनकारियों को गिरफ्तार कर उन्हें वहां से हटा दिया था जिस कारण आन्दालनकारी भड़क गये और आन्दोलन और उग्र हो गया। इस पर 43 लोगों को गिरफ्तार किया गया। इसके विरोध में मसूरी के महिला, पुरुष और बच्चे बड़ी संख्या में झूलाघर आ पहुंचे और नारेबाजी करने लगे। पत्थरबाजी के बाद वहां तैनात पुलिस ने भीड़ पर लाठीचार्ज करने के साथ ही आंसू गैस का भी प्रयोग किया। महिलाओं की अगुवायी में भीड़ हॉल के अंदर घुसी और वहां कैंप कर रहे पीएसी के जवानों का सामान तथा उनके हथियार एवं एम्युनिशन बाहर फेंकने लगे। पीएसी के जवानों के कुछ सामान को आग के हवाले भी कर दिया गया। इसके बाद पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी। उस वक्त पुलिस उपाधीक्षक उमाकांन्त त्रिपाठी हॉल में मौजूद थे। उनके दाहिने हाथ पर चोट लगी थी। इस फायरिंग में 2 महिलाओं समेत 6 लोगों की मौत हो गयी। मृतक महिलाओं में श्रीमती हंसा धनाई और श्रीमती बेलमती चौहान शामिल थीं। उपाधीक्षक उमाकांत त्रिपाठी जो कि घायलों के साथ इलाज के लिये सेंट मैरी अस्पताल गये थे, की मौत अस्पताल के बाहर हो गयी। जांच के दौरान यह बात भी सामने आयी कि इस कार्यवाही के दौरान पुलिस ने आन्दोलनकारियों का कुछ सामान भी जब्त कर दिया था जिसमें एक दानपात्र भी था जिसे मसूरी थाने के मालखाने में जमा कर दिया गया। इस घटना में 48 आन्दोलनकारी गिरफ्तार किये गये जिन्हें बरेली जेल भेज दिया गया। ये आन्दोलनकारी 6-9- 1994 को रिहा किये गये। इस केस में जांच जांरी है।’’

अपनी सातवीं जांच रिपोर्ट में सीबीआइ ने पाया कि सभी 7 लोग इस घटना में मारे गये और 48 जनता के लोग तथा 23 पीएसी और पुलिस के कार्मिक घायल हुये। 31 घायलों को गोलियां लगीं थी। यह डाटा मेडिकल रिपोर्ट्स डाक्टरों के बयान और बड़ी संख्या में गवाहों के बयानात के आधार पर तैयार किया गया है। सीबीआइ की सातवीं जांच रिपोर्ट के पृष्ठ 6 पर इसका संदर्भ देखा जा सकता है।

 

 

 

 

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