ब्लॉग

नेताओं को कुर्सियां मिलीं, मगर राज्यवासियों को 27 साल बाद भी न्याय नहीं मिला

  • 27 साल बाद भी बलात्कारी हत्यारों को सजा नहीं
  • गांधी जयन्ती पर हुये बलात्कार और खूनखराबा
  • पुलिसकर्मियों ने इज्जत भी लूटी, गहने भी लूटे
  • महिला आयोग की जांच में सामने आई निर्लजतम् हकीकत
  • गोलियां अफसरों ने बरसाई और फंसाए छोटे कर्मचारी
  • उत्तराखण्ड में 20 हजार से अधिक हुये थे गिरफ्तार

जयसिंह रावत

दशकों के जनसंघर्षों के बाद भारतीय गणतंत्र के 27वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आने वाला उत्तराखण्ड राज्य शीघ्र ही अपने जीवनकाल के 21वें वर्ष में प्रवेश कर गया। इन 21 वर्षों में 10 नेताओं को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिल गयी, दर्जनों को मंत्री पद और हजार से अधिक को मंत्रियों के जैसे ठाटबाट वाले पद के साथ ही 350 विधायक मिल गये। मगर जिन लोगों ने इस राज्य की मांग के लिये अपनी जानें कुर्बान कर दीं और जिन महिलाओं की आबरू तक लुटी उन्हें 27 साल बाद भी न्याय नहीं मिला। उत्तराखण्ड आन्दोलन के दौरान हुये दमन को इलाहाबाद हाइकोर्ट ने राज्य प्रायोजित आतंकवाद बताया था।

गांधी जयन्ती पर हुये बलात्कार और खूनखराबा

विश्व को सत्य अहिंसा और प्रेम का पाठ पढ़ाने वाले महात्मा गांधी की जयन्ती पर जब 2 अक्टूबर 1994 को सारा देश गांधी जयन्ती मना रहा था तो उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के रामपुर तिराहे पर उत्तराखण्ड राज्य की मांग को लेकर दिल्ली जा रहे कई आन्दोलनकारियों की लाशें बिछी हुयीं थी तो पुलिस की लाठी-गोलियों के शिकार कई लोग सड़क और खेतों में तड़प रहे थे, जबकि बलात्कार की शिकार महिलाएं सदमें में बदहवास भटक रहीं थीं। छेड़छाड़ की भी ऐसी दरिन्दगी कि पीड़ित आन्दोलनकारी महिलाएं न तो अपने घावों को दिखा पा रहीं थीं और ना ही दर्द को चाहते हुये भी छिपा पा रहीं थीं। एक राष्ट्रीय राजमार्ग पर हजारों लोगों की उपस्थिति में उत्तर प्रदेश पुलिस का ऐसा बहसीपन पहले न तो देखा गया था और ना ही सुना गया था।

 

पुलिसकर्मियों ने इज्जत भी लूटी, गहने भी लूटे

इलाहाबाद हाइकोर्ट में दाखिल सीबीआइ की जांच रिपोर्ट के अनुसार 2 अक्टूबर 1994 की प्रातः लगभग 5.30 बजे देहरादून और आसपास के इलाकों से आई 53 से अधिक बसें रामपुर तिराहे पर पुलिस द्वारा रोकी गयी जिनमें लगभग 2000 महिला पुरुष उत्तराखण्ड आन्दोलनकारी थे। पहाड़ से आयी बसों से यात्रा कर रहीं 17 आन्दोलनकारी महिलाओं ने आरोप लगाया कि उस रात पुलिसकर्मियों ने लाठी चार्ज करने के बाद उनसे छेड़छाड़ की और बड़ी संख्या में आन्दोलनकारियों को गिरफ्तार कर लिया। कुछ महिलाओं ने सीबीआइ को बताया कि कुछ पुलिसकर्मियों ने बसों में चढ़ कर महिलाओं से छेड़छाड़ की। इनमें से 3 महिलाओं ने कहा कि उनके साथ बसों के अन्दर ही वर्दीधारियों ने बलात्कार किया, जबकि 4 अन्य का आरोप था कि उन्हें बसों से खींच कर नजदीक गन्ने के खेतों में ले जाया गया और वहां बलात्कार किया गया। ये सारी वारदातें मध्य रात्रि 12 बजे से लेकर 2 अक्टूबर सुबह 3 बजे के बीच हुयीं। महिलाओं ने पुलिसकर्मियों पर उनके हाथों की घड़ियां, गले की सोने की चेन और नकदी लूटने तथा तलाशी के नाम पर महिलाओं के शरीर टटोलने का आरोप भी लगाया।

महिला आयोग की जांच में सामने आई निर्लजतम् हकीकत

सुश्री जयन्ती पटनायक के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय महिला आयोग की जांच की रिपोर्ट की समरी में कहा गया है कि, ‘‘कई महिलाओं के साथ उनके बच्चे और युवा लड़कियां भी थीं। उन्होंने बताया कि उस रात पुलिसकर्मियों ने गन्ने के खेतों तथा पेड़ों पर पोजिशन ले रखी थी। हमने देहरादून में कुछ महिलाओं की टांगों पर पुलिस के डण्डों के प्रहार से हुये नीले निशान भी देखे। वास्तव में उनमें से एक महिला की जांघ के ज्वाइंट पर गंभीर चोट लगी थी। एक गवाह ने हमें मुजफ्फरनगर में पुलिस द्वारा हाथापाई के दौरान फाड़े गये अपने वस्त्र भी दिखाये। देहरादून में एक महिला ने हमें असाधारण रूप से सूजे हुये अपने स्तन दिखाये जिन पर पुलिसकर्मियों की दरिन्दगी (मोलेस्टेशन) के नीले निशान घटना के एक सप्ताह बाद भी साफ नजर आ रहे थे। गोपेश्वर में एक महिला ने बताया कि उसने 2 अक्टूबर प्रातः लगभग 9.30 बजे एक महिला को मुजफ्फरनगर अस्पताल में निर्वस्त्र ठिठुरते हुये देखा जो कि अपने हाथों से अपनी लाज ढकने का प्रयास कर रही थी। पहले ही उल्लेख किया जा चुका है कि कुछ महिलाएं उस रात पेटीकोट में ही बदहवास भाग रहीं थीं। अधिकांश महिलाओं ने बताया कि पुलिसकर्मियों ने उनके ब्लाउज के अंदर हाथ डाले, उनसे हाथापाई की, उनके सोने के आभूषण और नकदी छीन ली। पुरुष पुलिसकर्मी बेकाबू हो कर महिलाओं की लज्जाभंग, लूटपाट, उनसे मारपीट, गाली गलौच और दुष्कर्म पर उतर आये। यह सब उस दिन हुआ जिस दिन अहिंसा के प्रतीक महात्मा गांधी का जन्मदिन था।’’

गोलियां अफसरों ने बरसाई और फंसाए छोटे कर्मचारी

लेकिन जांच के दौरान सीबीआइ को अपने बयान में छोटे रैंक के 6 पुलिसकर्मियों ने बताया कि उन्होंने रैली वालों पर कोई फायरिंग नहीं की मगर उच्च अधिकारियों ने उन पर रैली वालों पर गोलियां चलाने की बात स्वीकार करने के लिये दबाव डाला। इन पुलिस कर्मियों में हेड कांस्टेबल नं0-158 सीपी सतीश चन्द्र, नं0-715 सीपी चमन त्यागी, एवं कांस्टेबल महाराज सिंह शामिल थे। एक कांस्टेबल नं0-90 एपी सुभाष चन्द्र ने सीबीआइ को बताया कि उसे तो आटोमेटिक हथियार चलाना भी नहीं आता है। वह सीओ मण्डी जगदीश सिंह के साथ सिक्यौरिटी ड्यूटी पर था और डीएसपी जगदीश सिंह ने ही उसकी स्टेनगन से फायरिंग की थी। फायरिंग में 5 लोग मारे गये थे और 23 अन्य घायल हो गये थे। कांस्टेबल सुभाष चन्द्र ने आगे बताया कि मुजफ्फरनगर के एस.पी. राजेन्द्र पाल सिंह ने एक कांस्टेबल से रायफल छीन कर फायरिंग की। उसने डीएसपी गीता प्रसाद नैनवाल एवं एडिशनल एस.पी. के गनर को आटोमेटिक हथियार से भीड़ पर फायरिंग करते देखा।

इस विभत्स काण्ड की तह तक जाने के लिये सीबीआइ द्वारा मुजफ्फरनगर पुलिस के रिकार्ड की जांच की गयी तो जिला पुलिस की जनरल डायरी इश्यू रजिस्टर में ओवर राइटिंग पायी गयी थी। पुलिस सटेशनों को जारी जनरल डायरी संख्या 7 को बदल दिया गया था। मुजफ्फरनगर पुलिस लाइन की जनरल डायरी का पेज संख्या 479571 गायब मिला। डुप्लीकेट जनरल डायरी के 200 पृष्ठों में से केवल 199 पृष्ठ ही डायरी में पाये गये। जांच में पुलिस अधीक्षक राजेन्द्र पाल सिंह के रीडर सब इंस्पेक्टर इन्दुभूषण नौटियाल द्वारा आरोपियों को बचाने के लिये रिकार्ड में हेराफेरी किये जाने की बात भी सामने आयी।

उत्तराखण्ड में 20 हजार से अधिक हुये थे गिरफ्तार

2 सितम्बर की प्रातः मसूरी के झूलाघर में हुयी पुलिस फायरिंग में 2 महिलाओं श्रीमती हंसा धनाई और श्रीमती बेलमती चौहान सहित 6 आन्दोलनकारियों की मौत हो गयी थी। इसी काण्ड में उपाधीक्षक उमाकांत त्रिपाठी की जान भी गयी थी। पुलिस ने अपने घायल अफसर को बचाने के बजाय लावारिश स्थिति में उन्हें आन्दोलनकारी घायलों के साथ ही लाद कर बिना सुरक्षा के अस्पताल भेज दिया था। इस घटना में 48 आन्दोलनकारी गिरफ्तार किये गये जिन्हें बरेली जेल भेज दिया गया। ये आन्दोलनकारी 6-9- 1994 को रिहा किये गये। सीबीआइ के अनुसार 1 सितम्बर 1994 को हुये खटीमा गोलीकाण्ड में 7 आन्दोलनकारी मारे गये मगर पुलिस ने केवल 3 के मरने की पुष्टि की और उन तीनों के शव भी परिजनों को नहीं दिये जबकि 4 अन्य के शवों को कहीं ठिकाने लगा दिया गया।

उत्तर प्रदेश सरकार के एडवोकेट द्वारा हाइकोर्ट में जमा रिपोर्टों के अनुसार 18 अगस्त 1994 से लेकर 9 दिसम्बर 1994 तक चमोली, टिहरी गढ़वाल, उत्तरकाशी, अल्मोड़ा, देहरादून, नैनीताल, पिथौरागढ़ एवं पौड़ी गढ़वाल जिलों में कुल 20,522 गिरफ्तारियां की गयीं जिनमें से 19,143 लोगों को उसी दिन रिहा कर दिया गया जबकि 1,379 को जेलों में भेजा गया। इनमें से भी 398 लोगों को पहाड़ों से बहुत दूर बरेली, गोरखपुर, आजमगढ़, फतेहगढ़, मैनपुरी, जालौन, बांदा, गाजीपुर बलिया और उन्नाव की जेलों में भेजा गया। हाइकोर्ट ने पहाड़ के इन आन्दोलनकारियों को उनकी गिरफ्तारी के स्थान से 300 से लेकर 800 किमी दूर तक की जेलों में भेजे जाने पर राज्य सरकार की नीयत पर भी सवाल उठाया था।

27 साल बाद भी बलात्कारी हत्यारों को सजा नहीं

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 12 जनवरी 1995 के आदेशानुसार सीबीआइ ने विभिन्न वारदातों में 64 मामलों की विवेचना की थी जिसके पश्चात सीबीआइ ने 43 मामलों में आरोप पत्र दाखिल किये इन 43 मामलों में 3 मामलों में निर्णय हो चुका था उनमें किसी को सजा नहीं हुयी थी शेष 40 मामले सुनवाई के विभिन्न चरणों में थे। इन 26 सालों में पीड़ितों को भले ही न्याय न मिला हो मगर उत्तराखण्ड के रहने वाले 3 उत्पीड़क पुलिसवालों को तरक्कियां अवश्य मिलीं।

jaysinghrawat@gmail.com

uttarakhandhimalaya.portal@gmail.com

phone-7453021668

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!