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जानिए देहरादून को ; इतिहास बनने जा रहा 100 साल पुराना आढ़त बाजार

(Dehradun city of joy and struggle )

–अनन्त आकाश
परिवर्तन श्रृष्टि का नियम है‌। वह कभी सकारात्मक होता है तो कभी नकारात्मक । आज यही सब कुछ हो रहा 100 साल पुराने आढ़त बाजार के साथ जिसे कुछ ही‌ महीनें में कुछ ही किलोमीटर दूर पटेल नगर के पास ही‌ शिफ्ट होना है।  हांलाकि यहां के व्यापारियों एव कई‌‌‌‌ लोगों‌ का‌‌ आढ़त बाजार से दिली लगाव है ।

इस योजना ‌पर 150 ‌करोड़ रूपये खर्च होने का अनुमान है‌ । इस महत्वाकांक्षी योजना के पीछे तर्क यह दिया जा रहा है‌ कि देहरादून ‌के इस क्षेत्र में यातायात की समस्या हल होगी । इतिहास गवाह है कि‌ हरेक योजना ‌के पीछे ‌अक्सर यही तर्क दिया जाता रहा है ।योजना के अनुसार सहारनपुर चौक से लेकर पुराने दिल्ली स्टैण्ड तक चौड़ीकरण का‌ कार्य होना है । आगे तहसील चौक, दर्शन लाल चौक की यातायात व्यवस्था को ठीक ठाक करने तथा ऐतिहासिक इनाममुल्ला बिल्डिंग के सौन्दर्यीकरण तथा यहां की व्यवस्था ‌को ठीक ठाक‌‌‌ करने के लिऐ आज तक की‌ सरकारों के‌ पास न तो विजिन रहा ‌न इस सरकार तथा ‌इसके‌‌ योजनाकारों की ही प्राथमिकता है ।‌

यदि आप‌ प्रिन्स चौक‌ के‌‌ पास से‌ दिल्ली बस स्टैण्ड से‌ बिल्डिंग ‌की‌ ओर बढ़ें तो आपको अजीब सी दुर्गन्ध से गुजरना पड़ेगा। पता चला है कि बिल्डिंग ‌के मीट व्यवसायियों ‌द्वारा‌‌‌ जानवरों‌ का मलमूत्र तथा खून एवं मीट का वैस्ट‌ नालियों में ‌‌‌प्रभावित किया जाता है जो कि सार्वजनिक स्वास्थ एवं नियमों के विरूध्द है । कई‌ बार तो यह वेस्ट‌ निकासियों से बाहर सड़कों पर देखा जा सकता है । इस पर निगम मौन है, योजनाकारों के पास प्रिन्स चौक के‌ पास‌ तस्तरिनुमा सैफ का भी समाधान नहीं है‌‌‌। जबकि‌ हर बर्ष यहां पर कार्यदायी संस्थाओं द्वारा लीपा-पोती  कर कर्त्तव्यों की इतिश्री कर दी जाती रही है । यहां जलभराव  ‌निकासी चोक की समस्या आज भी जस की तस है‌‌। आसपास के‌ व्यवसायी‌ परेशान हैं तथा आमजन यहां पर हर समय भारी असुविधा झेलता है तथा हुक्मरानों को कोसने के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं है । यही‌ हाल दर्शन लाल चौक‌‌ और‌ अन्य का है‌। इस ओर जिला प्रशासन, नगर निगम, स्मार्ट सिटी प्रशासन ‌तथा चुने हुये जनप्रतिनिधियों को ध्यान देना चाहिए था । इनमें से कुछ‌ को छोड़कर बाकी सही मायनों में  अपने दायित्वों का निर्वहन नहीं कर रहे हैं। हां कागजों में सबकुछ ठीक ठाक है ।

जहाँ तक आढ़त बाजार ‌शिफ्ट करने ‌के पीछे‌ तर्क ‌दिया जा रहा है कि इससे यातायात व्यवस्था सुधरेगी व जाम की समस्या से निजात मिलेगी । ऐसे तर्क फ्लाईओवर बनते समय ,तहसील चौक, सर्वे चौक, बल्लूपुर ‌चौक‌ आदि‌ अनेक चौकों के चौड़ीकरण के समय भी दिये गये थे । किन्तु जाम की स्थिति जस की  तस है‌।

यातायात सुधार ‌के नाम उत्तराखण्ड में भारी भरकम पुलिस निदेशालय बन चुका किन्तु यातायात सुधार के नाम पर आम‌ लोगों भारी भरकम राजस्व जुर्माने के रूप में बसूलने के बजाय उन्हे‌ शिक्षित करने कि कोशिश कि‌ये जाने कि कोशिश की जानी चाहिए। चौक चौराहों पर यातायात की व्यवस्था सन्तोषजनक नहीं है । यदि है भी ‌तो‌ एक ही पुलिस कर्मचारी को 15-15‌ घण्टे‌ कार्य करते हुये देखा जा सकता है । जहाँ तक यातायात व्यवस्था सुधार का तर्क है, जिसके‌ चलते बर्षो से आम जनता भारी कीमत चुका रही है, बजट का बड़ा हिस्सा इन्ही ‌योजनाओं पर खर्च हो रहा और इसका लाभ मुठ्ठीभर‌ लोग ही उठा रहे हैं। स्थिति में कोई सुधार नहीं हो पा रहा है । होगा भी कैसे ? सार्वजनिक यातायात लगभग खत्म हो गया है, निजी वाहन का इतना अम्बार है कि कई घरों में अनावश्यक रूप से‌ सदस्यों से ज्यादा गाड़ियां हैं । पहले एक बस में साठ लोग आते जाते थे । अब वही साठ लोग साठ छोटी बड़ी गाड़ियों में अपने गन्तब्य तक जाते हैं। कई बार तो अनावश्यक गाड़ियों का सड़कों में अम्बार रहता है । लोग अपनी  गाड़ियों को घरों से बाहर सड़क  पर पार्क कर कॉलोनियों में यातायात की समस्या खड़ी कर रहे है और पुलिस कहती है कि  हमारी जिम्मेदारी मुुुख्य सड़को की  ही है। नगर निगम कॉलोनियों में सड़को के अतिक्रमण को हटाने के बजाय बढ़ावा देता है।

दिल्ली, मुम्बई , कलकत्ता, चेन्नई , त्रिवेन्द्रम, चण्डीगढ़ ‌आदि‌ अनेक महानगरों में बस‌ सेवाऐं हैं‌ जो कि आमजन को सुलभ एवं सस्ती सुविधा दे रहे हैं। बावजूद हमारे राज्य ने सरकारी परिवहन न केवल कमजोर ‌किया है बल्कि इसके अकूत सम्पत्ति को भी ओने पोने दाम में ठिकाने‌ लगाया है । पड़ोसी हिमाचल प्रदेश सार्वजनिक परिवहन से लाभ कमा रहा है और हमारा सार्वजनिक परिवहन हमारे हुकमरानों के गैरजिम्मेदाराना एवं भ्रष्टतन्त्र के चलते लगभग खात्मे कि ओर है । इसलिए जब तक सार्वजनिक परिवहन की बहाली तथा अनाप शनाप वाहनों की खरीददारी पर रोक नहीं लगती तब तक यातायात व्यवस्था सुधारने के तर्क उचित नहीं हैं ।

अन्त में यातायात व्यवस्था तथा व्यवस्थित शहर का बिकल्प लिपापोती या स्मार्ट सिटी नहीं है , बल्कि जन पक्षीय  दृष्टिकोण से हि सम्भव है ,अन्यथा सुधार के नाम पर हम कारपोरेट‌ को ही  फायदा पहुंचा रहे होंगे, अब तक अनुभव  यही है ।

अनन्त आकाश
9410365899

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