क्षेत्रीय समाचार

भाषाएं बचेंगी तभी संस्कृतियां भी जिंदा रहेंगी : नरेंद्र सिंह नेगी

 

देहरादून, 22 सितम्बर (शास्त्री)। विद्यालयी शिक्षा में प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा शिक्षण को लेकर गढ़वाली भाषा के साहित्यकारों ने एक संगोष्ठी का आयोजन किया। गढ़रत्न एवं लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी की अध्यक्षता में हुई इस संगोष्ठी में मातृभाषाओं की वर्तमान स्थिति और पाठ्यक्रम पर विस्तार से चर्चा की गई।

अध्यक्षीय संबोधन में नरेंद्र सिंह नेगी ने कहा कि जब तक हमारी भाषाएं सुरक्षित नहीं होंगी, तब तक संस्कृतियां भी जीवित नहीं रह पाएंगी। मातृभाषाओं को बचाने के लिए आवश्यक है कि प्राथमिक स्तर पर पठन-पाठन मातृभाषा में ही हो।

हिमालयी लोक साहित्य एवं संस्कृति विकास ट्रस्ट द्वारा आयोजित इस संगोष्ठी में शिक्षा नीति-2020 के तहत प्राथमिक शिक्षा में मातृभाषाओं को शामिल करने पर जोर दिया गया। इस संबंध में शासन को ज्ञापन भेजा जाएगा।

डा. नंदकिशोर हटवाल ने बताया कि एससीईआरटी के माध्यम से गढ़वाली, कुमाऊनी, जौनसारी और रंग-लू भाषाओं के लिए पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकें तैयार की जा चुकी हैं, अब इन्हें लागू करने की आवश्यकता है। जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण ने कहा कि नई पीढ़ी अपनी भाषाएं सीखना चाहती है और पाठ्यक्रम इसमें सहायक सिद्ध होगा।

पर्यावरणविद् कल्याण सिंह रावत ‘मैती’ ने कहा कि प्रतियोगी परीक्षाओं में राज्य की भाषाओं और संस्कृति को शामिल करना सकारात्मक कदम है। पद्मश्री डा. माधुरी बड़थ्वाल ने सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने के लिए भाषा शिक्षण पर बल दिया। गणेश खुगशाल गणी ने कहा कि मातृभाषा में शिक्षण से न केवल भाषाएं बचेंगी, बल्कि उनके ज्ञान और विज्ञान को समझने का मार्ग भी प्रशस्त होगा।

संगोष्ठी में मुख्यमंत्री और शिक्षामंत्री को ज्ञापन भेजने का निर्णय लिया गया। कार्यक्रम में उषा नेगी, रमाकांत बेंजवाल, बीना बेंजवाल, मदन मोहन डुकलाण, गिरीश सुन्दरियाल, भगवती सुन्दरियाल, कुलानंद घनशाला, रमेश बडोला, ओम बधानी, देवेश जोशी, अनिल नेगी, शांति प्रकाश जिज्ञासु, रानू बिष्ट, शैलेन्द्र मैठाणी, बलबीर राणा अडिग, कर्नल मदन मोहन कंडवाल सहित अनेक साहित्यकार और संस्कृति प्रेमी शामिल हुए।

इस अवसर पर गढ़वाल विश्वविद्यालय में लोक कला एवं संस्कृति निष्पादन केन्द्र के निदेशक पद पर नियुक्त होने पर गणेश खुगशाल गणी को बधाई भी दी गई। संचालन गिरीश सुन्दरियाल ने किया।

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