अपने कबाड़खाने में एक किताब में यह सुभाषित संदेश
-गोविंद प्रसाद बहुगुणा
विद्यार्थी काल में खास तौर पर अंग्रेजी स्कूल में पढ़ने वाले लड़कों मेंअगाथा क्रिस्टी के जासूसी उपन्यास पढ़ने का बड़ा चस्का रहता था -रेल यात्रा में मुझे ऐसे कई नवयुवक दिखाई देते थे जिनके हाथ में इनकी पुस्तकें होती थी। मुझे क्राइम थ्रिलर पढ़ने का कभी शौक नहीं रहा हालांकि अगाथा क्रिस्टीकी प्रसिद्धि खूब बिकने वाले उपन्यासकार के रूप में रही है, उन्हें क्वीन आफ क्राइम लेखक कहा जाता था।
जब मैं उनका जीवन परिचय पढ़ रहा था तो मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि एक महिला जो अपने व्यक्तिगत जीवन में निहायत शर्मीली, मितभाषी, अच्छी पढ़ी लिखी और संपन्न परिवार में जन्मी थी उसने अपराध कथाओं को लिखने की क्यों सोची , यह भी अपने आप में क्या एक रहस्य नहीं है ?
वर्ष १९७६ में लगभग ८५ वर्ष की आयु में वह भरपूर ख्याति लेकर इस संसार से बिदा हुई I उन्होंने दर्जनों उपन्यास और कहांनियाँ लिखी हैं और बताते हैं कि गिनिस बुक ऑफ़ रिकॉर्ड में सर्वाधिक पढ़ी जाने वाली लेखक के रूप में उन्हें दर्ज किया गया है I
इस किताब के अक्षर बहुत बारीक होने के कारण कुछ पढ़ न सका किन्तु लेखक के परिचय पृष्ठ उनका लिखा यह अमूल्य सुभाषित मुझे मिल गया, शेयर कर रहा हूँ ,वे कहती हैं कि –
” मैं कभी कभी घनघोर मायूसी और हताशा में पूरी तरह डूबी जाती हूँ लेकिन तभी मुझे ख्याल आता है कि अरे मैं तो अभी पूरी तरह जीवित हूँ, यही क्या काफी नहीं है मेरे लिए ? इससे अधिक सुन्दर और आशाजनक क्या हो सकता है मेरे लिए !
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मैं समझती हूँ कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी नहीं है बल्कि मेरे विचार से आविष्कार का जन्म तब होता है जब आप आलस्य की वजह से नितांत खाली बैठे हों और सोच रहे हों कि छोड़ो यार क्यों नाहक मुसीबत मोल ले रहे हो , चुप बैठो और तभी तुम्हें कुछ करने का ख्याल सूझता है ,फिर जो करते हो वही आविष्कार बन जाता है। ” …
यह पढ़कर मुझे बचपन में पढ़ी जेम्स वाट की कहानी याद आयी, जब जेम्स वाट ने देखा कि चूल्हे पर रखी कितली का ढक्कन भाप के जोर से लगातार उठता और गिरता था ,उसने सोचा क्या भाप में भी इतनी शक्ति होती है कि वह भारी ढक्कन को भी उछाल सकता है ! वह दैखकर जेम्स वाट चकित था और यहीं से उसको रेल इंजन के आविष्कार का आईडिया मिला —
GPB